गुजरात

2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या करना होगा? EDII के महानिदेशक ने बताया

आकंड़ों के हिसाब से देखें तो अमेरिका और चीन के बाद हम तीसरे नंबर पर हैं। युवाओं को इसका श्रेय जाता है। सरकार की नीतियों को भी इसका श्रेय जाता है, क्योंकि सरकार ने ऐसी नीतियां बनाई हैं।

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Kuldeep singh

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि भारत को 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है। सरकार इसके लिए मिशन मोड पर काम भी कर रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी की चपेट में है। बावजूद इसके हम दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बने हुए हैं। अब पाञ्चजन्य के साबरमती संवाद में भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान अहमदाबाद के महानिदेशक डॉ सुनील शुक्ला ने बताया कि विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या करना होगा।

2047 तक अगर भारत को विकसित देश बनना है तो क्या आपको लगता है कि उद्यमिता उसमें एक विस्तृत भूमिका निभाएगी?

बहुत सारे क्षेत्र हैं, जिनमें हमें आगे बढ़ने की आवश्यकता है और उद्यमिता उनमें से एक है। 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनना है तो 6-7 प्रतिशत की इकोनॉमिक ग्रोथ हमारे लिए पर्याप्त नहीं होगी। हमको डिबल डिजिट की वृद्धि दिखानी है और ऐसा हम पहले भी कर चुके हैं। उसके लिए तैयारी चल रही है। उद्यमिता को ब्रॉड बेस करना पड़ेगा और आधी आबादी को एनकरेज करना पड़ेगा। साथी वनवासी क्षेत्रों, जहां परंपरागत ज्ञान संचित रखा हुआ है उसका लाभ हम कैसे ले सकते हैं। उद्यमिता के प्रशिक्षण की शुरुआत गुजरात से ही हुई थी। 1969 में पहली बार जीआईडीसी ने उद्यमिता की ट्रेनिंग करवाई थी। वो कार्यक्रम आज एक मुहिम बना हुआ है। हर राज्य इस पर फोकस कर रहा है। 2003 में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर समिट गुजरात में हुई थी। आज उसी की तर्ज पर लगभग हर राज्य वैसी ही समिट कर रहा है।

आंत्रप्रन्योरशिप के क्षेत्र में एक संस्था के हेड के तौर पर आपके क्या अनुभव हैं कि जो छात्र आए हैं उनमें कुछ नया है?

एक संस्था के तौर पर मेरा अनुभव सकारात्मक है। मैं खुशी के साथ ये कह सकता हूं कि देश में एक अभूतपूर्व चेतना आई है। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो 2016 में स्टार्टअप एक्शन प्लान अनवेल किया था पीएम नरेंद्र मोदी ने। उस दौरान हमारे पास केवल 450 स्टार्टअप हुआ करते थे, जो अभी 1,60,000 DPII रजिस्टर्ड स्टार्टअप्स हैं। इन्हें बढ़ाने में ज्यादातर टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्युबेशन हर लर्निंग संस्थान में स्थापित हैं। उनकी संख्या करीब-करीब 50 या उससे कम होती थी। लेकिन, आज अगर आप देखेंगे तो ये संख्या 1500-2000 के बीच है। वहीं यूनिकॉर्न का तो शाय़द हम लोगों को अर्थ ही नहीं पता रहा होगा, लेकिन कोविड के बाद ये अधिक प्रचलन में आया। कोरोना के आने तक हमारे पास केवल 30-32 से यूनिकॉर्न थे, जिनकी वैल्युएशन एक बिलियन डॉलर से ज्यादा थी। लेकिन काफी सारी चीजें बदली हैं।

हम लोग एक प्रोग्राम करते हैं फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम, मुझे याद है इसे हम 15-20 साल पहले जब करते थे तो उसमें करीब 20 लोग होते थे, लेकिन सही चयन उतने में नहीं हो पाता था। लेकिन आज हम लोग यही प्रोग्राम करीब 20 बार करते हैं। आज स्थिति ये है कि लोग अपना पैसा लगाकर भी इस प्रोग्राम में आना चाहते हैं। ये जो सकारात्मक चेतना आई है, उसका प्रभाव देखने को मिल रहा है।

स्टार्टअप्स को करने में हम दुनिया में नंबर-3 पर हैं। क्या इस बारे में कुछ किया जाना अभी भी बाकी है?

आकंड़ों के हिसाब से देखें तो अमेरिका और चीन के बाद हम तीसरे नंबर पर हैं। युवाओं को इसका श्रेय जाता है। सरकार की नीतियों को भी इसका श्रेय जाता है, क्योंकि सरकार ने ऐसी नीतियां बनाई हैं। स्टार्टअप इंडिया तो हम लोगों ने काफी प्रमोट किया है। इन सब के अलावा भी कई और स्टार्टअप हैं। स्टार्टअप्स के बंद होने पर बात करते हुए सुनील शुक्ला कहते हैं कि यद्यपि ये संख्या करीब 75-80 फीसदी है। इतना नहीं होना चाहिए। हमारी संस्था ने भारत सरकार के विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय के लिए एक स्टडी की। हम लोग करीब 110 से अधिक इन्क्यूबेशन सेंटर गए हम लोग। उन सेंटरों के मैनेजर और कर्मियों से मिल जुलकर हमने देखा, जिसमें कई सारी चीजें पता चलीं।

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