गुजरात

‘नारी शक्ति से ब्रांड बना अमूल’

‘ब्रांड का कमाल’ सत्र में अमूल के एमडी जयेन मेहता और गुजरात विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी विधायक रिवाबा जडेजा ने अपने विचार रखे। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश

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पाञ्चजन्य ब्यूरो

अमूल के प्रबंध निदेशक जयेन मेहता ने कहा, ‘‘ये जो छोटी सी अमूल गर्ल है, यह 60 साल पहले भी 6 साल की थी और 60 साल बाद भी 6 साल की ही है। इस सब के पीछे महिलाओं का योगदान है। गुजरात के 18,600 गांवों में 3,60,000 महिलाएं पशुपालन का काम करती हैं। वे हर दिन 310 लाख लीटर दूध का उत्पादन करती हैं। उन्होंने सहकारिता के माध्यम से इतना बड़ा काम किया है। ऐसे में उनके इस काम की सराहना करने के लिए सप्ताह के सातों दिन और 24 घंटे भी कम हैं। अमूल की कल्पना 80 साल पहले की गई थी, तो दो दूध मंडली और 250 सौ लीटर दूध से इसकी शुरुआत हुई थी।

आज इसका टर्नओवर 80,000 करोड़ रु. है। ब्रांड वैल्यू के हिसाब से अमूल की दुनिया में एक अलग पहचान है। इसका सीधा श्रेय गांव की महिलाओं को जाता है। यह महिलाओं का ही परिश्रम है, जिसने इसे एक ब्रांड दिया है। पीएम मोदी के सपने कि दुनिया की हर मेज पर भारत का एक फूड ब्रांड हो, इसके लिए अमूल लगातार काम कर रहा है। संस्कृत का एक शब्द है ‘अमूल्य’, उसमें से ही ‘अमूल’ चुना गया और इसके साथ इस सफर की शुरुआत हुई थी।

उस दौरान हमारे पास प्रचार के लिए पैसे नहीं थे तो आउटडोर विज्ञापन का माध्यम चुना। उसके साथ यह ब्रांड बनना शुरू हुआ। आज भी हम विज्ञापन पर अपनी कुल कमाई का केवल 0.6 फीसदी ही खर्च करते हैं। इसका कारण यह है कि अगर आप अमूल का कोई उत्पाद 100 रुपए में खरीदते हैं तो किसान को उसका 80-85 प्रतिशत हिस्सा मिलता है। ये विश्वास है किसानों, उपभोक्ताओं का, वे ही इस संस्था के आगे बढ़ने का मूलभूत कारण हैं। यह विश्वास विज्ञापन से नहीं आता है। यह विश्वास गुणवत्ता और उचित व युक्ति संगत दाम के चलते आता है।’’

‘खुद की पहचान होनी आवश्यक’

रिवाबा जडेजा ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि हर एक स्त्री ब्रांड के माध्यम से आगे बढ़ना चाहती है। चाहे आप उसे सरनेम से ही जोड़ लीजिए। मैं तो एक जरिया मात्र हूं कि मैं बहुत सारी हमारी बहनों की आवाज बन सकती हूं। अगर मैं उनके लिए केंद्र और राज्य के माध्यम से कुछ कर सकती हूं तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। अगर कोई मेरे पति के माध्यम से भी मुझे जानता है तो भी यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मेरे पिता ने मुझे बचपन से ही यह सिखाया है कि खुद की पहचान का होना कितना आवश्यक है।

जब आप किसी संबंध के जरिए कहीं पहुंचते हैं तो उस दौरान खुद को जीवंत बनाए रखना और समाज के लिए कार्य करना बड़ा चुनौतीपूर्ण होता है। जब मैंने राजनीति में प्रवेश किया तो विपक्ष मीडिया के जरिए एक ही बात चला रहा था कि ‘ये तो एक सेलिब्रिटी की पत्नी हैं। इन्हें तो हर महीने दो महीने में अपने पति के साथ बाहर जाना पड़ेगा। ऐसे में क्या आपके बीच में ये रह पाएंगी?’ उस दौरान मुझे अपनी विधानसभा के लोगों को यह समझाना पड़ता था। लोगों ने मुझ पर भरोसा किया और मुझे चुना, क्योंकि लोग समझदार हैं, आप उन्हें अधिक समय तक मूर्ख नहीं बना सकते। ढाई साल के राजनीतिक कॅरियर में जिस प्रकार से लोगों ने मुझपर अपना भरोसा दिखाया है, उससे मुझे यह अहसास हुआ है कि जो खबर मेरे बारे में फैलाई जा रही थी, वह कोरी अफवाह थी।

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