विश्व

भारत में आतंकवाद फैलाने की नई साजिश रच रहा जिन्ना का देश, TTP के पूर्व प्रवक्ता का हैरान करने वाला खुलासा

टीटीपी के पूर्व प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसान का दावा, दिल्ली-काबुल के बढ़ते संबंधों से चिढ़े पाकिस्तान की नई चाल है कश्मीर में एक बार फिर से जिहादी गुटों को भेजकर वहां आतंकवाद का नया दौर चालू करे

Published by
Alok Goswami

भारत के पड़ोस में जिन्ना का बसाया देश अपनी शैतानी सोच से भारत विरोधी पैंतरे रचता रहा है और हर बार मुंह की खाता रहा है। लेकिन तो भी वह अपनी जिहादी सोच छोड़ने को तैयार नहीं दिख रहा है। रोजी—रोटी से कंगाल, आर्थिक रूप से बदहाल और दिमागी रूप से दिवालिया जिन्ना के देश के नए भारत विरोधी मंसूबे का खुलासा किया है टीटीपी के पूर्व प्रवक्ता ने। द संडे गार्जियन में अपने एक आलेख में उसने चेताया है कि पाकिस्तान को भारत का अफगानिस्तान से बात करना रास नहीं आ रहा है। उसे लगता है कि कहीं भारत फिर से अफगानिस्तान में अपनी पैठ न बना ले, इसलिए वह लश्करे तैयबा और जैशे मोहम्मद जैसे आतंकी गुटों को फिर से हरकत में आने को कह रहा है।

दिल्ली-काबुल के बढ़ते संबंधों से चिढ़े पाकिस्तान की नई चाल है कश्मीर में एक बार फिर से जिहादी गुटों को भेजकर वहां आतंकवाद का नया दौर चालू करे। टीटीपी के पूर्व प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसान ने उक्त अखबार में किसी अज्ञात स्थान से लिखे अपने आलेख में कहा है कि पाकिस्तान की विदेश नीति हमेशा असंतुलित, हस्तक्षेप करने वाली और आंतरिक जरूरतों के प्रति उदासीन दिखाई देती है। लड़ाई की मानसिकता से बन रहीं ये नीतियां घरेलू स्थिरता की बजाय दूसरे देशों के मामलों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे देश के लिए महत्वपूर्ण कूटनीतिक चुनौतियां पैदा होती हैं।

संडे गार्जियन अखबार के कल के संस्करण में प्रकाशित अपने इस आलेख में एहसान लिखता है, ”भारत के खिलाफ सख्त रुख, अफगानिस्तान में हस्तक्षेप और ईरान के साथ असंतुलित संबंधों ने बार-बार पाकिस्तान के लिए क्षेत्रीय मुश्किलें खड़ी की हैं। इसी तरह, अमेरिकी दबाव में लिए गए फ़ैसलों, जैसे सोवियत-अफ़गान युद्ध में शामिल होना और तथाकथित आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में अमेरिका के साथ गठबंधन—ने पाकिस्तान को दीर्घकालिक नुकसान दिया है। लेकिन अब, पाकिस्तान की नीति में एक ख़तरनाक बदलाव दिख रहा है और वह है अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कश्मीर में जिहादी समूहों को फिर से सक्रिय करना।”

टीटीपी का पूर्व प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसान

आलेख में आगे लिखा है कि जहां तक पता चला है, पाकिस्तान ने लश्करे-तैयबा और जैशे-मोहम्मद जैसे पूर्व जिहादी संगठनों को कश्मीर में फिर से सक्रिय होने का निर्देश दिया है। कश्मीर में इन समूहों का पाकिस्तान द्वारा फिर से इस्तेमाल, साथ ही अफ़गानिस्तान में आईएसआईएस का इस्तेमाल, इसकी रणनीतिक विफलताओं का परिणाम और निरंतरता दोनों प्रतीत होता है। पाकिस्तान के नीतिकार हताश दिखते हैं, जिससे उन्हें पहले असफल रहीं उनकी रणनीतियों पर वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान एक लंबे समय से अफ़गानिस्तान में अपना दबदबा बनाए रखने की कोशिश में रहा है। हालांकि, तालिबान ने एक स्वतंत्र नीति अपनाई है, जिसमें भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाना शामिल दिखता है। तालिबान और भारत के बीच चल रही वार्ताएं पाकिस्तान के लिए सिरदर्द पैदा करती दिखती हैं।

तालिबान की कोशिश है कि भारत के साथ अपने व्यापारिक, कूटनीतिक और राजनीतिक संबंधों को विस्तार दे, लेकिन ठीक यही बात पाकिस्तान को बड़ा झटका दे रही है।इस्लामाबाद नहीं चाहता कि अफ़गानिस्तान भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए, क्योंकि इससे क्षेत्र में नई दिल्ली का ही प्रभाव मज़बूत होगा। स्वाभाविक है कि पाकिस्तान का आका चीन भी ऐसा नहीं चाहता।

भारत द्वारा जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद, पाकिस्तान के लिए वहां भारत विरोधी भावनाओं को भड़काए रखना मुश्किल होता जा रहा है। इन परिस्थितियों में, पाकिस्तान एक बार फिर कश्मीर में हथियारबंद जिहाद जारी करने के लिए अपने यहां पल रहे जिहादी गुटों की ओर रुख कर रहा है, जिसका एकमात्र उद्देश्य भारत पर दबाव बनाना और क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ाना है।

एहसान के अनुसार, ”पाकिस्तान लगातार कूटनीतिक और आर्थिक दबावों का सामना कर रहा है। इस्लामाबाद अपनी आंतरिक विफलताओं और बढ़ती वैश्विक जांच से ध्यान हटाने के लिए भी कश्मीर में लश्करे-तैयबा और जैशे-मोहम्मद जैसे जिहा​दीगुटों को फिर से सक्रिय करना चाहता है।”

दुबई में अफगान विदेश मंत्री मुत्तकी के साथ भारत क विदेश सचिव विक्रम मिसरी (फाइल चित्र)

टीटीपी का पूर्व प्रवक्ता मानता है कि ‘पाकिस्तान की हिंसक नीतियों के पहले भी खतरनाक परिणाम निकले हैं और इस बार उनका असर और भी गंभीर होने की संभावना है। अगर पाकिस्तान अपनी पिछली रणनीतियों पर वापस लौटता है और कश्मीर में जिहादी गुटों को फिर से सक्रिय करता है, तो इससे हिंसा और अस्थिरता बढ़ेगी। इस तरह का राज्य प्रायोजित आतंकवाद न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र की शांति और स्थिरता के लिए खतरा है।’

पाकिस्तान की नाक में दम किए आतंकवादी गुट टीटीपी का पूर्व प्रवक्ता यहां तक लिखता है कि ‘पाकिस्तान ने लंबे समय से अफगानिस्तान में तालिबान पर दबाव बनाने और क्षेत्र में अराजकता पैदा करने के लिए एक प्रॉक्सी ताकत के रूप में आईएसआईएस का इस्तेमाल किया है। अफगानिस्तान में इस आतंकी गुट की बढ़ती गतिविधियां एक बड़ा खतरा पैदा करती हैं, लेकिन वे अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच संबंधों को और भी खराब कर देंगी। इसके अतिरिक्त, इससे यह और भी स्पष्ट हो जाएगा कि क्षेत्र की उथल-पुथल और भ्रष्टाचार के पीछे पाकिस्तान का राज्य तंत्र ही है।’

अगर पाकिस्तान अपनी इस दुर्नीति पर ही चलता है तो इससे उसी के लिए गंभीर खतरा पैदा होगा। इससे वैश्विक मंच पर आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देश के रूप में पाकिस्तान की छवि और उभर कर आएगी। पाकिस्तान की विदेश नीति में सेना और सत्ता अधिष्ठान की भूमिका हमेशा से ही खास रही है, इन नीतियों की योजना अक्सर राष्ट्रीय हितों के बजाय किसी खास समूह के वित्तीय और रणनीतिक हितों के आधार पर बनाई जाती है। नेताओं की सत्तावादी मानसिकता और युद्ध-आधारित नीतियों के कारण, पाकिस्तान संघर्षों में उलझा रहा है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ रही है और इसकी अर्थव्यवस्था संकट में फंस रही है।

वहां के सैन्य शासकों ने लगातार ऐसी स्थितियां बनाई हैं जो संघर्ष के माहौल को लंबा खींचती हैं, चाहे वह भारत के साथ तनाव के माध्यम से हो, अफगानिस्तान में हस्तक्षेप के माध्यम से अथवा घर में आतंकवाद के खिलाफ तथाकथित युद्ध के माध्यम से। इस नीति का सबसे बड़ा फायदा हमेशा से ही सैन्य नेतृत्व को मिला है, क्योंकि युद्ध की स्थितियों में रक्षा बजट बढ़ाना, अंतरराष्ट्रीय सहायता प्राप्त करना और राष्ट्रीय संसाधनों को नियंत्रित करना आसान हो जाता है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर, पाकिस्तान के प्रतिष्ठान ने कभी-कभी अमेरिका, चीन और खाड़ी देशों से सहायता और हथियार हासिल करने के लिए संघर्ष की स्थिति बनाए रखी है।

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