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USAID : डॉलर से डावांडोल, हाथ बाहरी

अमेरिकी एजेंसी यूएसएड द्वारा भारत में चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने के षड्यंत्र का खुलासा। अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान को कांग्रेस ने बताया बेतुका। भारतीय मीडिया के एक वर्ग ने लोगों को भ्रमित करने का किया प्रयास

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आशीष कुमार ‘अंशु’

भारत में चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने के लिए अमेरिकी एजेंसी यूएसएड (USAID) द्वारा वित्तपोषण को लेकर बहस छिड़ी हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यूएसएड ने भारत में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए 21 मिलियन डॉलर दिए थे। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता से हटाने के प्रयास का हिस्सा था। लेकिन इस पर मीडिया और सोशल मीडिया में चर्चा कुछ इस तरह से हुई मानो भारत में ऐसा कोई पैसा आया ही नहीं था। ट्रंप ने भूलवश कह दिया कि यूएसएड ने मतदान को प्रभावित करने के लिए भारत में करोड़ों रुपये भेजे। वहीं, कांग्रेस ने ट्रंप के बयान को बेतुका और राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश करार दिया है। ट्रंप के प्रशासन द्वारा यूएसएड के 90 प्रतिशत से अधिक सहायता अनुबंधों में कटौती की घोषणा के बाद इसके कर्मचारियों को 27 फरवरी को अपने निजी सामान इकट्ठा करने और डेस्क खाली करने के लिए वाशिंगटन स्थित मुख्यालय में कुछ देर के लिए प्रवेश करने की अनुमति दी गई।

दरअसल, जिस रास्ते से यूएसएड का पैसा भारत आना था, सरकार ने वित्तपोषण लाइसेंस रद्द करके उसके स्रोत को ही सुखा दिया है। कभी ‘साम्प्रदायिक शक्तियों’ से लड़ने के नाम पर तो कभी हिंदू समाज को जाति में बांटकर चुनावों में इस विदेशी पैसे से कांग्रेस को लाभ पहुंचाया जाता था। इस पैसे का उपयोग भारत में आंदोलनों में किया जाता था। जैसे-जैसे विदेशी चंदे पर गृह मंत्रालय की निगरानी बढ़ी है, देश को बांटने वाली शक्तियां और कांग्रेस, दोनों कमजोर हुई हैं। विदेशी वित्तपोषण बंद होने से फाइव स्टार आंदोलनजीवी एनजीओ और ‘थिंक टैंक’ परेशान हैं।

इंडियन एक्सप्रेस ने 21 फरवरी को यूएसएड द्वारा ‘वोटर टर्नआउट’ के लिए फंडिंग की एक अधूरी कहानी ‘21 मिलियन यूएस डॉलर भारत नहीं आ रहा था’ शीर्षक से प्रकाशित की। इसमें बताया गया कि वह पैसा बांग्लादेश जा रहा था। इंडियन एक्सप्रेस ने कांग्रेस के परामर्श पर मनगढंत कथा प्रचाारित कर दी। उसने अपने पाठकों से न केवल सच्चाई छिपाई, बल्कि उन्हें गुमराह भी किया। अपने लेख में उसने फंडिंग का गलत संदर्भ दिया, जो वास्तव में भारत में मतदाता प्रतिशत को ‘बढ़ावा’ देने के लिए प्रस्तावित था।

‘वोटर टर्नआउट’ के लिए 21 मिलियन डॉलर (लगभग 182 करोड़ रुपये) भारत को देने का बयान राष्ट्रपति ट्रंप ने बार-बार दोहराया। 2023-24 में यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) द्वारा 750 मिलियन डॉलर (लगभग 6,501 करोड़ रुपये) की जो फंडिंग भारत में की गई, वह कृषि और अन्य कार्यक्रमों से जुड़ी सात परियोजनाओं के लिए थी। केंद्रीय वित्त मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में यह बात सामने आ चुकी है। उसमें ‘वोटर टर्नआउट’ का उल्लेख नहीं है। फिर 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग का मामला क्या था?

डिपार्टमेंट आफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डीओजीई) के प्रमुख एलन मस्क ने ‘एक्स’ पर यूएसएड के माध्यम से दी जाने वाली सहायता राशि की कई खेप रद्द करने की बात कही है। इसमें 21 मिलियन डॉलर भी शामिल हैं। इससे यह साबित हो गया कि इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित व प्रचारित खबर फर्जी थी। उसने रिपोर्ट इस तरह से लिखी थी कि उसे पढ़कर लोग यह मान लें कि ऐसी कोई राशि भारत में आने वाली नहीं थी। ट्रंप ने गलती से बांग्लादेश की जगह भारत का नाम लिया है। इस फेक न्यूज को बिना देर किए सोशल मीडिया पर साझा करने वालों में कई ‘फैक्ट चेकर’ भी थे।

वे इस फेक न्यूज से इतने अभिभूत थे कि उन्होंने इसका फैक्ट चेक करना भी जरूरी नहीं समझा। इनमें राजदीप सरदेसाई, पूर्व पत्रकार व वर्तमान राज्यसभा सांसद सागरिका घोष, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, वेबसाइट मॉडरेटर मोहम्मद जुबैर, पत्रकार सबा नकवी, यूट्यूबर संकेत उपाध्याय, साकेत गोखले, सुशांत सिंह, परंजॉय गुहा ठाकुरता, केसी सिंह जैसे लोग शामिल थे। दरअसल, अंग्रेजी अखबार की खबर भारत के आंदोलनजीवियों और कांग्रेसियों के लिए ‘राहत की सांस’ बनकर आई थी, इसलिए पूरा इकोसिस्टम तेजी से सक्रिय हो गया।

हमने यूएसएआईडी की कुछ गतिविधियों और फंडिंग के संबंध में अमेरिकी प्रशासन द्वारा दी गई जानकारी देखी है। ये स्पष्ट रूप से बहुत परेशान करने वाली है। इससे भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप को लेकर चिंताएं पैदा हो गई हैं। संबंधित विभाग और एजेंसियां इस मामले को देख रही हैं। उनकी रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।

– रणधीर जायसवाल, प्रवक्ता, विदेश मंत्रालय

सरल शब्दों में मतदाता प्रतिशत बढ़ाने के लिए यूएसएड की प्रस्तावित फंडिंग की ‘प्रस्तावना’ को राहुल गांधी के उस बयान से समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे ‘इंडियन स्टेट’ से लड़ रहे हैं। इस लड़ाई के लिए यूएसएड से पैसे मिल रहे थे। लेकिन ट्रंप के कारण अमेरिकी डीप स्टेट की कलई खुल गई कि भारत में मौजूदा सरकार को अस्थिर करके एक नई सरकार को गद्दी पर बिठाने के लिए यूएसएड मोटी रकम निवेश करने को तैयार था। 2024 लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बाद भी कांग्रेस आईटी सेल के प्रमुख पवन खेड़ा पूरे आत्मविश्वास से कहते दिखते थे कि यह सरकार अधिक समय तक चल नहीं पाएगी। यह ‘डीप स्टेट’ के धन से हासिल विश्वास ही होगा, नहीं तो जिस पार्टी को जनता बार-बार नकार दे और हार की समीक्षा करने की जगह उस पार्टी का नेता बहुमत से सत्ता में आने वाली सरकार को गिराने की बात मीडिया के सामने बार—बार नहीं करता।

अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के साथ कांग्रेस

गत वर्ष दिसंबर में फ्रांसीसी आनलाइन समाचारपत्र मीडियापार्ट ने एक खुलासा किया था। इसमें कांग्रेस और उसके प्रथम परिवार पर भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों से साठगांठ की बात कही गई थी। कांग्रेस उपाध्यक्ष सोनिया गांधी पर जॉर्ज सोरोस से निकटता और कांग्रेस पर उसके एजेंडे के अनुसार काम करने के आरोप लगे थे। इसमें सोरोस द्वारा वित्त पोषित संस्था ‘फोरम आफ डेमोक्रेटिक लीडर्स इन एशिया पैसिफिक’ (एफडीएल-एपी) का नाम भी आया था, जिसमें सोनिया गांधी को सह-अध्यक्ष बताया गया था। एफडीएल-एपी पाकिस्तान समर्थक और भारत विरोधी संस्था है, जो कश्मीर के स्वतंत्र बनाने की वकालत करती है।

डीओजीई में प्रस्तावित राशि थी, उसमें भारत के लिए 21 मिलियन डॉलर और बांग्लादेश के लिए 29 मिलियन डॉलर था। लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की ‘खोजी रिपोर्ट’ में भारत भेजे जाने वाले पैसे का जिक्र छिपाया गया। यूएसएड ने 2020 से भारत में लगभग 650 मिलियन डॉलर भेजे हैं, जो 2001 के बाद से 2.86 बिलियन डॉलर के कुल वित्तपोषण का लगभग पांचवां हिस्सा है।

उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान एनजीओ को होने वाली एफसीआरए फंडिंग बढ़ गई थी। केयर इंटरनेशनल और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर), ये दोनों आक्सफैम इंडिया से जुड़ी संस्थाएं हैं। आक्सफैम को वित्त पोषण अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस करता है। भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोरोस की नफरत किसी से छिपी नहीं है। वह साफ शब्दों में कह चुका है कि वह भारत की मोदी सरकार को अस्थिर करने की मंशा रखता है। कथित थिंक टैंक सीपीआर को कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की बेटी यामिनी अय्यर चलाती हैं। नियमों के उल्लंघन पर गृह मंत्रालय ने पिछले वर्ष जनवरी में इसका एफसीआरए रद किया था। वर्ल्ड विजन इंटरनेशनल से असम के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का संबंध रहा है।

इसे 71.89 मिलियन डॉलर की मदद मिली। वर्ल्ड विजन का भी एफसीआरए लाइसेंस रद्द हुआ है। विदेशी पैसों में हेरा-फेरी के मामले में अब तक लगभग 2,000 एनजीओ पर कार्रवाई हो चुकी है, जिसमें राजीव गांधी फाउंडेशन भी शामिल है। जब संदिग्ध गतिविधियों और एफसीआरए खातों में विसंगतियों वाले सभी एनजीओ पर कार्रवाई हो रही है, ऐसे में यूएसएड को भारत में मतदान की प्रक्रिया को प्रभावित करने के अपने प्रयास में निराशा मिली है तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अब तो अमेरिका भी कह रहा है कि भारत को इस मदद की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस के राज में गोरी चमड़ी वाले भारत को न केवल सपेरों और मदारियों का देश समझते थे, बल्कि ऐसा लिखते और बोलते भी थे। अब वैश्विक पटल पर भारत की छवि बदल रही है, तो उनकी दृष्टि भी बदल रही है।

वामपंथियों का पोषक यूएसएड

वामपंथी इकोसिस्टम के लिए पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने यूएसएआईडी नाम से एक ऐसा ‘डेमोक्रेटिक’ औजार स्थापित किया, जो कागज पर स्वतंत्र एजेंसी के तौर पर काम कर रही थी, लेकिन उसकी वैचारिकी और निष्ठा डेमोक्रेट सरकार के प्रति थी। इस बीच, कई बार रिपब्लिकन सरकार अमेरिका में आई, लेकिन यूएसएड का तंत्र नहीं बदला। कैनेडी के बाद रिचर्ड निक्सन, गेराल्ड फोर्ड, रोनाल्ड विलसन रीगन, एच.डब्ल्यू. बुश, जॉर्ज डब्ल्यू. बुश जैसे ताकतवर अमेरिकी रिपब्लिकन राष्ट्रवादी राष्ट्रपति हुए, लेकिन उन्होंने यूएसएआईडी को मनमानी करने दी। यूएसएआईडी दुनियाभर के वामपंथी संगठनों की पहचान करके उन्हें महिला स्वास्थ्य, साफ पानी, जलवायु के नाम पर संसाधन उपलब्ध कराता रहा और बड़ी चालाकी से पैसा एक खास विचारधारा वाले लोगों के पास पहुंचाता रहा। जब डोनाल्ड ट्रंप पहली बार रिपब्लिकन नेता के तौर अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्हें एनजीओ और मीडिया से कुछ उसी तरह के विरोध का सामना उन्हें करना पड़ा, जैसा भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करना पड़ा था। डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में ही यह समझ गए थे कि अमेरिका में सरकार भले ही रिपब्लिकन की हो, पर तंत्र डेमोक्रेटका चल रहा है। इसलिए जब अमेरिका में यूएसएआईडी पर कार्रवाई हुई, तो दुनियाभर के ‘लिबरल’ सड़क पर उतर आए।

दरअसल, यूएसएड की स्थापना शीत युद्ध के दौरान 1961 में सोवियत प्रभाव को कम करने के लिए की गई थी ताकि अमेरिकी नैरेटिव के प्रचार के लिए दुनिया भर में इको सिस्टम खड़ा किया जा सके। इसे ध्यान में रखकर ही विदेशी सहायता कार्यक्रम चलाया गया, पर यह सिर्फ सहायता नहीं थी, बल्कि अमेरिका इन पैसों के जरिये ‘डेमोके्रटिक घुसपैठ’ कर रहा था। इसका परिणाम भारत जैसे देश में यह हुआ कि कुछ पत्रकार, प्राध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता, वंचित समाज से आने वाले लोग कांग्रेस के कार्यकर्ता की तरह काम करने लगे। लेकिन जैसे ही इन लोगों ने कांग्रेस की आलोचना की या भाजपा की तरफ झुकाव दिखाया, एक बड़े गिरोह ने उन पर ‘गोदी मीडिया’ या ‘बिका हुआ’ का ‘लेबल’ चिपका दिया। रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर ने खुलासा किया है कि 2023 में यूएसएआईडी ने 30 से अधिक देशों के 6,200 पत्रकारों, 707 मीडिया आउटलेट्स और 279 मीडिया केंद्रित एनजीओ को आर्थिक सहायता दी। इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने वैचारिकी के इस वैश्विक संघर्ष को वाशिंगटन में सीपीएसी 2025 सम्मेलन में समझाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा,‘‘वामपंथी घबराए हुए हैं और ट्रंप की जीत के साथ उनकी चिड़चिड़ाहट उन्माद में बदल गई है। न केवल इसलिए कि राष्ट्रवादी जीत रहे हैं, बल्कि इसलिए कि राष्ट्रवादी अब विश्व स्तर पर सहयोग कर रहे हैं। जब बिल क्लिंटन और टोनी ब्लेयर ने 90 के दशक में वामपंथियों का वैश्विक उदारवादी नेटवर्क बनाया, तो उन्हें ‘राजनीतिज्ञ’ कहा जाने लगा। आज, जब ट्रंप, मेलोनी और मोदी बात करते हैं, तो उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा कहा जाता है। यह दोहरा मापदंड है, लेकिन हम इसके आदी हैं और अच्छी खबर यह है कि लोग उनके झूठ पर अब विश्वास नहीं करते हैं। चाहे वे हम पर जितना कीचड़ उछालते रहें, उसके बावजूद देश के नागरिक हमें वोट दे रहे हैं।’

डोज ने सीईपीपीएस को भारत के लिए दाता एजेंसी के रूप में नामित किया है, जिसका वित्तपोषण यूएसएआईडी करता है। डोज द्वारा यूएसएआईडी की गतिविधियों पर रोक लगाने के आदेश के बाद से यूएसएआईडी और सीईपीपीएस, दोनों वेबसाइटों को हटा दिया गया है। यदि सब कुछ इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट की तरह ‘निर्मल और पावन’ था, तो@cepps (The Consortium for Elections and Political Process Strengthening) का एक्स खाता बंद क्यों किया गया? सीईपीपीएस एक वैश्विक संस्था है, जो दुनिया भर में ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाने’ और ‘चुनावी प्रक्रिया के सुधार’ के लिए एनडीआई (National Democratic Institute), आईआरआई (National Democratic Institute) और आईएफईएस (International Foundation for Electoral Systems) के साथ मिलकर काम करता है। इस समूह ने पिछले साल मार्च में भारत का नक्शा प्रकाशित किया था, जिसमें लद्दाख और कश्मीर गायब थे। इन्हें जॉर्ज सोरोस का समर्थन हासिल है। मतलब जॉर्ज सोरोस के हाथ में डोर है और वह इसे पकड़ कर कई सारी कठपुतलियां भारत के अंदर नचा रहा है। कौन कौन इशारे पर नाच रहा है, समय रहते उनकी पहचान करनी होगी। भारत में सीईपीपीएस का स्थानीय सहयोगी ‘सीएसडीएस लोकनीति’ है। यह बात सामने आ गई है। कोई बताए कि बांग्लादेश में इसका स्थानीय सहयोगी कौन है?

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