विश्व

जिहाद को बंद अमेरिकी खाद

ट्रंप प्रशासन ने बांग्लादेश को ‘विकास कार्यों’ की मद में दी जाने वाली आर्थिक मदद रोककर स्पष्ट संकेत दिया है कि ‘अमानवीयता की हद पार करते हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर किए जा रहे अत्याचार फौरन बंद करो, वरना कौड़ी-कौड़ी के लिए मुहताज होने को तैयार रहो।’ ट्रंप के इस कदम की सभ्य जगत में प्रशंसा हो रही

Published by
Alok Goswami

बीस जनवरी, 2025 को अमेरिका के शीर्ष पद पर हुआ बड़ा बदलाव न सिर्फ उस देश की रणनीति और सोच में एक मोड़ लेकर आया है बल्कि वैश्विक राजनीति और घटनाक्रमों पर भी इस बदलाव का असर दिखना शुरू हो गया है। दरअसल 20 जनवरी 2025 को रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के नाते शपथ लेने से पहले ही दुनियाभर के नीतिकार और विश्लेषक यह मानकर चल रहे थे कि व्हाइट हाउस की रीति-नीति में एक बड़ा परिवर्तन आएगा ही। ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति के नाते पहले कार्यकाल में उनके निर्णयों और कार्यपद्धति को देखते हुए विशेषज्ञों को पूरा अंदाजा था कि इस बार भी ट्रंप कुछ ऐसे फैसले लेंगे जो पूर्ववर्ती डेमोक्रेट राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा शुरू की गईं परंपराओं से बहुत हद तक विपरीत होंगे। और ऐसा होता दिख भी रहा है।

ट्रंप ने शपथ लेने के फौरन बाद ही 150 से ज्यादा कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए। इनमें अवैध अप्रवासियों को देश से बाहर करने का आदेश हो या ट्रांसजेंडरों को अमान्य करने का, अमेरिकी नीतियों के विरोधी देशों यथा कनाडा, मैक्सिको पर टैरिफ लगाने की बात हो अथवा यूक्रेन-रूस युद्ध…ट्रंप ने शुरुआत से ही दिखा दिया है कि पुरानी लीक अब स्वीकार्य न हो पाएगी। इन्हीं आदेशों में एक आदेश बांग्लादेश के संदर्भ में लिया गया है, जो न सिर्फ बांग्लादेश के नए मजहबी कट्टर शासन को सीधे-सीधे लक्षित करता है, बल्कि दुनिया भर में हिन्दुओं के नरसंहार के वहां से दिखे दृश्यों के आलोक में लिया उचित फैसला मालूम देता है।

5 अगस्त, 2024 को ‘छात्र आंदोलन’ की आड़ में मजहबी उन्मादी तत्वों द्वारा किए गए तख्तापलट के बाद से लगातार गर्त में जा रहे बांग्लादेश को अमेरिका की ‘यूएसएड’ एजेंसी की ओर से विकास कार्यों की मद में जा रही राशि पर अब तीन महीने की रोक लगा दी गई है। ट्रंप प्रशासन का बांग्लादेश को स्पष्ट संकेत है कि ‘अमानवीयता की हद पार करते हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर किए जा रहे अत्याचार फौरन बंद करो, वरना कौड़ी-कौड़ी के लिए मुहताज होने को तैयार हो जाओ।’ ट्रंप के इस कदम की सभ्य जगत में प्रशंसा ही हो रही है। व्हाइट हाउस, संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार परिषद की ओर से एक नहीं, अनेक बार बांग्लादेश को हिन्दू नरसंहार पर लगाम लगाने को कहा गया, लेकिन नोबेल सम्मान प्राप्त मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार इसे हल्के में लेती रही। क्योंकि ऐसे बयानों के बावजूद पूर्ववर्ती बाइडेन प्रशाासन बांग्लादेश को आर्थिक मदद देना जारी रखे हुए था। इसके पीछे वहां ‘डीप स्टेट’ के कथित संचालक डोनाल्ड लू का हाथ था या कुछ और, यह एक अलग बहस का विषय है।

लेकिन इसमें संदेह नहीं कि बांग्लादेश से जुड़ा नवगठित ट्रंप प्रशासन का यह निर्णय अमेरिका-बांग्लादेश संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ को चिह्नित करता है। यह उस दक्षिण एशियाई राष्ट्र में बिगड़ती मानवाधिकार स्थिति पर बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चिंता को उजागर करता है।

बांग्लादेश में हिन्दुओं पर किए गए अत्याचारों को लेकर पूरे विश्व में आक्रोश है

अमेरिकी यूएसएड एजेंसी का अनुदान बांग्लादेश के लिए विकास सहायता का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। इस पर रोक लगना बांग्लादेश को डगमगा सकता है। कारण यह कि यह इस्लामी देश उसके आका के तौर पर उभर रहे जिन्ना के देश यानी पाकिस्तान की तरह राजनीतिक उठापटक और आर्थिक चुनौतियों, दोनों से जूझ रहा है। यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि बांग्लादेश की ज्यादातर योजनाएं ऐतिहासिक रूप से इस एजेंसी से मिलने वाली खैरात पर टिकी रही हैं। बात चाहे स्वास्थ्य सेवा की हो या शिक्षा, आर्थिक विकास अथवा लोकतांत्रिक शासन सहित विभिन्न क्षेत्रों की, अमेरिकी अनुदान राशि इन्हें खाद-पानी देती रही है। पूर्ववर्ती शेख हसीना सरकार ने इसकी मदद से अनेक परियोजनाएं शुरू और पूर्ण की थीं और बांग्लादेश को गरीबी से बाहर लाने का भरसक प्रयत्न किया था।

गहरा होगा असर

अब बात इस खैरात के रुकने से बांग्लादेश पर पड़ने वाले प्रभाव की। हाल के वर्षों में, बांग्लादेश को इस अमेरिकी एजेंसी से औसतन कई सौ अरब डॉलर का सालाना अनुदान मिलता रहा था। इसी के बूते देश भर में अनेक महत्वपूर्ण विकास कार्यक्रम चल रहे थे। लेकिन अब ट्रंप की नाराजगी से इस मदद राशि का निलंबन विभिन्न क्षेत्रों पर असर दिखाएगा। बांग्लादेश में स्वास्थ्य सेवा की बात करें तो मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रमों सहित अनेक सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों को तत्काल पैसे की किल्लत झेलनी पड़ सकती है। शैक्षिक विकास परियोजनाएं, विशेषकर प्राथमिक शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर केंद्रित परियोजनाएं अटक जाएंगी। लघु व्यवसाय विकास कार्यक्रम और कृषि पहलों को अस्थायी रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है। विभिन्न बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं में देरी होगी या कुछ वक्त के लिए उन पर ब्रेक लग जाएगा।

बेलगाम अत्याचार

शायद इस वक्त मजहब के उन्माद से संचालित इस देश की अंतरिम सरकार भले इसके उक्त दुष्प्रभावों को जमातियों के दबाव में नजरअंदाज कर दे, लेकिन इतना तय है कि देश के अवाम को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। हिन्दुओं के साथ वहां कैसा दुर्व्यवहार किया जा रहा है, इस बारे में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने अनेक उदाहरण लिखित रूप से दर्ज किए हैं, जैसे हिंदुओं की संपत्तियों को नष्ट करना और उनकी जमीनें हड़पना, हिंदू परिवारों का जबरन विस्थापन, हिंदू मंदिरों और धार्मिक संस्थानों पर हमले, सार्वजनिक सेवाओं और रोजगार से हिन्दुओं को वंचित करना और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा हिन्दू परिवारों को धमकियां देना, उनका भयादोहन करना।

जैसा कि पहले बताया गया है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अमेरिका के नेतृत्व में बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचारों पर गहन चिंता व्यक्त की है। इसके अलावा बांग्लादेश में चिंताजनक मुद्दे और भी हैं, जैसे, लोकतांत्रिक मानदंडों और संस्थानों का क्षरण होना, प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक समाज पर प्रतिबंध लगाना, न्यायिक स्वतंत्रता पर आघात होना, राजनीतिक विरोध को बर्दाश्त न किया जाना और मजहबी मामलों पर सरकारी थानेदारी बढ़ते जाना।

यूएसएड का चंदा रोका जाना एक प्रकार से बांग्लादेश सरकार पर यह दबाव डालना है कि वह उक्त विषयों से जुड़ी मानवाधिकार चिंताओं को दूर करने के लिए प्रयास करे। ट्रंप का यह फैसला बेशक एक सुनियोजित कूटनीतिक प्रतिक्रिया है। सवाल है कि बांग्लादेश को बंद किया गया अनुदान किन शर्तों पर फिर से चालू किया जाएगा? इस बारे में अमेरिकी विदेश विभाग ने संकेत किया है। बांग्लादेश से साफ कहा गया है कि उसे हिन्दुओं व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। पांथिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए सुधारों का कार्यान्वयन करना होगा। मानवाधिकार उल्लंघन के मामले देखने के लिए जवाबदेही हेतु एक तंत्र स्थापित करना होगा और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता दिखानी होगी। विशेषज्ञों की राय में अमेरिका का यह कदम वैश्विक समुदाय को भी इस ओर ध्यान देने को बाध्य करेगा। अन्य विदेशी सहायता एजेंसियां भी बांग्लादेश के मजहबी कट्टर शासन की हेकड़ी निकालने के लिए इस प्रकार के निर्णय ले सकती हैं।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की बात करें तो ट्रंप प्रशासन के इस कदम पर उसने लीपापोती भरी टिप्पणी की, जो बेशक उस पर मजहबी दबाव का होना स्पष्ट करती है। सरकार की ओर से किसी तरह का मानवाधिकार उल्लंघन होने से इनकार किया गया है। उसने कहा कि कुछ खास घटनाओं की जांच कराई जाएगी। हिन्दुओं व अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी। लेकिन अब तक हिन्दू उत्पीड़न पर आंखें मूंदे रखने वाली सरकार उक्त प्रयास करेगी, इस पर शायद ही सभ्य समाज यकीन करेगा। विशेषज्ञों की राय में अगर बांग्लादेश को एक राष्ट्र के नाते खड़े रहना है तो उसे अल्पसंख्यक संरक्षण कानूनों को कार्यान्वित करना ही होगा। उसे मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं की किसी स्वतंत्र आयोग से जांच करानी होगी एवं उस देश को लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करते हुए हिन्दुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के साथ संवाद को सुधारना होगा।

लेकिन सवाल यह है कि क्या इस्लामी शरिया पर चलने को बेताब यह देश राष्ट्रपति ट्रंप की इस कूटनीतिक कार्रवाई का मर्म यानी, हिन्दुओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन ‘समझ पाएगा या उस पर कोई उपचारात्मक कार्रवाई करेगा? विशेषकर’ आज वहां बचे लगभग 10 प्रतिशत हिन्दुओं से आसुरी बरताव करना बंद करेगा? इन सब प्रश्नों का जवाब बेशक आने वाले दिनों में इस देश के चाल-चलन से ही मिल सकेगा।

यूनुस ने एलेक्स सोरोस को सुनाया दुखड़ा!

इधर राष्ट्रपति ट्रंप की सरकार ने हिन्दुओं पर अत्याचार के आरोपों से घिरे बांग्लादेश को अमेरिकी मदद रोकने की घोषणा की, उधर अमेरिकी उद्योगपति जॉर्ज सोरोस का बेटा एलेक्स यूनुस का दुखड़ा सुनने 29 जनवरी को उनके पास पहुंच गया। एलेक्स अपने पिता जॉर्ज सोरोस के एनजीओ ओपन सोसाइटी फाउंडेशन का अध्यक्ष है। पिता—पुत्र पर इस एनजीओ के माध्यम से पूर्वी यूरोप, मध्य पूर्व तथा लातीनी अमेरिका में सत्ता में फेरबदल को शह देने के आरोप लगते रहे हैं। एलेक्स और यूनुस की भेंट से अंदाजा लगता है कि भारत सहित लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाले विभिन्न देशों में अराजकता फैलाने की सोच रखने वालों के बीच कैसी साठगांठ है।

उल्लेखनीय है कि गत अक्तूबर माह में ही यूनुस ने न्यूयॉर्क में एलेक्स से भेंट की थी। तीन महीने के अंतराल में दोनों के बीच यह दूसरी मुलाकात बेशक, शक पैदा करती है। हालांकि वार्ता को लेकर यूनुस ने बताया कि सोरोस ने अंतरिम सरकार के ‘सुधार के प्रयासों’ के प्रति अपना समर्थन जताया है। दोनों में ‘खास आर्थिक सुधारों’ की दिशा में बात हुई है। दिलचस्प है कि गत अक्तूबर में दोनों की वार्ता में एलेक्स ने यूनुस को ‘अपने पिता का पुराना दोस्त’ कहा था। यूनुस के मजहबी उन्माद की ओर बढ़ते देश में सोरोस इधर कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहे हैं। सोरोस की एनजीओ पर ही बांग्लादेश में तख्तापलट को पीछे से समर्थन देने का गंभीर आरोप लगा है।

यूं बनाया गया हिन्दुओं को निशाना

  • 6 अगस्त, 2024-फरीदपुर जिले में एक हिन्दू मंदिर पर हमला ६मूर्तियों को क्षतिग्रस्त किया गया ६ हिन्दू परिवारों को धमकियां
  • 12 अगस्त, 2024-चटगांव में हिन्दुओं की दुकानों में तोड़फोड़ ६ कई परिवारों को भागना पड़ा ६ व्यावसायिक संपत्ति को नुकसान
  • 20 अगस्त, 2024-खुलना में काली मंदिर पर हमला ६ पुजारी और श्रद्धालुओं को बनाया निशाना ६ देव प्रतिमाएं ध्वस्त
  • 28 अगस्त, 2024-नोआखली में हिन्दू छात्रों पर हमला ६ शैक्षणिक संस्थानों में उनसे भेदभाव की शिकायतें ६ हिन्दू छात्रों को धमकियां
  • 5 सितंबर, 2024-ढाका के बाहरी इलाके में हिन्दू परिवारों की जमीन पर कब्जा ६कई परिवार पलायन को मजबूर
    ल्ल 15 सितंबर, 2024-बारीसाल में दुर्गा पूजा आयोजकों को धमकियां ६पूजा पंडालों को नुकसान ६ स्थानीय हिन्दू नेताओं पर हिंसक हमले
  • 25 सितंबर, 2024-सिलहट में हिन्दू कारोबारियों पर हमले ६ संपत्ति को नुकसान ६ आर्थिक बहिष्कार की धमकियां
  • 10 अक्तूबर, 2024-रंगपुर में हिन्दू परिवारों पर हमले ६ घरों में तोड़फोड़ ६ कई परिवार विस्थापित
  • 20 अक्तूबर, 2024-कोमिल्ला में हिन्दू मंदिरों पर हमले ६ हिन्दू धार्मिक प्रतीकों का अपमान ६ पुजारियों को धमकियां
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    ल्ल 20 अक्तूबर, 2024-कोमिल्ला में हिन्दू मंदिरों पर हमले ६ हिन्दू धार्मिक प्रतीकों का अपमान ६ पुजारियों को धमकियां
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