कम्युनिस्ट चीन के लिए वर्तमान में बन रही यह परिस्थिति चिंताजनक है, क्योंकि रूस और अमेरिका के बीच आगे संबंधों में सुधार के संकेत हैं। इससे चीन की रणनीतिक स्थिति पर गंभीर असर पड़ सकता है। चीन तथा रूस के बीच आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर इधर संबंध काफी गहरे हुए हैं। दोनों ही देश पश्चिमी देशों के विरुद्ध लामबंद दिखे हैं, उस दिशा में दोनों ने खुलकर बयान भी दिए हैं।
अमेरिका के अति उत्साहित दिख रहे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रतिनिधियों के बीच इन दिनों कुछ ज्यादा ही ‘चर्चाएं’ हो रही हैं। रियाध में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत के बाद अब इस महीने के अंत में ट्रंप और पुतिन की वार्ता होने के संकेत मिल रहे हैं। इन संकेतों ने जहां फ्रांस की अगुआई में यूरोपीय देशों का असमंजस में डाला हुआ है वहीं उस चीन के माथे पर चिंता की लकीरें गहराती दिख रही हैं जो पिछले कुछ समय में अमेरिका विरोध का मुकाबला रूस से निकटता में देख रहा था।
कम्युनिस्ट चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अब अपनी रणनीति में बदलाव करने की आवश्यकता हो सकती है। क्या बीजिंग रूस से दूरी गवारा कर सकता है अगर वाशिंगटन और मास्को के बीच की दूरी कम होती है तो? अमेरिकी राष्ट्रपति चालाक चीन की चालों को अपने पिछले कार्यकाल से ही समझते आ रहे हैं। टैरिफ बढ़ाकर उसे उसके कद की याद दिलाना उसी दिशा में एक कदम माना जा सकता है। लेकिन अगर परिस्थितयों में आश्चर्यजनक बदलाव आया तो चीन उसमें अपनी क्या भूमिका देख सकता है। इसे लेकर विशेषज्ञों में कई तरह के कयास चल रहे हैं।
ट्रंप-पुतिन की निकटता
डोनाल्ड ट्रंप पद पर आने के बाद और उससे कुछ पहले, व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बात कर चुके हैं। ट्रंप ने यूक्रेन के संदर्भ में ऐसे संकेत दिए हैं जिनका झुकाव रूस के पाले में माना जा रहा है। दोनों दमदार नेताओं की बातचीत ने भूराजनीति में किंचित हलचल तो जरूर मचा रखी है। दोनों देशों के बीच सऊदी अरब में यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए एक बैठक हो चुकी है, जिसमें अमेरिका के विदेश मंत्री रूबियो ने अपने रूसी समकक्ष लावारोव से चर्चा की थी। उस बैठक से चीन की चिंता बढ़नी स्वाभाविक ही थी।
चीन की चिंता
कम्युनिस्ट चीन के लिए वर्तमान में बन रही यह परिस्थिति चिंताजनक है, क्योंकि रूस और अमेरिका के बीच आगे संबंधों में सुधार के संकेत हैं। इससे चीन की रणनीतिक स्थिति पर गंभीर असर पड़ सकता है। चीन तथा रूस के बीच आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर इधर संबंध काफी गहरे हुए हैं। दोनों ही देश पश्चिमी देशों के विरुद्ध लामबंद दिखे हैं, उस दिशा में दोनों ने खुलकर बयान भी दिए हैं। यदि रूस और अमेरिका कड़वाहट भुलाकर संबंध सुधारते हैं, तो उससे बीजिंग की स्थिति कमजोर हो सकती है।
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शी जिनपिंग की रणनीति
राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि रूस और अमेरिका के बीच संबंधों में सुधार से उसके हितों पर कोई उलट असर न पड़े। इसके लिए चीन को कई कदम उठाने पड़ सकते हैं।
वे कदम क्या हो सकते हैं? पहला, चीन रूस के साथ अपने संबंधों को और मजबूत देने का प्रयास कर सकता है। यह तब होगा जब दोनों देश अपने आर्थिक और सैन्य सहयोग को और पुख्ता करने की दिशा में बढ़ेंगे। लेकिन क्या ट्रंप ऐसी कोई स्थिति बनने देंगे? दूसरे, चीन को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर और सक्रिय होना पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में चीन अपनी भूमिका को और प्रागढ़ करने की दिशा में सोच सकता है। तीसरे, बीजिंग को वाशिंगटन के साथ अपना संवाद बढ़ाना होगा। इसमें दोनों देशों के बीच कारोबार, प्रतिसुरक्षा जैसे मुद्दे प्रमुखता से उभर सकते हैं।
अपनी तरफ से चीन को देश के भीतर भी आर्थिक सुधारों पर गौर करने की जरूरत होगी। बीजिंग को अपने आर्थिक मॉडल को ज्यादा प्रतियोगी बनाने की जरूरत हो सकती है। ट्रंप और पुतिन की बैठक में क्या एजेंडा रहेगा, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन प्रकट रूप में यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने और प्रतिबंधों को हटाने की बात हो सकती है।
विदेश मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप और पुतिन की बढ़ती निकटता से चीन बेशक, चिंतित होगा। जिनपिंग रूस के साथ जो भी भविष्य की योजनाएं बना रहे थे उनमें अब उन्हें कुछ ‘एडजेस्टमेंट्स’ करने पड़ेंगे तभी वे इस समीकरण में ‘फिट’ बैठ पाएंगे।
कुछ विशेषज्ञ ट्रंप की इस रणनीति को ‘रिवर्स निक्सन’ रणनीति की संज्ञा देते हैं। यानी ट्रंप रूस की निकटता पाकर चीन को अलग-थलग करने की कोशिश करने की सोच रहे हैं। 1970 के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इससे उलट रणनीति अपनाकर चीन और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच दूरियां बढ़ाने की कोशिश की थी।
विदेश मामलों के कुछ जानकार मानते हैं कि ट्रंप और पुतिन के आपस में मिल बैठने के बाद, चीन को भू-राजनीतिक स्तर पर झटका खाना पड़ सकता है। चीन को रूस से अभी तक आर्थिक और सैन्य क्षेत्रों में जो लाभ मिल रहे थे, वे थम सकते हैं, और यह चीन के लिए दीर्घावधि में अच्छा नहीं रहेगा।
वैसे भी अमेरिका रूस के विरुद्ध पूर्ववर्ती बाइडेन प्रशासन द्वारा लगाए प्रतिबंधों में छूट देने के संकेत दे चुका है। यह भी चीन के लिए चिंता की बात है, क्योंकि वह खुद को पुतिन के सामने इसी मुद्दे पर ‘हमदर्द’ दिखाता आ रहा था।
अंत में, विशेषज्ञ मानते हैं कि पुतिन और ट्रंप का आपसी राजनीतिक तालेमल और यूक्रेन युद्ध खत्म करने पर चर्चा से न सिर्फ यूरोप पर असर डाल सकती है बल्कि इससे पूरी दुनिया पर भी गहरा प्रभाव पड़ने वाला है।
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