राहुल गांधी ने अपने और अपने परिवार के घटते जनाधार और चुनाव दर चुनाव होने वाली हार को छिपाने के लिए पार्टी के कार्यकर्ताओं को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया है। यह सर्वविदित है कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे केवल नाममात्र हैं और सारा निर्णय वास्तविक तौर पर गांधी परिवार के द्वारा लिया जाता है।
दरअसल, राहुल गाँधी पार्टी की हार और खिसकते जनाधार से इतना परेशान हो गए हैं कि अब भाजपा या अन्य विरोधी दलों से लड़ने के बदले वो पार्टी के अंदर ही एक वर्ग को इसके लिए दोषी ठहरा रहे हैं। कोई भी नेता ऐसा वक्तव्य ऐसी परिस्थति में जारी करता है जब उसकी अपने विरोधियों से लड़ने की क्षमता समाप्त हो जाती है। राहुल गाँधी ने हाल ही में गुजरात में पार्टी के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए उनके एक बड़े वर्ग को भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करने के लिए आरोपित कर दिया। अंदर ही अंदर इसका रोष सभी राज्यों में पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में स्पष्ट देखा जा रहा है।
लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन के बाद राहुल गांधी और गांधी परिवार को उम्मीद थी कि अब पार्टी का प्रदर्शन समय के साथ अच्छा होगा और समर्थकों में जोश का संचार होगा। मगर इसके विपरीत लोकसभा चुनाव के बाद पांच प्रदेशों के विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन निम्नतर होता गया।
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन के बाद कांग्रेस पार्टी ने फिर से पुरानी नीति अपनाते हुए बिना किसी मशविरा के राहुल गांधी को विपक्ष का नेता मनोनीत कर दिया। उसके बाद कांग्रेस पार्टी का विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन फिर से निम्न होता चला गया। आखिरी विधानसभा चुनाव दिल्ली में कांग्रेस पार्टी अपना खाता तक खोलने में भी नाकाम रही। यह लगातार तीसरा अवसर है, जब दिल्ली विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल सकी। अभी कुल पांच प्रदेशों के विधानसभा में कांग्रेस पार्टी का कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं है। ये राज्य हैं पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, नागालैंड और सिक्किम।
ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ विधानसभा के चुनावों में वरन लोकसभा के चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी अपना जनाधार दिनो दिन बड़े पैमाने पर खोती जा रही है। आश्चर्य यह है कि कांग्रेस पार्टी अपने खोते जनाधार को वापस प्राप्त करने वास्ते कोई भी सकारात्मक प्रयास नहीं कर रही। कांग्रेस पार्टी के सहयोगी दल अब कांग्रेस पार्टी को गठबंधन के तहत सीट देने से बचना चाह रही हैं।
इतना ही नहीं अगर कांग्रेस पार्टी के सीटवार प्रदर्शन पर गौर करे तो पाते हैं कि कांग्रेस पार्टी का जमीनी प्रदर्शन काफी कमजोर और दयनीय होता जा रहा है। पहले कांग्रेस पार्टी का फैलाव पूरे देश में देखा जा सकता था, मगर 2014 से कांग्रेस पार्टी एक क्षेत्रीय दल की तरह बनती जा रही है। कांग्रेस पार्टी के इस गिरते प्रदर्शन के कारण अब इसके सहयोगी कम से कम सीट देकर कांग्रेस पार्टी से समझौता करना चाहती है।
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