नरेश कुमावत (प्रख्यात शिल्पकार)
नरेश कुमावत जी (कुख्यात शिल्पकार) ने अहमदाबाद, गुजरात में आयोजित पाञ्चजन्य के साबरमती संवाद-3, प्रगति की कहानी में उदयमिता की उड़ान पर बात की। सत्र में चर्चा के दौरान उन्होंने कई प्रश्नों के जवाब दिये। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश…
प्रश्न- आप एक मूर्तिकार के रूप में बहुत प्रसिद्ध हैं, जो कहते हैं कि जब आपके बच्चे पढ़ रहे हों, तो उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। अगर बच्चे कला और संस्कृति या ऐसी मूर्तियां बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हर कोई कहता है कि तुम यह सब करके क्या करोगे? आपने इस बात को पूरी तरह से नकार दिया है कि आप अपनी कला के दम पर न सिर्फ अपने लिए बल्कि देश के लिए भी बहुत कुछ कर सकते हैं क्योंकि आपने कई ऐसी मूर्तियां बनाई हैं जो आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा एक उदाहरण के रूप में रहेंगी। आप इसे किस प्रकार देखते हैं?
उत्तर- आज एक मूर्तिकार के रूप में जब मैं कुछ कर पाता हूँ, कोई भी काम कर पाता हूँ, तो सबसे पहले मन में यही आता है कि जब शब्द मौन हो जाते हैं, तो शिल्प बोल उठता है, मूर्ति बोल उठती है। आज मैं यह अनुभव कर रहा हूँ, जब मैं पिछले तीन दशकों से मूर्ति बनाने का काम कर रहा हूँ और मेरे पूज्य पिताजी श्री महातूराम जी, जिनसे मैंने यह काम सीखा, वे मेरे गुरु थे, वे एक चित्रकार थे, एक सफल शिक्षक थे, जिन्होंने मुझे यह काम सिखाया। जैसे अन्य लोग थे, वैसे ही मैं भी नब्बे के दशक का विद्यार्थी था, जो डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना देखता था। जब मैं मेडिकल की पढ़ाई में पिछड़ गया तो मेरे पिता ने कहा कि बेहतर होगा कि तुम ग्रेजुएशन आदि के बाद कोई और काम करो।
पिताजी ने कहा कि अगर तुम अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर लो तो मैं तुम्हें कहीं नौकरी दिलवा सकता हूँ। मेरे अंदर ये हिम्मत थी और दुस्साहस था कि नहीं मुझे पढ़ना नहीं है, मुझे इससे अलग कुछ करना है, तो मैंने मन में ठान लिया कि ये मैं कुछ अलग काम करूंगा। मम्मी ने कहा इसे काम पर भेजो। मेरे पिताजी को बड़ौदा में सूरसागर तालाब के बीच में शिवाजी की मूर्ति बनाने का काम मिला और आखिरकार मैंने उस काम को पकड़ लिया और मुझे अवसर मिला। तो उस काम के साथ-साथ मैंने बड़ा काम करना शुरू कर दिया और यहाँ मैंने बड़ौदा कॉलेज और फाइन आर्ट्स से अपनी पढ़ाई जारी रखी और इस काम के साथ-साथ मुझे धीरे-धीरे नक्काशी करने के और भी मौके मिले। आज मुझे गर्व है कि मैं एक मूर्तिकार हूँ। जैसा कि आप जानते हैं, मेरा नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल है। मैंने एक बहुत बड़े स्टार को कहते सुना था कि आप जो भी करते हैं, कमाल करते हैं। तो मैं कुछ नहीं कर रहा था, लेकिन धीरे-धीरे मैंने काम करना शुरू कर दिया। जब हम नई संसद भवन देखते हैं, जिसमें मुझे काम करने का मौका मिला, तो मैं आईजी एनसीए का आभारी हूं जिन्होंने मुझे वह बड़ा मौका दिया। यह अब तक की एक छोटी सी यात्रा रही है, जिसमें मैं बड़े काम करने की कोशिश करता रहता हूं। मैं आगे भी प्रयास जारी रखूंगा।
प्रश्न- आपकी कौन सी ऐसी कलाकृति जो आपके दिल के बहुत करीब है।
उत्तर- अब जब भी कोई काम होता है, चाहे वो नया संसद भवन हो, तो ऐसा लगता है कि बहुत बड़ा काम हुआ है और बहुत सुंदर काम हुआ है, जिसकी लोग सराहना करते हैं। उसके बाद अगर हम भारत के सुप्रीम कोर्ट के काम को देखें, तो भारत के चीफ जस्टिस उसकी सराहना करते हैं, माननीय मोदी जी उसकी सराहना करते हैं, तो ऐसा लगता है कि ये बहुत बड़ा काम है। हाल ही में मैंने वृंदावन में चार धाम का निर्माण किया है, मैंने मां वैष्णो देवी, भगवान शंकर, शनि भगवान और राधा कृष्ण धाम की मूर्तियों का निर्माण किया है, इसलिए यह बहुत सुंदर काम लगता है। आगे और भी ऐसे और भी सुन्दर कार्य आएंगे और किए जाएंगे।
प्रश्न- आप आज की पीढ़ी को क्या सलाह देंगे जो इस कला को अपना करियर बनाना चाहते हैं या उद्यमिता अपनाना चाहते हैं?
उत्तर- इस नए भारत के निर्माण में जिस प्रकार के काम के अवसर हमें एक मूर्तिकार के रूप में मिल रहे हैं, उसी प्रकार के अवसर हम सबको मिल सकते हैं, अगर हम अपने कौशल को निखारें और समय के साथ चलें। जिस प्रकार से हम टेक्नोलॉजी की बात करते हैं, प्रधानमंत्री जी का सुझाव है कि हमें अपनी मूर्तिकला में भी टेक्नोलॉजी लानी चाहिए, चाहे वह 3D स्कैनर हो, CNC राउटर हो, इन सबका उपयोग हम पिछले 15 वर्षों से कर रहे हैं और जब हम इनका उपयोग करके मूर्तियां बनाते हैं, तो न इनसे सिर्फ रोजगार पैदा होता है बल्कि संस्कृति को भी बढ़ावा मिलता है।
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