छावा फिल्म पर सेक्युलर जमात लगातार विलाप कर रहा है। एक नरैटिव चलाया जा रहा है कि औरंगजेब तो महान शासक था और जिस प्रकार से फिल्म में उसे चित्रित किया गया है, उसके जरिए इतिहास को बदलने की कोशिश की जा रही है। सेक्युलर जमात को ये बात अभी तक नहीं पच रही है कि कैसे बॉलीवुड में उस असली इतिहास को दिखाया जाने लगा है, जो कि भारतीय शौर्य को दिखाता है। अब इस पर मशहूर शायर मनोज मुंतशिर ने एक वीडियो जारी कर जबाव दिया है कि औरंगजेब की कब्र को हटाने की जगह उसके ऊपर शौचालय बना दिया जाना चाहिए।
क्या बोले मुंतशिर
एक्स पर पोस्ट किए एक मिनट 14 सेकंड के वीडियो में शायर ने इस विषय पर बात की कि आखिर महाराष्ट्र से औरंगजेब की कब्र को क्यों नहीं हटाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज पूरे देश में एक आवाज तेजी से उठ रही है कि महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर में बनी मुगल आततायी औरंगजेब की कब्र हटना चाहिए। लेकिन मैं इस मांग के खिलाफ हूं? क्योंकि जब राम मंदिर अयोध्या में बन रहा था तो कथित शांतिप्रिय समुदाय के कुछ लोग और सेक्युलर जमात के कुछ लोग हमें ज्ञान देते थे कि भगवान तो कण कण में हैं।
ऐसे में श्रीराम का मंदिर बनाने की क्या आवश्यकता है, इसकी जगह अस्पताल, स्कूल या अनाथालय बनवा देना चाहिए। वीडियो में मुंतशिर ने भारत सरकार से मांग की कि औरंगजेब की कब्र को हटाने की आवश्यकता क्या है, उसके ऊपर शौचालय बनवा देना चाहिए। क्योंकि, उस बद्जात बादशाह की हड्डियों को गलाने के लिए हम सनातनी यूरिया और नमक तो दान कर ही सकते हैं।
सेक्युलर जमात पर भी किया कटाक्ष
अपने वीडियो मनोज मुंतशिर कहते हैं कि किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़े है कहने वाले सेक्युलरों को भी मेरा जबाव है कि नसों में सूर्यवंशी स्वाभिमान था और है, सनातन से ही भगवा आसमान था और है। शिवाजी और राणा को पिता समान मानते हैं हम। हमारे बाप का हिन्दुस्तान था और है। हर-हर महादेव।।
सेक्युलिरज्म के नाम पर हिन्दू गौरव को दबाने की साजिश
छावा, जहां एक ओर सफलता के झंडे गाड़ती जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ इसे लेकर अनावश्यक विवाद भी जारी है। इसे लेकर कहीं सीधे तो कहीं इशारों में बातें हो रही हैं। कुछ अनावश्यक लेख लिखे जा रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है और ऐसा कौन कर रहा है, यह समझना कठिन नहीं है। सेक्युलर जमात इतिहास पर बनी इस फिल्म को प्रोपोगैंडा मूवी कह रहा है। सवाल ये है कि क्या सेक्युलरिज्म की परिभाषा में हिन्दू द्वेष और हिन्दू घृणा ही आती है?
हाल ही में द हिन्दू में एक लेख प्रकाशित हुआ है, जिसमें लिखा है कि जब सिनेमा में इतिहास केवल गुस्सा, घृणा जगाने का माध्यम बन जाता है तो हमें इतिहास की समझ से दूर कर देता है। छावा को लेकर लिखे गए इस लेख में कुछ मूवीज के नाम दिए गए हैं, जिन्हें इसने प्रोपोगैंडा बताया है और उनमें जाहिर है कि कश्मीर फाइल्स, केरल स्टोरी, स्वातंत्र्य वीर सावरकर जैसी फिल्में हैं।
कई दशकों से भारत के कला जगत में फिर चाहे वह साहित्य हो या सिनेमा, ऐसा परिदृश्य था जिसमें भारत के बहुसंख्यक इतिहास और संस्कृति को अपमानित करना ही कला या सेक्युलरिज्म माना जाता था। ऐतिहासिक फिल्मों के नाम पर कुछ भी परोस दिया जाए, तो उस पर कोई प्रश्न ही नहीं किया जाता था। हिन्दी फिल्मों के इतिहास में सबसे महान फिल्मों में से एक फिल्म है मुगलेआजम। यह फिल्म कथित रूप से मोहब्बत की फिल्म थी। इस फिल्म में अय्याश जहांगीर को मोहब्बत का मसीहा बनाकर पेश किया गया।
क्या एक साजिश के तहत भारत के वामपंथी, इस्लामवादी इतिहासकारों ने देश के असली इतिहास को दरकिनार कर हिन्दू गौरव को दबाने की कोशिश की। इस पर अपनी राय कमेंट में अवश्य दीजिए।
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