यूनुस का पूरा जोर यही दिखाने पर रहा कि 'बांग्लादेश भारत को बहुत सम्मान देता है'। वे प्रयासपूर्वक यही जताते रहे कि दोनों पड़ोसियो के बीच आज भी संबंध मधुर हैं और भविष्य में भी मधुर ही रहने वाले हैं।
यूनुस की बात से तो लगता है कि बांग्लादेश अब अपनी असलियत समझ रहा है, हालांकि कुछ विशेषज्ञ इसे कूटनीतिक चाल भी मान रहे हैं। कारण यह कि यूनुस की अब सरकार में स्थिति कमजोर हो चली है, उनके साथी ‘सलाहकार’ सरकार से कन्नी काटकर अपनी नई पार्टी बना रहे हैं। इसलिए शायद अब उन्हें भारत का अहसास हो रहा हो।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस क्या अब पड़ोसी के मोल की असलियत समझ रहे हैं या सिर्फ कूटनीतिक चाल चलते हुए अपने को बड़ा ‘भला मानस’ दिखा रहे हैं। एक विदेशी मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने यहां तक कहा है कि ‘बांग्लादेश का भारत से संबंध बिगाड़ कर गुजारा नहीं हो सकता, हमें रिश्ते सुधारने ही होंगे।’ क्या उनके इस बयान के पीछे उनकी डगमगाती कुर्सी की मजबूरी है या अब वे विदेश संबंधों का कायदा समझ रहे हैं?
ब्रिटिश चैनल बीबीसी को दिए अपने इंटरव्यू में यूनुस ने ये तो कहा कि ‘भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध ‘बहुत अच्छे’ हैं, लेकिन उन्होंने इन संबंधों को बिगाड़ने वाले मजहबी उन्मादियों की कलई नहीं खोली। यूनुस ने कहा, “हमारे रिश्ते बिगड़े नहीं हैं, ये सदा अच्छे ही बने रहेंगे।”
यूनुस की इस बात से तो लगता है कि बांग्लादेश अब अपनी असलियत समझ रहा है, हालांकि कुछ विशेषज्ञ इसे कूटनीतिक चाल भी मान रहे हैं। कारण यह कि यूनुस की अब सरकार में स्थिति कमजोर हो चली है, उनके साथी ‘सलाहकार’ सरकार से कन्नी काटकर अपनी नई पार्टी बना रहे हैं। इसलिए शायद अब उन्हें भारत का अहसास हो रहा हो।
अभी हाल तक भी हिन्दुओं के प्रति हिंसा को नकारकर भारत के प्रति खूब उलटा—सीधा बोलते आ रहे यूनुस को अमेरिकी डीप स्टेट का प्यादा मानने वालों की भी संख्या कम नहीं है। भारत विरोधी तत्वों को अपने देश में हवा देते आ रहे मोहम्मद यूनुस अब भारत से ‘अच्छे संबंध’ जैसी बातें कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ ऐतिहासिक रूप से अपने दुश्मन पाकिस्तान के साथ भी रिश्ते गहराते जा रहे हैं।
5 अगस्त 2024 को शेख हसीना सरकार को अपदस्थ करने के बाद से, यूनुस ने न सिर्फ बांग्लादेश के गठन में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को नकारा है बल्कि बांग्लादेश मुक्तिसंग्राम की हर यादगार को मिटाने का दुष्कृत्य ही किया है। लेकिन अब शायद उन्हें समझ आ रहा है कि भारत से संबंध बेहतर बनाए रखने का कोई विकल्प नहीं है।
जैसा पहले बताया, यूनुस सिर्फ पाकिस्तान के सामने ही झुकते नहीं दिख रहे हैं बल्कि पाकिस्तान को अपने इशारों पर नचाने वाले विस्तारवादी चीन को भी अपना ‘बड़ा भाई’ बताने लगे हैं।
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में यूनुस का पूरा जोर यही दिखाने पर रहा कि ‘बांग्लादेश भारत को बहुत सम्मान देता है’। वे प्रयासपूर्वक यही जताते रहे कि दोनों पड़ोसियो के बीच आज भी संबंध मधुर हैं और भविष्य में भी मधुर ही रहने वाले हैं। इसीलिए उन्होंने कहा कि ‘इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है’। इसका कारण उनके हिसाब से ‘दोनों देशों का एक-दूसरे पर निर्भर होना’ है।
बांग्लादेश में पिछले लंबे समय से हिन्दू विरोधी हिंसा को हल्के स्तर पर दिखाने की कोशिश करते हुए यूनुस यह कहना नहीं भूले कि ‘दुष्प्रचार’ की वजह से ‘भारत के साथ थोड़ा—बहुत संघर्ष’ पैदा हुआ था। जलते पूजा पंडालों, रोते—बिलखते हिन्दू पुरुषों—महिलाओं, हिन्दू ग्रामीणों के क्षत—विक्षत शवों के दृश्यों को वे ‘दुष्प्रचार’ कहें तो कहें, लेकिन असलियत आज पूरी दुनिया को पता है। संयुक्त राष्ट्र और कई पश्चिमी देशों के संसद सदनों तक उस हिंसा की गूंज सुनाई दे चुकी है।
लेकिन अब वह कोशिश कर रहे हैं कि यह जो ‘भारत के साथ गलतफहमी’ हुई है उसे दूर किया जाए। ऐसा है तो यूनुस बताएं कि हिन्दुओं पर हमले करने वाले कौन लोग थे, कौन थे जिन्होंने मंदिर जलाए, बलात्कार किए। ‘दुष्प्रचार’ हुआ है तो वह शुरू कहां से हुआ?
बांग्लादेश के नेता को कहना ही पड़ा कि ‘हमारी एक दूसरे पर निर्भरता है।’ यूनुस ने इतने ऐतिहासिक, राजनीतिक तथा आर्थिक कारण भी गिना दिए इस ‘निर्भरता’ के कि उन्हें लगता है ‘हम कटकर नहीं रह सकते।’ यूनुस के अनुसार, भारत और बांग्लादेश के बीच संपर्क बना रहा है, दोनों के उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों ने एक दूसरे देश का दौरा किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात भी की थी।
इस सबके बावजूद बात आकर बांग्लादेश के पाकिस्तान के साथ संबंधों और हिन्दू अल्पसंख्यकों के सम्मान और एक आम नागरिक के नाते उनके अधिकारों पर आकर टिकती है। पाकिस्तान से निकटता उसे भारत के प्रति शत्रुभाव रखने की शह देती रहेगी और बांग्लादेश को भारत विरोधी सीमा पार आतंकवाद का एक ‘लांचपैड’ जैसा बना देगी। और भारत अपनी संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर किसी से कोई समझौता नहीं कर सकता।
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