राजस्थान के सीकर जिले के खाटू श्याम धाम का फाल्गुन लक्खी मेला और निशान यात्रा राजस्थान के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में गिना जाता है। 28 फरवरी से शुरू हो चुका यह सुप्रसिद्ध मेला इस वर्ष को 11 मार्च को सपन्न होगा। मेला प्रशासन के अनुसार इस बार खाटू मेले में वीआईपी दर्शनों पर रोक रहेगी। यहाँ माथा टेकने वाले श्रद्धालुओं की प्रगाढ़ आस्था है कि खाटू बाबा के दर्शनमात्र से श्रद्धालुओं के जीवन में खुशियों के भंडार भर जाते हैं। फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारस (एकादशी तिथि) इस मेले की सबसे महत्वपूर्ण तिथि होती है। इस दिन खाटू बाबा का दर्शन पूजन अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है। प्रस्तुत हैं खाटू मेले से जुड़ी तमाम रोचक जानकारियां-
श्याम बाबा के रूप में पूजे जाते हैं बर्बरीक
बर्बरीक से खाटूश्याम बनने की कथा महाभारत युद्ध से जुड़ी है। महाभारत में वर्णित प्रसंग के अनुसार बर्बरीक महाबली भीम एवं हिडिम्बा के वीर पुत्र घटोत्कच व उसकी वीरांगना पत्नी दैत्य मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र थे। उनका यह नाम उनके बब्बर शेर के समान घने बालों के कारण पड़ा था। वे बाल्यकाल से ही बहुत वीर थे। उन्होंने युद्धकला अपनी मां से सीखी थी तथा घोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अमोघ बाण वरदान में प्राप्त किये थे। जब कौरव-पांडवों में युद्ध होना सुनिश्चित हो गया तो उस वीर नवयुवक ने भी अपनी मां से उस युद्ध में शामिल होने की आज्ञा मांगी।
मां ने सहर्ष अनुमति देते हुए कहा- जा बेटा! पर हारे का सहारा बनना। बर्बरीक ने अपनी मां से वादा किया कि वे महाभारत के युद्ध में कमजोर पक्ष का साथ देंगे और उन्होंने कौरवों के लिए लड़ने का फैसला किया। भगवान श्रीकृष्ण यह बात जानते थे कि अगर बर्बरीक कौरवों का साथ देंगे तो पांडवों की हार तय है। इसलिए वे ब्राह्मण का वेष बनाकर बर्बरीक के पास गये और परिचय जान उन्होंने कहा– अस्त्र-शस्त्र के नाम पर तुम्हारे पास सिर्फ एक धनुष और तूणीर में केवल तीन बाण हैं, क्या इन्हीं के बल पर तुम इस महायुद्ध में अपना पराक्रम दिखाओगे? इस पर बर्बरीक ने विनम्रता से कहा- ब्राह्मण देवता ! महादेव द्वारा प्रदत्त इन बाणों को आप साधारण न समझें। यदि तीनों बाण चल गये तो सृष्टि का समूल नाश हो जाएगा। यह सुनकर ब्राह्मण वेशधारी श्रीकृष्ण ने उसकी परीक्षा लेने के लिए कहा- क्या तुम सामने के उस पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक बाण से वेध सकते हो?
शीश नवा कर बर्बरीक ने जैसे ही बाण संधान किया, सहसा लाखों बाणों ने प्रकट हो कर पीपल के पेड़ के सारे पत्तों को बेध दिया। यह देखकर उन ब्राह्मण ने एक पत्ते को चुपके से अपने पैर के नीचे दबा दिया। यह देख बर्बरीक बोले- ब्राह्मण देव, पैर हटा लीजिए नहीं तो चरण भी बिंध जाएगा और ब्राह्मण के पैर हटते ही बाण ने उस आखिरी पीपल के पत्ते को भी बेध दिया। तब बर्बरीक के शस्त्र कौशल की प्रशंसा कर ब्राह्मण वेशधारी श्रीकृष्ण बोले-महावीर तुम युद्ध कौशल में हो; क्या तुम उतने ही बड़े दानवीर भी हो? इस पर बर्बरीक ने कहा-आप मांगकर देख लीजिए, मैं आपको वचन देता हूं कि शीश देकर भी पीछे नहीं हटूंगा। तब ब्राह्मण वेशधारी श्रीकृष्ण वास्तविक रूप में प्रकट होकर कर बोले- हे महावीर! यह महायुद्ध तुम्हारा महाबलिदान चाहता है।
यह कह कर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से दान में उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक ने तुरंत अपना शीश दान कर दिया। बर्बरीक के इस बलिदान से प्रभावित होकर उनसे वर मांगने को मांगने कहा। तब बर्बरीक बोले कि उनकी इच्छा पूरा युद्ध देखने की है। श्रीकृष्ण ने तथास्तु कहकर बर्बरीक के कटे शीश को युद्धभूमि के निकट एक पहाड़ी पर स्थापित कर दिया। वहीं से बर्बरीक ने महाभारत का पूरा युद्ध अपनी आंखों से देखा। श्रीकृष्ण ने उन्हें यह भी आशीर्वाद दिया कि वे कलयुग में उनके श्याम अवतार के रूप में पूजे जाएंगे।
1027 ई. में बना था खाटू धाम का श्याम मंदिर
किवदंती है कि महाभारत युद्ध के पश्चात बर्बरीक के कटे शीश को राजस्थान के सीकर जिले खाटू कस्बे में दफनाया गया था। कहा जाता है कि एक गाय उस स्थान पर आकर रोजाना अपने स्तनों से दूध की धारा बहाती थी। यह देख कर लोगों ने उस स्थान पर खुदाई की तो वहां से एक धड़विहीन दिव्य मानव शीश प्राप्त हुआ, जिसे एक स्थानीय ब्राह्मण ने अपने घर के पूजा स्थल पर स्थापित कर लिया। उसी दौरान उस प्रान्त के राजा को स्वप्न में उस दिव्य शीश के दर्शन हुए और मन्दिर निर्माण कर वहां उस शीश को प्रतिष्ठित करने की देव आज्ञा प्राप्त हुई। कहा जाता है कि खाटू क्षेत्र में जिस स्थान से धरती से वह शीश प्रकट हुआ था; उस स्थल पर सन 1027 ई. में राजा रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा एक सुन्दर मन्दिर का निर्माण किया गया था और कार्तिक माह की एकादशी को उस मंदिर में उस दिव्य शीश की प्राण प्रतिष्ठा की गयी। तभी से यह स्थल खाटू के श्याम बाबा के मंदिर के नाम से जाना जाता है। कालांतर में मारवाड़ के शासक दीवान अभय सिंह ने सन 1720 ई. में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
प्रति वर्ष लाखों शीश झुकते हैं खाटूधाम के वार्षिक मेले में
श्याम भक्त खाटू श्याम के वार्षिक मेले में प्रति वर्ष लाखों श्याम भक्तों का सैलाब उमड़ता है। इस फाल्गुन मेले के दौरान लाखों निशान (ध्वजा) बाबा श्याम को चढ़ाए जाते हैं। फाल्गुन माह में लगने वाले लक्खी मेले में पग-पग पर श्याम के दीवाने ही नजर आते हैं। फाल्गुन मेले के मौके पर लोग अपने घरों से ही कई किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करके खाटू श्यामजी पहुंचते हैं। मान्यता है कि बाबा श्याम के दरबार में केसरिया रंग का यह निशान चढ़ाने से हर मनोकामना पूरी होती है। फाल्गुन मेला के दौरान श्याम कुंड में डुबकी लगाना अत्यधिक शुभ माना जाता है। मान्यता है कि खाटू स्थित श्याम कुंड वाली जगह पर ही बर्बरीक का शीश पहली बार प्रकट हुआ था। माना जाता है कि श्याम कुंड में स्नान करने से भक्तों में सकारात्क ऊर्जा का संचार होता है। वह बीमारियों और व्याधियों से मुक्त हो जाता है। इसलिए बड़ी संख्या में फाल्गुन मेले के दौरान भक्त श्याम कुंड में स्नान करते हैं।
मेले में भक्तों के खाने-पीने के लिए निशुल्क भंडारे चलाए जाते हैं। मेले के आखिरी दिन बाबा के लिए खीर और चूरमा का विशेष प्रसाद बनाया जाता है। मेले में विशेष भजन संध्या का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें प्रसिद्ध भजन गायक अपने भजनों से भक्तों का मनोरंजन करते हैं। यह मेला फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर द्वादशी (बारस) तक चलता है। एकादशी के दिन भक्तों को दर्शन देने के लिए श्याम बाबा रथयात्रा से नगर भ्रमण करते हैं। पूरे वर्ष में सिर्फ एक यही दिन होता है जब बाबा श्याम के दर्शन मंदिर के बाहर भी हो सकते हैं। मेले में आने वाले कई श्रद्धालु होली तक खाटू नगरी में रुकते हैं और होली के दिन बाबा श्याम के दरबार में रंगों का त्यौहार मनाने के पश्चात अपने घर प्रस्थान करते हैं।
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