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औरंगजेब से अपनी पहचान जोड़ने की जिद क्यों ?

जो यह कहते हैं कि या फिर जिन्हें इस बात का बुरा लगता है कि फिल्मों में मुस्लिमों को बुरा दिखाते हैं, उनसे यह प्रश्न है कि वे अपनी पहचान औरंगजेब से क्यों जोड़ते हैं?

Published by
सोनाली मिश्रा

इन दिनों कथित लिबरल समूह छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभा जी महाराज के जीवन पर बनी फिल्म छावा को लेकर क्रोध में है। उसे लग रहा है कि आखिर फिल्मों में मुस्लिमों को विलेन क्यों बनाया जा रहा है? हालिया नाम एक पटकथा लेखक, गीतकार और फिल्म निर्माता का है। उन्होंने एक बातचीत में यह कहा कि मुस्लिमों को खलनायक दिखाया जाता है। फिल्म निर्माता अब्बास टायरवाला ने एक बातचीत में यह कहा कि मुस्लिमों को खलनायक दिखाया जाता है।

इससे पहले एक अभिनेत्री भी फिल्म में दिखाई गई पीड़ा को नकारने का काम कर चुकी थीं, हालांकि जब उनकी आलोचना हुई तो उन्होंने कहा कि उनके दिल में छत्रपति शिवाजी के प्रति बहुत आदर है। औरंगजेब के उल्लेख से कथित सेक्युलर्स को मिर्ची लग रही है या फिर उन्हें जो अब तक अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर फिल्मों में खलनायकों को हिन्दू ही नहीं बल्कि तिलक धारी एवं पूजा पाठ करने वाला हिन्दू दिखाते रहे थे। जो इस बात पर नहीं बोले कि कैसे बिल्ला नंबर 786 लगाने तक से मौत नहीं होती और आज तक जो लोग मुगल ए आजम को सबसे शानदार फिल्म बताते हैं, उन्होंने यह नहीं बताया कि कैसे एक अय्याश और नशे में बने रहने वाले आदमी को मोहब्बत का मसीहा बनाकर पेश किया गया। जिस सलीम ने अपनी हवस पूरी करने के लिए नूरजहां के पहले शौहर की हत्या तक करवा दी थी, और जिसने अपनी एक यौन कनीज को इसलिए मरवा दिया था क्योंकि उसने एक “हिजड़े” के माथे पर चूम लिया था, उसी सलीम का महिमामंडन किया गया। उसे इश्क के सबसे बड़े प्रतिमान के रूप में पेश किया गया और यहां तक कि अकबर-जोधा में भी तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, तब भी उस जमात ने यह नहीं कहा कि हर चीज के दो पहलू होते हैं।

जो यह कहते हैं कि या फिर जिन्हें इस बात का बुरा लगता है कि फिल्मों में मुस्लिमों को बुरा दिखाते हैं, उनसे यह प्रश्न है कि वे अपनी पहचान औरंगजेब से क्यों जोड़ते हैं? हर कहानी में एक खलनायक होता ही है, भारत में मुहम्मद गोरी के बाद से जो लोग आए वे भारत की अस्मिता और गौरव पर आक्रमण ही करने आए थे। इसमें कोई भी दो राय नहीं है कि औरंगजेब जिस वंश का था, उस वंश के बाबर ने हिंदुस्तान आने के लिए कितने कत्ल किये थे। बाबर से लेकर औरंगजेब तक का हिंदुओं ही नहीं बल्कि मुस्लिमों की भी हत्याओं का इतिहास रहा है। यह सब और किसी ने नहीं बल्कि या तो उन्होंने स्वयं या फिर उस काल के लेखकों ने लिखा है। बाबर ने तो बाबरनामा में लिखा ही था कि कैसे पठान उसके पास मुंह में घास रखकर अपने आपको गाय बताते हुए उसके पास आए थे कि वे उसकी शरण में हैं, मगर उसने उन सभी को मार डाला था। पठान किसी हिन्दू राजा से जब हारने लगते थे तो वे गाय बनकर शरणागत हो जाते थे और हिन्दू राजा उन्हें क्षमा कर देते थे।

हुमायूँ का सभी को पता ही है कि कैसे वह अय्याश था। मगर यहाँ पर बात औरंगजेब की हो रही है। औरंगजेब को लेकर सेक्युलर्स या कट्टरपंथी मुसलमान इतने भावुक क्यों हैं? क्यों वे अपनी पहचान एक ऐसे आततायी के साथ जोड़ते हैं, जिसने केवल हिंदुओं को ही नहीं मारा, बल्कि अपने भाइयों को भी मारा। अपने अब्बा को उसने कैद किया और उन पर तमाम ऐसे अत्याचार किये, जो किसी को दिखते नहीं थे। यहां तक कि उसने अपने अब्बा शाहजहाँ के सबसे प्रिय बेटे और अपने भाई दाराशिकोह की हत्या करके उसका सिर काटकर अपने अब्बा के पास आगरा के किले में वहां भेजा था, जहां पर उसने शाहजहाँ को कैद करके रखा था।

यह औरंगजेब ही था, जिसने हिन्दू पर्वों पर रोक लगाई थी। अभी तो केवल छावा ही बनी है, मथुरा में गोकुल जाट के साथ भी यही सब किया गया था। जब गोकुल जाट ने औरंगजेब द्वारा हिंदुओं पर किये गए जा रहे अत्याचारों के कारण विद्रोह किया था, तब औरंगजेब ने उस विद्रोह को नृशंसतापूर्वक दबाने के लिए अपनी पूरी सेना झोंक दी थी। यदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब, मेनली बेस्ड ऑन पर्शियन सोर्सेस मे गोकुल जाट की हत्या के विषय में लिखा है, “7000 लोगों को, जिनमें वृद्ध और उसका परिवार भी शामिल था, बंदी बना लिया गया। जाट नेता के अंग आगरा के पुलिस कार्यालय के चबूतरे पर एक-एक करके काट दिए गए, उसके परिवार को जबरन मुसलमान बना दिया गया और उसके अनुयायियों को शाही छावनी में बनी जेल में रखा गया।”

यह औरंगजेब ही था, जिसने सिखों के नौवें गुरु, गुरु श्री तेगबहादुर की हत्या की थी। भाई सतीदास, भाई मतीदास और भाई दयाल दास सभी की हत्या बहुत ही नृशंस तरीके से की थी। भाई मतीदास को जिंदा ही दो मुँही आरी से कटवा दिया था। दयाल दास जी को गोल गठरी की तरह बांधकर उबलते तेल की एक बड़ी कढ़ाही में फेंक दिया आज्ञा और भाई सतीदास के शरीर पर सूती रेशा लपेटकर आग के हवाले कर दिया गया।

औरंगजेब का इतिहास नृशंसताओं से भरा हुआ है, जिसके प्रमाण पुस्तकों में ही नहीं बल्कि काशी विश्वनाथ एवं मथुरा के मंदिर में भी दिखते हैं। जो लोग यह कहते हैं कि हर बात की दो सच्चाई होती हैं, तो ऐसे लोगों से यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि मंदिर गिराने को लेकर कौन से दूसरे सत्य इस बात से परे थे कि औरंगजेब हिंदुओं के धार्मिक अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर पा रहा था।

आखिर वह कौन से कारण थे जिनके चलते मुस्लिम व्यापारियों पर कर नहीं था, मगर हिंदुओं पर जजिया लगाया गया था। वे कौन से कारण थे जिनके चलते उसने अपने उस भाई को मरवा दिया था, जो हिंदुओं का आदर करता था। वे कौन से कारण या सत्य थे जिसके चलते औरंगजेब अपने भाई दाराशिकोंह की हिन्दू प्रेमिका को अपने हरम में लाना चाहा था। मगर राणा-ए-दिल ने अपने चेहरे को ही खराब कर लिया था। ये तमाम तथ्य तमाम पुस्तकों में हैं। मगर जो लोग अपनी पहचान को बाबर से लेकर औरंगजेब तक से जोड़ते हैं, जो लोग औरंगजेब को अपना मसीहा मानते हैं, और औरंगजेब को आततायी न मानकर केवल मुस्लिम मानते हैं, उनसे यही प्रश्न है कि आखिर औरंगजेब की पहचान के साथ अपनी पहचान जोड़ने की उनकी विवशता क्या है? औरंगजेब तो चला गया, मगर दक्कन में उसकी कब्र होना उसकी वह हार है, जिसके विषय में वे लोग बात नहीं करना चाहते हैं जो औरंगजेब के साथ अपनी पहचान जोड़े रखते हैं।

जब तक औरंगजेब को एक अत्याचारी बादशाह मानने के स्थान पर केवल मुस्लिम माना जाता रहेगा, तब तक दाराशिकोह के हत्यारे को माफ ही किया जाता रहेगा। शाहजहाँ को कैद करने वाले और अत्याचार करने वाले औरंगजेब के पाप दिख ही नहीं सकेंगे।

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