Bangladesh : सेना को अब न रहा Yunus पर भरोसा, अपने हाथ में ली कानून-व्यवस्था की कमान
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Bangladesh : सेना को अब न रहा Yunus पर भरोसा, अपने हाथ में ली कानून-व्यवस्था की कमान

बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष वकारुज्जमां ने घोषणा की है कि जब तक देश में चुनाव नहीं होते, तब तक कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदार सेना की होगी

by Alok Goswami
Feb 25, 2025, 12:17 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष वकारुज्जमां

बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष वकारुज्जमां

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सेनाध्यक्ष की इस घोषणा के बाद, सेना ने कई क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है और कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए आरंभिक कदम उठाए हैं। बांग्लादेश में एक वर्ग ऐसा भी है जो सेना की ‘सक्रियता’ के पीछे भारत के विदेश मंत्री की 22 फरवरी की चेतावनी है कि बांग्लादेश की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। उन्होंने बांग्लादेश को सावधान किया कि अगर ढाका को नई दिल्ली के साथ रिश्ते अच्छे रखने हैं तो हर चीज का दोष भारत के मत्थे मढ़ना बंद करे।


बांग्लादेश में पिछले कुछ दिनों की घटनाओं ने उस इस्लामी देश की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को झकझोर कर रख दिया है। अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस सिर्फ ​बयानों से ही देश को कानून—व्यवस्था काबू में होने का झांसा देते आ रहे हैं जबकि धरातल पर दंगाइयों को लूटपाट और अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर जैसे अत्याचार करने की खुली छुट मिली हुई है। इस स्थिति ने मजहबी उन्मादियों के कब्जे में गए उस देश की दुनिया में साख बहुत धूमिल कर दी है। अब अंतत: सेना को आगे आकर कहना पड़ा है कि कानून व्यवस्था अब उसकी जिम्मेदारी होगी।

पिछले साल 5 अगस्त का दिन बेशक, पड़ोसी बांग्लादेश के लिए अपशकुनी साबित हुआ है। उसके बाद से ही, विकास की झीनी से उम्मीद पाले बैठा वह देश अब अपनी बदहाली पर कसमसाने को मजबूर है। देश पर अब पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की कट्टरपंथी पार्टी बीएनपी के उन्मा​दियों का राज है और वे हिन्दुओं को हिंसा का शिकार बनाते हुए अराजकता का माहौल बनाए हुए हैं। राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक अशांति चरम पर है।

मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर लगातार आरोप लगे हैं कि वह देश में जारी अराजकता को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है

इन हालात में कानून व्यवस्था नाजुक दौर से गुजर रही है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर लगातार आरोप लगे हैं कि वह देश में जारी अराजकता को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। कल बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष वकारुज्जमां ने घोषणा की है कि जब तक देश में चुनाव नहीं होते, तब तक कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदार सेना की होगी। उन्होंने कहा कि सेना देश में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

मीडिया में आए समाचारों से पता चला है कि सेनाध्यक्ष की इस घोषणा के बाद, सेना ने कई क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है और कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए आरंभिक कदम उठाए हैं। बांग्लादेश में एक वर्ग ऐसा भी है जो सेना की ‘सक्रियता’ के पीछे भारत के विदेश मंत्री की 22 फरवरी की चेतावनी है कि बांग्लादेश की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। उन्होंने बांग्लादेश को सावधान किया कि अगर ढाका को नई दिल्ली के साथ रिश्ते अच्छे रखने हैं तो हर चीज का दोष भारत के मत्थे मढ़ना बंद करे। जयशंकर ने यह भी कहा कि बांग्लादेश को अपनी आंतरिक समस्याओं का हल खुद करना होगा। उसे भारत पर आरोप लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा।

बांग्लादेश में नोबुल सम्मान प्राप्त मोहम्मद यूनुस को जिस तमाशे और उम्मीद के साथ कुर्सी पर बैठाया गया था उससे आम नागरिकों को मायूसी ही हाथ लगी है। उन्हें अमेरिका के ‘डीपस्टेट’ का पिट्ठू बताया जाने लगा है। उनकी अंतरिम सरकार से जनता का भरोसा कम होता जा रहा है। देश में बढ़ती हिंसा, यौन अपराधों और अव्यवस्था—अराजकता के कारण लोग सरकार से खासे नाराज हैं। पिछले दिनों राजधानी ढाका में छात्रों ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा की बढ़ती घटनाओं को रोकने में अंतरिम सरकार की असफलता से नाराज होकर विरोध मार्च भी निकाला था। उसमें छात्रों ने बांग्लादेश के गृह मामलों के सलाहकार के इस्तीफे की मांग भी की थी।

बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति को देखें तो साफ है कि मजहबी उन्मादियों के हाथों में खेलने को मजबूर कर दिए गए उस देश को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कानून व्यवस्था को सुधारने में सेना का हस्तक्षेप एक अस्थायी समाधान हो सकता है, लेकिन देश को स्थिरता और शांति प्राप्त करने के लिए एक स्थायी और लोकतांत्रिक समाधान की आवश्यकता है। चुनावों का आयोजन और एक चुनी हुई सरकार का गठन इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।

बांग्लादेश के वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक हालत के आलोक में जयशंकर की चेतावनी के फौरन बाद सेना का इस ओर संज्ञान लेकर यूनुस की अंतरिम सरकार को बाइपास करते हुए शांति बहाली की कमान अपने हाथ में लेना इस मुद्दे को और भी उलझा सकता है। लेकिन इससे इतना तो संकेत मिलता है कि मोहम्मद यूनुस सिर्फ ‘शो पीस’ की तरह बने हुए हैं।

इसमें संदेह नहीं है कि देश में स्थिरता की बहाली के लिए एक स्थायी और लोकतांत्रिक समाधान ही जरूरी है। आने वाले समय में बांग्लादेश को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे और देश को एक स्थिर और सुरक्षित भविष्य की ओर ले जाना होगा।

 

Topics: armyminoritiesIndiaबांग्लादेशdhakaजयशंकरjaishanker#hinduभारतLaw and Orderbangladesh
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