विश्लेषण

तालिबान ने उल्लंघन के आरोपों के चलते महिलाओं का एकमात्र रेडियो स्टेशन बंद किया

तालिबान की सूचना और तहजीब मिनिस्ट्री ने रेडियो बेगम नाम के इस रेडियो स्टेशन पर नियमों के उल्लंघन के आरोप लगाए। तालिबान का कहना था कि इस रेडियो स्टेशन ने विदेश आधारित एक टेलीवीजन नेटवर्क के साथ काम किया है।

Published by
सोनाली मिश्रा

अफगानिस्तान (Afghanistan) में महिलाओं पर तालिबान (Taliban) के अत्याचार लगातार जारी हैं। अब उन्होंने महिलाओं का एकमात्र रेडियो स्टेशन भी बंद कर दिया है। हालांकि, जितना हैरान करने वाला यह समाचार है कि तालिबान ने महिलाओं का एकमात्र रेडियो स्टेशन बंद कर दिया, उससे भी हैरान करने वाला यह है कि अभी तक महिलाओं का यह स्टेशन कार्यरत था। यह अभी तक तालिबान की नजरों से बचा हुआ कैसे था?

तालिबान की सूचना और तहजीब मिनिस्ट्री ने रेडियो बेगम नाम के इस रेडियो स्टेशन पर नियमों के उल्लंघन के आरोप लगाए। तालिबान का कहना था कि इस रेडियो स्टेशन ने विदेश आधारित एक टेलीवीजन नेटवर्क के साथ काम किया है। वह विदेशी सहयोग की जांच करेगा और तब तक यह रेडियो स्टेशन बंद रहेगा। इतना ही नहीं, तालिबान ने वहाँ पर काम करने वाली कुछ महिलाओं को भी हिरासत में लिया है। रेडियो बेगम के एक बयान के अनुसार, तालिबान के खुफिया एजेंटों ने महिला पत्रकारों और दो पुरुष कर्मचारियों के कंप्यूटर, हार्ड ड्राइव, दस्तावेज और सेलफोन छीन लिए।

रेडियो बेगम के इस प्रकार निलंबन को लेकर सीपेजे एशिया प्रोग्राम कोऑर्डनैटर बेह ली याई ने कहा कि “रेडियो बेगम को जबरन बंद करना अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों पर और एक बड़ा हमला है और खासतौर पर महिला आधारित और महिलाओं के नेतृत्व में चलने वाले मीडिया संगठनों पर।“

रेडियो बेगम नामक स्टेशन की स्थापना वर्ष 2021 में हुई थी। यही वह वर्ष था जब तालिबान ने सत्ता पर अधिकार किया था। रेडियो बेगम तालिबान के सत्ता सम्हालने के कुछ ही समय पहले आरंभ हुआ था। यह काबुल में महिला आधारित मीडिया ब्रॉडकास्टर है, जो सोशल मीडिया जैसे फ़ेसबुक आदि पर पोस्ट आदि भी लिखता है।

ऐसा नहीं है कि तालिबान ने पहली बार ऐसा कुछ किया है। वर्ष 2023 में तालिबान ने महिलाओं द्वारा चल रहे रेडियो स्टेशन को केवल इस आधार पर बंद करवा दिया था, कि वह रमजान के महीने में गाना बजा रहा था। सीएनएन के अनुसार 4 फरवरी को लगाए गए प्रतिबंध से पहले, रेडियो बेगम ने अफ़गानिस्तान के अधिकांश हिस्सों में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य, मनोविज्ञान और आध्यात्मिक कार्यक्रमों के साथ-साथ प्रतिदिन छह घंटे की कक्षाएं प्रसारित की थीं। स्टेशन ने कहा कि यह अफ़गान लड़कियों को शिक्षा और अफ़गान महिलाओं को सहायता प्रदान करता है, बिना किसी “राजनीतिक गतिविधि में शामिल हुए।”

तालिबान का यह कदम महिलाओं को पूरी तरह से कैद में रखने के लिए एक और कदम है। यह कदम बताता है कि तालिबान ने जो अपना उदार रूप सत्ता सम्हालने से पहले पेश करने का प्रयास किया था, वह केवल और केवल छलावा था। महिलाओं के प्रति तालिबान का रवैया वही है, जो उसका पहले था। तालिबान मुस्लिम महिलाओं को सार्वजनिक रूप से पूरी तरह से गायब कर चुका है। फिर चाहे सार्वजनिक स्थल पर उनकी आवाज हो, या मकानों में खिड़कियों से झाँकने जैसी बहुत ही बुनियादी बातें।

जो लोग पूरे विश्व में इस्लामोफोबिया जैसी बातें लगातार करते हैं या यह स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं कि इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है, वह यह बताएंगे कि क्या इन महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के विषय में बात करना भी इस्लामोफोबिया के दायरे में आएगा? क्योंकि इन महिलाओं पर जो भी अत्याचार हो रहे हैं, वह इस्लाम के नाम पर ही हो रहे हैं। वे शरिया के नाम पर हो रहे हैं।

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