कोलकाता, (हि.स.)। आधार और मतदाता पहचान पत्र क्या भारतीय नागरिकता का प्रमाण हो सकता है? कलकत्ता हाईकोर्ट के जज ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि ये पहचान पत्र तो बांग्लादेशी घुसपैठियों के पास भी होते हैं।
सोमवार को फर्जी पासपोर्ट मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति देबांशु बसाक की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की। मामला पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले के दुलाल शील और उनकी पत्नी स्वप्ना शील से जुड़ा है, जिन्हें एक साल पहले गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का आरोप है कि वे मूल रूप से बांग्लादेशी नागरिक हैं और फर्जी आधार और मतदाता कार्ड के जरिए भारत में रह रहे थे।
जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बसाक ने कहा कि क्या आधार कार्ड और मतदाता कार्ड होने से कोई भारतीय नागरिक बन जाता है? इस तरह के फर्जी दस्तावेज हर बांग्लादेशी के पास मिल जाते हैं। कुछ तो खुद को भारतीय साबित करने के लिए टैक्स भी भरते हैं। उन्होंने अमेरिका में हो रही निर्वासन की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि वहां भी ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि आव्रजन विभाग से इस मामले में कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला है, इसलिए यह साबित नहीं होता कि पासपोर्ट फर्जी है। उन्होंने 2019 के विदेशी पंजीकरण संशोधन अधिनियम की धारा-2 का हवाला देते हुए कहा कि जो लोग 2024 से पहले भारत में आए हैं, उन्हें नागरिक माना जाना चाहिए। इसी आधार पर दंपति के लिए जमानत की मांग की गई थी। हालांकि, अदालत इस तर्क से संतुष्ट नहीं हुई और बर्दवान के इस दंपति की जमानत याचिका खारिज कर दी।
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