पश्चिम बंगाल

जादवपुर यूनिवर्सिटी में ‘आज़ाद कश्मीर’ और ‘फ्री फिलिस्तीन’ नारे: FIR दर्ज

इस मामले पुलिस ने अज्ञात तत्वों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। इस घटना पर सियासत भी शुरू हो गई है। प्रदेश की सत्तारूढ़ टीएमसी का आरोप है कि वामपंथियों ने ये कारस्तानी की है।

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Kuldeep singh

ममता बनर्जी के राज में कट्टरपंथी मानसिकता से जुड़े लोग पूरी तरह से बेखौफ होकर देश की अस्मिता पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं। ताजा मामला कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी का है, जहां असामाजिक तत्वों ने आजाद कश्मीर और फ्री फिलिस्तीन के नारे लिख दिए।

कहां लिखा हुआ था नारा

ये घटना विश्वविद्यालय के गेट नंबर तीन की बताई जा रही है। रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि विश्वविद्यालय के गेट नंबर तीन की दीवार पर ये विवादित नारे लिखे गए थे। हालांकि, अभी तक ये स्पष्ट नहीं हो सका है, लेकिन इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं।

दर्ज हुई एफआईआर

इस मामले पुलिस ने अज्ञात तत्वों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। इस घटना पर सियासत भी शुरू हो गई है। प्रदेश की सत्तारूढ़ टीएमसी का आरोप है कि वामपंथियों ने ये कारस्तानी की है। लेकिन, टीएमसी की छात्र इकाई के अध्यक्ष का कहना है कि इन घटनाओं को धुर वामपंथी अंजाम दे रहे हैं। विश्वविद्यालय के परिसर में अगर कोई जाएगा तो उसे इस तरह के कई और नारे देखने को मिलेंगे।

माकपा ने किया इंकार

इस बीच वामपंथी माकपा ने इन आरोपों से इंकार कर दिया है। सीपीआईएम की जादवपुर यूनिवर्सिटी छात्र इकाई के एक नेता का कहना है कि वो इस तरह के अलगाववादी कुकृत्यों का समर्थन नहीं करते हैं। माकपा ने उल्टा टीएमसी पर आरोप लगाया कि वह अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए वामपंथियों को निशाना बना रही है। इस बीच, अन्य राजनीतिक दलों और छात्र संगठनों ने भी इस घटना की निंदा की है, लेकिन जिम्मेदारी को लेकर कोई स्पष्ट सहमति नहीं बन पाई है।

विवादित रहा है जादवपुर यूनिवर्सिटी का इतिहास

जादवपुर यूनिवर्सिटी का इतिहास राजनीतिक सक्रियता और वैचारिक संघर्षों से भरा रहा है। यहाँ अक्सर छात्र आंदोलन और प्रदर्शन होते रहे हैं, जिनमें वामपंथी विचारधारा का प्रभाव प्रमुख रहा है। हाल के वर्षों में, टीएमसी और वामपंथी संगठनों के बीच छात्र राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई भी देखी गई है। इस घटना को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है, हालाँकि “आज़ाद कश्मीर” और “फ्री फिलिस्तीन” जैसे नारे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की ओर इशारा करते हैं, जो स्थानीय राजनीति से परे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह कट्टरपंथी तत्वों की मौजूदगी का संकेत हो सकता है, जो विश्वविद्यालय जैसे संवेदनशील स्थानों का इस्तेमाल अपनी बात फैलाने के लिए कर रहे हैं।

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