अरविंद केजरीवाल
संजय सिंह का यह आरोप की उनके पार्टी के कुछ विधायकों को पैसा का लालच दिया जा रहा है। यह खुद में ही तथ्यहीन हैं। विपक्षी दलों को इस बात की जानकारी का कोई भी जरिया नहीं है, जिससे यह पता किया जा सके कि आप का कौन उम्मीदवार जीतने की स्थिति में है। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह का आरोप के पीछे आप का दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी के हारने की स्वीकारोक्ति के समान है, साथ ही इस बार के चुनावों में आप की संभावित हार से जनता का ध्यान भटकाने के लिए किया गया है।
संजय सिंह ने अगले विधानसभा में अपने संभावित विधायकों पर नैतिक दवाब बनाने की लिए कि अगर वो पाला बदलकर तो उन पर पैसे लेकर दल-बदल का आरोप लगाया जा सके इसके लिए उन्होंने पहले ही इस तरह के आरोप लगा दिए हैं। दूसरा उनके विधायक जिन दलों में शामिल होंगे उन पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जा सके इस लिए भी उन्होंने पहले ही इस तरह के आरोप लगा दिए हैं। आप सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल द्वारा चुनाव परिणामों के बाद बदले हालत से निपटने और पार्टी को एकजुट रखने सहित अन्य मुद्दों पर राय मशविरा करने वास्ते चुनाव परिणाम के एक दिन पहले बड़ी बैठक इन्हीं हालातों में किया जा रहा है।
आम आदमी पार्टी भाजपा के दिल्ली में बढ़ते प्रभाव से इतनी घबरा गई है कि अब पार्टी को टूट का डर सताने लगा है पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह द्वारा अपने पार्टी के कुछ विधायकों को 15-15 करोड़ रूपए देकर पार्टी को तोड़ने का आरोप लगना इसकी एक बानगी भर है। आम आदमी पार्टी को इस बार का पूरा आभास है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद पार्टी के टूट की पूरी संभावना है। एग्जिट पोलों की रिपोर्टों के मुताबिक, इस बार आप ना सिर्फ सरकार बनाने से दूर रहेगी, बल्कि इसके विधायकों की संख्या भी काफी कमतर होने की संभावना है। इस हालात में आप के जीते गए विधायक पाला बदलकर अन्य दलों में शामिल हो सकते हैं।
अरविन्द केजरीवाल का शुरूआती दिनों से ही अपने पार्टी के सहयोगियों के प्रति तानाशाही वाला रवैया रहा है। पार्टी के स्थापना के काल के लगभग सभी बड़े सहयोगी पार्टी से अलग होने पर मजबूर किये जा चुके हैं। इनमें कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, आशुतोष, प्रशांत भूषण, आनंद कुमार सहित अनेकों नेता हैं। इन लोगों ने बड़े अरमानों से केजरीवाल के साथ अलग और ईमानदार राजनीति के लिए आम आदमी पार्टी की स्थापना किया था। मगर सभी को अरविन्द केजरीवाल के तानाशाही प्रवर्ति के कारण पार्टी छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।
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