भारत फार्मास्युटिकल उद्योग: सफलता की कुंजी, AI का योगदान और वैश्विक नेतृत्व में चुनौतियां
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भारत फार्मास्युटिकल उद्योग: सफलता की कुंजी, AI का योगदान और वैश्विक नेतृत्व में चुनौतियां

आपकी लगन और कड़ी मेहनत के साथ-साथ आपकी दूरदृष्टि ही सफलता की असली कुंजी है।

by Mahak Singh
Feb 23, 2025, 04:25 pm IST
in गुजरात
एनआईपीईआर (NIPER) के डायरेक्टर प्रो. शैलेंद्र सराफ

एनआईपीईआर (NIPER) के डायरेक्टर प्रो. शैलेंद्र सराफ

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एनआईपीईआर (NIPER) के डायरेक्टर प्रो. शैलेंद्र सराफ जी ने अहमदाबाद, गुजरात में आयोजित पाञ्चजन्य के साबरमती संवाद-3, प्रगति की कहानी में सफलता का समीकरण पर बात की। सत्र में चर्चा के दौरान उन्होंने कई प्रश्नों के जवाब दिये। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश…

सफलता की कुंजी क्या है?

आपकी लगन और मेहनत के साथ-साथ आपकी दृष्टि। अगर हम फार्मा सेक्टर की बात करें तो आज के समय में जिस भारतीय फार्मा सेक्टर की हम बात करते हैं, वो आधुनिक फार्मास्युटिकल साइंस का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन वास्तव में भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग ही अकेला नहीं है। हमारी पूरी विरासत आयुर्वेद है, इसलिए लंबे समय तक फार्मेसी में काम करने के बाद, मैं खुद को इस योग्य बना रहा हूं कि मैं आयुर्वेद का छात्र बन सकूं।

एक अच्छे शोधकर्ता या वैज्ञानिक में कौन से गुण देखे जाने चाहिए?

आपने जीवन में एक नाम जीवक सुना होगा, जिन्होंने नालंदा से आयुर्वेद की शिक्षा ली थी और वे निजी फिजिशियन भी थे , जो राजपरिवार में भी वैद्य थे। उनका एक छोटा सा उदाहरण यह है कि उन्होंने एक वर्ष तक अपनी पूरी शिक्षा नालंदा में ली थी और नालंदा में रहने के बाद उनके गुरु ने उन्हें पास के जंगल में भेज दिया और कहा कि कोई ऐसा पौधा लेकर आओ जिसमें औषधीय गुण न हों। सारे बच्चे चले गये, कुछ एक दिन में, कुछ दो दिन में, कुछ तीन दिन में, कुछ छह महीने बाद लौटे। जीवक जी एक वर्ष बाद सिर झुकाकर लौटे और कहा कि शायद मैं योग्य नहीं हूं। इस डिग्री के लिए उन्होंने मुझसे कहा कि आप ही एकमात्र उम्मीदवार हैं जो इस डिग्री के लिए योग्य हैं और उस समय उन्होंने लिखा था। ऐसा कोई पौधा नहीं है जिसका उपयोग आप दवा में नहीं कर सकते। इसी तरह कोई पुरुष भी अयोग्य नहीं होता। आवश्यकता होती है ऐसे योग के पुरुष की जो शब्द को मंत्र में, वनस्पति को औषधि में और अयोग्य पुरस्कार योग्यता उपयोग कर सके।

जब हम विद्यार्थियों या अपने बच्चों के बारे में बात करते हैं, तो हम उन्हें सफलता के लिए तो तैयार करते हैं, लेकिन असफलताओं के लिए कभी तैयार नहीं करते। अगर किसी को उस शोध में भी लगातार सफलता मिल रही है जिसमें सबसे ज्यादा धैर्य की जरूरत होती है और वह उसे छोड़ने या डिप्रेशन के बारे में सोचने लगे तो आप उससे क्या कहना चाहेंगे?

यह वर्तमान शिक्षा प्रणाली की विकृति है। जिसमें हम केवल सकारात्मक परिणाम चाहते हैं। हर कोई विज्ञान से जुड़ा हुआ है। हजारों शोध पत्र प्रकाशित होते हैं। ऐसा एक भी शोध पत्र नहीं है जिसका परिणाम नकारात्मक हो।

भारत को दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है। ऐसी कौन सी बातें हैं जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए और दुनिया भर में एक सफल उद्योग के रूप में अपना नेतृत्व बनाए रखने के लिए भारत को क्या-क्या करना चाहिए?

यह बिल्कुल सच है कि पूरी दुनिया ने हमें दुनिया की फार्मेसी के रूप में मान्यता दी है, लेकिन इसमें एक ग्रे एरिया भी है और महामारी के कारण, मुझे कई चीजें समझ में आईं जब मुझे बताया गया कि मैकेंजी जैसी एजेंसियां ​​हैं जो सर्वेक्षण करती हैं। फ्यूचरिस्टिक उनके ओपिनियन्स होते हैं। उन्होंने कहा कि भारत चिकित्सा पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थान है और यह बात सामने आई कि हम 180 से अधिक देशों को अपनी दवाइयां भेजते हैं। लेकिन रियलिटी क्या है? हम वर्ल्ड में तीसरे नंबर पर हैं प्रोडक्शन में। लेकिन वैल्यू चैन में भी हम बात कर रहे हैं। अगर हम वैल्यू वाइज बात करें तो हम बारहवें नंबर पर हैं, ये वैल्यू चेन का गैप है जो हमारा अपना गैप है, ऐसा इसलिए है क्योंकि हम पश्चिमी दुनिया की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं और ये हमारी रिसर्च ओरिएंटेड इंडस्ट्री नहीं है, इसलिए हम इस महामारी को समझने में सक्षम हुए। भले ही हम 180 देशों को दवाइयां बेच रहे हों, लेकिन उनके कच्चे माल, उनकी शुरुआती सामग्री के लिए हम चीन जैसे देशों पर ज्यादा निर्भर हैं और क्यों? क्या हममें वह क्षमता है?लेकिन उस प्राइस वार में हम पीछे हट गए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम अपने 70% उत्पाद विदेश से आयात करते थे। हम किसी भी समय फार्मास्युटिकल आतंकवाद का शिकार हो सकते हैं। लेकिन हम अपने 90% से अधिक चिकित्सा उपकरण विदेशों से आयात करते थे। हम विश्व की फार्मेसी बने रहेंगे, लेकिन हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व ने एक और जिम्मेदारी ली है कि हम फार्मास्यूटिकल प्रयोगशाला बनेंगे और दुनिया को दिखाएंगे कि हम अपनी अपनी खोजों को बाजार में लाना शुरू करेंगे और हम ज्यादा सम्मान प्राप्त कर पाएंगे और वैल्यू चेन में भी। यदि उत्पादन का यही तरीका अपनाया जाए तो हम मूल्य के मामले में कम से कम दूसरे और तीसरे स्थान पर होंगे।

डायपर को रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय से काफी वित्तीय सहायता मिलती है। आपको लगता है कि विश्व में अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए इस तरह की सरकारी सहायता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है?

चिकित्सा उपकरणों के संबंध में हमने कहा कि हम 19.8% उपकरण बाहर से आयात करते हैं और दुर्भाग्यवश हमारे पास परीक्षण प्रोटोकॉल भी नहीं है। इसलिए, बहुत ही समय पर, फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने सात उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने की अनुमति दी और ये सभी सात क्षेत्र बहुत ही समकालीन मुद्दे हैं और इसमें दी गई वित्तीय सहायता के तहत, उन्होंने NIPER अहमदाबाद को ₹110,00,00,000 दिए हैं, जहां हम चिकित्सा उपकरणों पर अनुसंधान करेंगे। हैदराबाद तो नहीं, लेकिन मैं अभी भी इस पर विचार कर रहा हूं और इसके लिए एक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया गया है। पूरे फार्मास्युटिकल जगत ने इसका बहुत स्वागत किया है क्योंकि हम उद्योग की समस्याओं का समाधान करेंगे और उनका समाधान प्रदान करेंगे। आने वाले दिनों में हमें बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे।

शोध और अनुसंधान में देखें तो एआई का योगदान क्या होगा?

प्रौद्योगिकी हमेशा मदद नहीं करती है, लेकिन एक बात जिस पर हाल के दिनों में चर्चा हुई है वह यह है कि हमें इंडेक्स एआई की आवश्यकता है। अब हम जो भी डेटा देखते हैं, जो भी डेटा सेट उपलब्ध है। जहाँ भी देखो, अगर मलेरिया का समाधान खोजना हो तो आधुनिक दवाइयाँ तो मिल जाएँगी, लेकिन आयुर्वेदिक समाधान नहीं मिलेगा। AI से क्यों नहीं मिल सकता, क्योंकि हमने वो डेटा उपलब्ध ही नहीं कराया है।

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