नेपाली प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली
नेपाल की आर्थिक स्थिति पिछले कुछ समय से गंभीर संकट में है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा नेपाल को आर्थिक मदद बंद करने के बाद, उस देश की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। सरकार मौजूदा खर्चों को पूरा नहीं कर पा रही है। इसी वजह से वहां की ओली सरकार को देश के आम नागरिकों के सामने कर्ज के लिए हाथ पसारने पड़ रहे हैं। नेपाल का सार्वजनिक ऋण तेजी से बढ़ रहा है। आज यह बोझ दोगुना हो गया है। चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में सार्वजनिक कर्ज में करीब 2 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है।
कर्ज की बात करें तो नेपाल में सरकारी कर्ज बढ़कर देश की जीडीपी का 45.77 प्रतिशत हो गया है। दस साल पहले तक, यह आंकड़ा जीडीपी का 22 प्रतिशत था। इसके साथ ही विदेशी कर्ज कुल कर्ज का 50.87 प्रतिशत है, जबकि घरेलू कर्ज 49.13 प्रतिशत है। अमेरिकी एजेंसी यूएसएआईडी के 95 अरब रुपये की परियोजनाओं को निलंबित करने से नेपाल के स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि जैसे क्षेत्रों पर सीधा असर पड़ा है। मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) परियोजना भी अमेरिकी मदद रुकने के बाद थम गई है।
नेपाल की सरकार इस साल 18.063 लाख करोड़ रुपये का बजट लागू कर रही है, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण बजट में करीब दस फीसदी की कटौती की गई है। पिछले सप्ताह सरकार ने नागरिक बचत बांड के जरिये 1,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। नेपाल दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। अभी तक यूएसएआईडी के जरिए अमेरिकी मदद मिल रही थी, लेकिन अब उस पर विराम लग गया है। इस वजह से यहां के कई परियोजनाओं पर ताले पड़ गए हैं।
नेपाल की आर्थिक बदहाली के कारण सरकार ने बिगड़ती आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए आर्थिक सुधार सुझाव आयोग का गठन तो किया गया है। इसके बावजूद इसमें सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। राजस्व कम इकट्ठा होने और आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती के कारण सरकार अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पा रही है। चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में सरकार ने लक्ष्य से करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये कम की वसूली की है। इस दौरान खर्च राजस्व से करीब 93 अरब रुपये ज्यादा रहा।
इसमें संदेह नहीं है कि नेपाल में चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ता गया है। दिसंबर 2024 के शुरू में, नेपाली प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने चीन की आधिकारिक यात्रा की थी। ओली की चीन यात्रा के पीछे बीजिंग और काठमांडू के बीच कई क्षेत्रों, जैसे राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक में सहयोग में आई गहराई वजह बनी थी। यहां बता दें कि 2017 में नेपाल आधिकारिक तौर पर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल हुआ था।
ओली की बीजिंग यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने बीआरआई के एक मसौदे पर हस्ताक्षर किए थे। नेपाल में चीनी राजदूत चेन सोंग का कहना था कि समझौते का उद्देश्य चीन से नीति और वित्तीय सहायता के साथ नेपाल के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। हालांकि, चीन और नेपाल के बीच इस द्विपक्षीय सहमति के बावजूद, बीआरआई ऋण और व्यवहार्यता के मुद्दे पर नेपाल के विभिन्न राजनीतिक दलों में कोई सहमति नहीं है।
नेपाल में चीन का बढ़ता दबदबा, स्वाभाविक रूप से भारत और अमेरिका के लिए चिंता का विषय बन गया है। नेपाल की वर्तमान ओली सरकार को चीन समर्थक माना जाता है। संभवत: इसीलिए नेपाल में चीनी आयात में वृद्धि हुई है जबकि भारत से आयात में गिरावट आई है। नेपाल का चीन की तरफ झुकाव अगर भारत के लिए चिंता का विषय है तो अमेरिका भी इसे चुपचाप नहीं देख सकता है।
नेपाल की आर्थिक बदहाली और चीन के बढ़ते दबदबे के बीच, नेपाल की सरकार और राजनीतिक दल पसोपेश में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि उस देश की विदेश नीति को स्पष्ट और व्यावहारिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखना चाहिए। नेपाल को इस बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का उपयोग अपने आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कर सकता है।
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