अरविंद केजरीवाल
दिल्ली विधानसभा चुनाव ( Delhi Assembly Election result) में आम आदमी पार्टी की हार केवल आप की हार ही नहीं बल्कि यह कई अन्य दलों की हार है। चुनाव के ऐन पहले कई अन्य दलों ने कांग्रेस पार्टी को किनारे करके आप को खुले तौर पर समर्थन किया था। इन दलों में ममता बनर्जी की अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, महाराष्ट्र की उद्धव सेना की शिवसेना(यूबीटी), उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी, राजस्थान की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी सहित कई अन्य दल दिल्ली की राजनीति में ऐसा ही एक राजनीतिक घटना 2013 में हुई थी जब केजरीवाल ने तीन बार के निर्वाचित मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भारी बहुमत से हराया था।
केजरीवाल को अपनी हार का डर था इस कारण वो एक अन्य सीट से भी चुनाव लड़ना चाहते थे। मगर 2019 में राहुल गाँधी का उद्धरण को देखते हुए उन्होंने ऐसा नहीं किया। राहुल गांधी 2019 में अमेठी के अलावे केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ा और अमेठी की सीट हार गए। 2024 में राहुल गांधी ने चुनावी अधिसूचना का फायदा उठाया। केरल में दूसरे चरण में चुनाव था जबकि राय बरेली लोकसभा सीट का अधिसूचना वायनाड लोकसभा सीट के मतदान के बाद शुरू हुआ।
अरविन्द केजरीवाल ने भाजपा के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस पार्टी के संदीप दीक्षित के सामने अपनी स्थिति को कमजोर होता देख इन दोनों नेताओं के मदद की जरूरत समझ ममता बनर्जी से इनकी मदद के लिए राजी किया। केजरीवाल ने इस हार तो टालने के लिए हर प्रकार का हत्कण्डा अपनाया। ममता बनर्जी की पार्टी का आप को समर्थन के कई निहितार्थ थे। ममता बनर्जी का दिल्ली में आप को समर्थन पार्टी से अधिक अरविन्द केजरीवाल के लिए था। केजरीवाल को अपनी परंपरागत सीट नई दिल्ली से हारने की पूरी संभावना बहुत पहले दिख गई थी। इस सीट से भाजपा के दो पूर्व नेताओं शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आज़ाद का पुराना रिश्ता रहा है। ये दोनों नेता वर्तमान में ममता बनर्जी की पार्टी से पश्चिम बंगाल से लोकसभा के सांसद हैं।
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अखिलेश यादव का समर्थन प्राप्त करके केजरीवाल ने यादव मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जेडीयू के नेता नितीश कुमार के समर्थन के प्रस्ताव को कोई भी तवज्जो नहीं देने वाले केजरीवाल को इस बार इन दलों का समर्थन प्राप्त करना ही बड़ी हार की और इंगित कर रही थी। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट जिसे 2008 परिसीमन से पूर्व गोल मार्किट सीट के नाम से जाना जाता था उससे कीर्ति आज़ाद पहली बार भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर विधायक बने थे।
कीर्ति आज़ाद ने भाजपा उम्मीदवार के तौर कांग्रेस उम्मीदवार बृजमोहन भामा को 3803 मतों से हराया था। पर इस सीट पर 1998 में कीर्ति आज़ाद का सामना कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार शीला दीक्षित से हुआ था और शीला दीक्षित ने कीर्ति आज़ाद को 5667 मतों से चुनाव हराया था। उसके बाद कीर्ति आज़ाद ने बिहार का रुख किया था और दरभंगा से कई बार सांसद बने। वहीं 2003 में नई दिल्ली विधानसभा चुनाव से कीर्ति आज़ाद की पत्नी पूनम आज़ाद ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चुनावी टक्कर दी थी और शीला दीक्षित ने पूनम आज़ाद को 12935 मतों से चुनाव हराया था। अतएव इस सीट से कीर्ति आज़ाद का पुराना नाता रहा है।
दूसरा शत्रुघ्न सिन्हा का भी इस सीट से 1992 से ही संबंध रहा है, नई दिल्ली लोकसभा सीट से 1991 के चुनाव में कांग्रेस के राजेश खन्ना और भाजपा के तात्कालिक अध्यक्ष लालकृष्ण अडवाणी में चुनावी लड़ाई हुई थी। इस सीट पर आडवाणी ने 1,589 मतों से राजेश खन्ना को पराजित किया था। आडवाणी जी नई दिल्ली सीट के अलावे गुजरात के गांधीनगर सीट से भी चुनाव लड़े थे और इस सीट को 125,679 मतों से जीते थे। आडवाणी नई दिल्ली सीट को छोड़कर गांधीनगर की सीट से अपनी सदयस्ता रखी।
नई दिल्ली लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में राजेश खन्ना और भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा में चुनावी जंग हुई, जिसमें राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न सिन्हा को 28,000 मतों से पराजित किया था। अतएव शत्रुघ्न सिन्हा को भी इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली नई दिल्ली विधानसभा सीट का अच्छा अनुभव है।
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