यह समस्त विश्व विश्वनाथ की रचना है। जल, अग्नि, पृथ्वी, वायु, आकाश, चन्द्र, सूर्य, यजमान / आत्मा इस प्रकार आठ प्रत्यक्ष रूपों में भगवान् शिव सबको दिखाई देते हैं। भारतीय दृष्टि से समस्त जीव जगत् तथा इसका पोषण – संवर्धन करने वाले प्राकृतिक तत्त्व विश्वमूर्ति शिव का प्रत्यक्ष शरीर है। इस प्रकार समस्त चेतन – अचेतन प्राणियों के पिता शिव हैं। जैसे पुत्र-पुत्रियों का भला करने वाले पर पिता प्रसन्न होते हैं। वैसे ही पर्यावरण के उपरोक्त घटकों को हानि से बचाने वाले, प्रदूषणमुक्त एवं पोषण देने वालों पर भगवान् शंकर प्रसन्न होते है। यदि कोई भी मनुष्य इन आठ मूर्तियों में से किसी का भी अनिष्ट करता है तो वह वास्तव में भगवान शंकर का ही अनिष्ट कर रहा है ।
भगवान शंकर का भौतिक रूप भी पूरी तरह पर्यावरण का परिचायक है।
(1) जटायें – महाराजा दलीप के पुत्र भगीरथ ने घोर तपस्या की और मां गंगा प्रसन्न हुई परन्तु मां गंगा ने आशंका व्यक्त की कि उसके प्रचण्ड वेग को धरती कैसे सहन करेगी। महाराजा भगीरथ ने तप के द्वारा शिव भोलेनाथ को प्रसन्न किया। भोलेनाथ ने अपनी जटायों में गंगा को स्थान दिया । वृक्षों की जड़ें शिवजी की जटायों का ही कार्य करती हैं। वर्षा के तीव्र वेग को वृक्षों की जड़ें अपने ऊपर लेकर मिट्टी के कटाव और बहाव को रोकती हैं।
(2)साँप – उनके गले का आभूषण सांप है। फसलों के दुश्मन चूहों आदि को खाकर सांप कीट नियन्त्रक (Pest Controller) का कार्य करते हैं। भोजन चक्र (Food Cycle) का अभिन्न अंग हैं सांप ।
(3) नीलकंठ – समुद्र मंथन में से निकले सबसे विनाशकारी विष को भगवान् शिव ने पी लिया था और विष के प्रभाव से उनका कंठ नीलवर्ण हो गया। इसीलिये वे नीलकंठ कहलाये। नीलकंठ भगवान का उपरोक्त कार्य पृथ्वी पर वृक्ष करते हैं । वृक्ष कार्बनडाईऑक्साइड जैसी विषैली गैसों को पीकर, हमें बदले में आक्सीजन देते हैं। धरती पर वृक्ष साक्षात् महादेव हैं।
(4) बाघम्बर- क्योंकि वे मृत बाघ की छाल पर बिराजते हैं इसलिए उनका नाम बाघम्बर पड़ा। शेरों की अनेक जातियां विलुप्त हो रही हैं, उनकी सुरक्षा एवं संभाल आवश्यक है। वे भोजन चक्र (Food cycle) का अभिन्न अंग हैं।
(5) भस्म – शिवजी का सौन्दर्य प्रसाधन है भस्म । भस्म की विशेषता है कि यह शरीर के रोमछिद्रों को बंद कर देती है। इसे शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। इस भस्म को तैयार करने की आवश्यक सामग्री रहती है -कपिला गाय का गोबर, शमी, पीपल, पलाश, बढ़, अमलतास और बेर के वृक्षों की लकड़ियों की भस्म ।
(6) नंदी – उनका वाहन नंदी नामक बैल है। गौवंश सभी जीव-जन्तुओं का पालन करता है। उसे हम जीवन का अभिन्न अंग बनायेंगे तो सदा सुख पायेंगे ।
(7) बिल्व वृक्ष – वायुमंडल में व्याप्त अशुद्धियों को सोखने की क्षमता सबसे अधिक इसी वृक्ष में होती है। इसीलिए महादेव की पूजा में बेलपत्र को जोड़ा गया ताकि इसके रक्षण और वर्द्धन को प्रोत्साहन मिले ।
(8) हिमालय – भगवान् शिव का निवास हिमालय पर होना यह दर्शाता है कि मानवता के कल्याण के लिए जमीन, जंगल, जीव – जन्तु , जल – सरोवरों, पहाड़ों, ग्लेशियरों आदि का संरक्षण आवश्यक है। प्रकृति के मध्य शिव और पार्वती का निवास उनके प्रकृति के प्रति प्रेम को दिखाता है।
(9) तांडव – पहाड़ों का खिसकना, बादलों का फटना, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र के जल स्तर का बढ़ना, मौसम चक्र में बदलाव आदि मनुष्य जाति को सचेत करने हेतु शिव द्वारा दिए जाने वाले पर्यावरण असंतुलन के संकेत हैं। क्रोध में आकर शिवजी के द्वारा तांडव नृत्य करना इस बात का परिचायक है कि मनुष्य जाति को विनाश से बचाने हेतु पर्यावरण संरक्षण आवश्यक है। अन्यथा प्रकृति तो अपना संरक्षण स्वयं कर लेगी परन्तु मनुष्य जाति के अस्तित्व का क्या होगा ?
भगवान की पूजा का तात्पर्य
भगवान शब्द पांच अक्षरों से बनता है। प्रत्येक अक्षर पर्यावरण के एक-एक तत्त्व का परिचायक है। भूमि से ‘भ’, गगन से ‘भ’, वायु से ‘व’ , अग्नि से ‘अ’ और नीर से ‘न’ अक्षर लिये गये हैं। अर्थात् भगवान की पूजा का अर्थ है उपरोक्त पाँच तत्त्वों का संरक्षण एवं संवर्धन । पाँचों तत्त्वों को बचाना एवं पोषण ही, भगवान की सच्ची पूजा है।
प्लास्टिक कचरे से पंच तत्त्वों को हानियां
एक थैला एक थाली अभियान एक सफल प्रयोग
प्रयागराज महाकुंभ 2025 को हरित, पवित्र और स्वच्छ कुंभ बनाने हेतु एक थैला एक थाली अभियान की योजना और क्रियान्वयन पर्यावरण संरक्षण गतिविधि द्वारा किया गया। पूरे देश से लोगों से कपड़े के थैले और थालियां इकट्ठी कर प्रयागराज महाकुम्भ में भेजी गईं । ताकि वहां प्लास्टिक का कचरा कम किया जा सके। एक अनुमान लगाया गया कि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन 120ग्राम प्लास्टिक कचरा पैदा करे तो एक करोड़ श्रद्धालु 1200टन कचरा एक दिन में पैदा करेंगे।
परिणाम- प्रयागराज महाकुंभ के भंडारों में स्टील की थालियां 10.25लाख, कपड़े के थैले 13 लाख, स्टील के गिलास 2.5 लाख निःशुल्क वितरित किए गए।
उपलब्धियां –
हरित महाशिवरात्रि
इस जागरूकता अभियान का वास्तविक उद्देश्य देश को प्लास्टिक मुक्त व कैंसर मुक्त बनाना है। स्वच्छ व स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण के लिए स्थानीय गणमान्य व संत समाज के मार्गदर्शन में विभिन्न सामाजिक, स्वयंसेवी, धार्मिक संगठनों से सम्पर्क कर अपील की जा रही है कि वे महाशिवरात्रि महोत्सव पर लगने वाले लंगरों के दौरान
डिस्पोजेबल प्रयोग न करें और प्रसाद को स्टील प्लेट में ही वितरित करें । इसका प्रतिसाद काफी उत्साहवर्धक मिल रहा है।
अपील- आओ! महाशिवरात्रि महोत्सव पर बर्तन बैंक बनाने का संकल्प लेकर देश को प्लास्टिक व कैंसर मुक्त बनाएं
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