चीन का इस साल भी अपने सालाना रक्षा बजट को बढ़ाना भारत के लिए गौर करने जैसी बात है। अभी 5 मार्च को घोषित इस साल के अपने रक्षा बजट में चीन ने 7.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है और अब ये हो गया है 249 अरब डॉलर। इसके मुकाबले भारत का रक्षा बजट 79 अरब डॉलर का है यानी चीन के मुकाबले तीन गुना कम। हालांकि अमेरिका की बात करें तो उसका रक्षा बजट अब भी चीन के रक्षा बजट से चार गुना ज्यादा है। लेकिन दक्षिण एशिया की महाशक्ति बनकर उभर रहे भारत को चीन द्वारा रक्षा मद में किए जा रहे खर्च और सेना पर दिए जा रहे विशेष ध्यान के संदर्भ में ज्यादा होशियार होने की जरूरत है।
हालांकि चालाक चीन अपने सैन्य खर्च को अलग-अलग सेक्टर में आवंटित करके ऐसा दिखाता है कि उसका रक्षा बजट ‘सीमित’ है। लेकिन तथ्य यही है कि अगर अमेरिका के बाद सेना पर सबसे अधिक कोई देश खर्च करता है तो वह चीन ही है। फिलहाल अमेरिका का रक्षा बजट 950 अरब डॉलर के आसपास बताया जाता है।

लेकिन जैसा पहले बताया, चीन भारत के मुकाबले अपने रक्षा बजट में तीन गुना ज्यादा राशि लगा रहा हो तो इससे वैश्विक सुरक्षा और शक्ति संतुलन को लेकर गंभीर चिंताएं उभरनी स्वाभाविक हैं। पिछले कुछ साल से चीन में रक्षा बजट बढ़ाते जाने का चलन देखने में आया है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी सेना के सर्वोच्च कमांडर हैं ही लेकिन इधर कुछ साल से वे हर सेक्टर में सेना की तैयारी का जायजा लेते रहे हैं। विशेषकर भारत से सटे तिब्बत सेक्टर पर उनकी खास नजर है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी भले ही बयान देते हों कि ‘भारत और चीन को मिलकर काम करना होगा जिससे दोनों देशों का भला होगा’, लेकिन उनकी यह बौद्धिक बात बीजिंग की करनी के आगे खास मायने रखती नहीं दिखती जो भारत से दुर्भावना जताने का कोई मौका नहीं गंवाता।
चीन सरकार अपनी आधुनिक सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा देने पर पूरा फोकस कर रही है। इसमें उन्नत हथियार प्रणालियों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर युद्ध और अंतरिक्ष क्षमताओं जैसे क्षेत्रों में निवेश शामिल है। चीन के रक्षा बजट में लगतार बढ़त के बारे में रक्षा विशेषज्ञों की राय है कि चीन के रक्षा बजट में बढ़ोतरी अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने की उसकी मंशा को झलकाती है। चीन अपने पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने और दक्षिण चीन सागर में विवादित क्षेत्रों पर अपनी दावेदारी पुख्ता करने की कोशिश में है। साथ ही, वह अमेरिका के साथ रणनीतिक टकराव के मामले में बीस रहने की कोशिश भी कर रहा है।
सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की रक्षा मद में बढ़ोतरी का मुख्य उद्देश्य ताइवान और भारत जैसे देशों पर धमक जमाने की कोशिश भी है। चीन का यह कदम उसके शक्ति प्रदर्शन और भविष्य में संभावित टकरावों की तैयारी को भी झलकाता है। बीजिंग की यह मंशा उसके दीर्घकालिक रणनीतिक लक्ष्यों के अनुसार ही दिखती है। चीन ने अपने “चीनी सपने” के तहत 2049 तक एक मजबूत, उन्नत और प्रभावी वैश्विक शक्ति बनने का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है। इसके लिए उसे लगता है कि उसकी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए उसमें निवेश करना जरूरी है। लेकिन चीन का ऐसा करना क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
भारत की बात करें तो, विशेषज्ञों के अनुसार चीन के रक्षा बजट को देखते हुए संभवत: भारत भी अपनी रक्षा क्षमताओं को और बढ़ाने के लिए अपने रक्षा बजट पर गौर करे। आखिर दुनिया के इस हिस्से में उसे चीन के बरअक्स शक्ति संतुलन का ध्यान रखना ही होगा। रणनीतिक दृष्टि से भारत अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, रूस, फ्रांस जैसे देशों के साथ साझेदारी और सहयोग बढ़ा ही रहा है। तकनीकी रूप से भी भारत को अपनी क्षमताएं उन्नत करनी होंगी। साइबर सुरक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्रों में तो और गहनता से काम करना होगा।
क्षेत्रीय सहयोग के मामले में भारत दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के बीच एक अच्छी साख बनाए हुए है। भारत की कूटनीति बहुत हद तक चीन के प्रभाव को संतुलित करने और पड़ोसी देशों से सहयोग बढ़ाने में मददगार साबित होगी। आंतरिक सुरक्षा और सीमा विवाद जैसे मुद्दों पर भारत को विशेष ध्यान देते हुए अपना तंत्र मजबूत बनाए रखना होगा। रही बात चीन के साथ सीमा विवादों की तो कमांडर स्तर की बैठकें चल ही रही हैं। हालांकि चीन के अक्खड़ रवैए के चलते इनसे कोई ठोस नतीजे सामने नहीं आ रहे हैं, लेकिन कम से कम बातचीत का एक चैनल तो खुला ही हुआ है जो द्विपक्षीय संबंधों में एक अहम बात है। भारत के ऐसे कदमों का उद्देश्य न केवल चीन के साथ शक्ति संतुलन बनाए रखना है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए भी यह आवश्यक है। चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करने और अपनी सुरक्षा को मजबूत करने में इसका दूरगामी परिणाम होगा।

चीन के बढ़ते रक्षा बजट पर बीजिंग स्थित सैन्य विशेषज्ञ वांग शियाओशुआन का कहना है कि यह वृद्धि उचित और संयमित है। वह बताते हैं कि 2016 से चीन के रक्षा खर्च में वृद्धि 10 प्रतिशत से कम रही है, और 2025 के लिए 7.2 प्रतिशत की वृद्धि पिछले वर्षों के खर्च को देखते हुए ही है। वांग मानते हैं कि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में चीन का रक्षा खर्च पिछले अनेक वर्षों से 2 प्रतिशत से ज्यादा नहीं रहा है, और अमेरिका तथा उसके सहयोगियों की तुलना में यह बहुत कम है।
दुनिया के अनेक रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि चीन का असल रक्षा व्यय घोषित आंकड़ों से काफी ज्यादा है। उनका अनुमान है कि असली रक्षा बजट तो इसके मुकाबले कम से कम 40-50 प्रतिशत ज्यादा ही होगा। चीन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के आधुनिकीकरण और जल, थल, वायु, परमाणु, अंतरिक्ष और साइबर सहित विभिन्न क्षेत्रों में अपनी धमक बनाए रखने के लिए इतना पैसा खर्च कर रहा है।
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