ऋतुएं हमारे जीवन में गति और नवाचार का पर्याय है, जो सृजनात्मक सोच का मार्ग प्रशस्त करती है। वैसे तो हमारे देश में छः ऋतुएं होती हैं, लेकिन ऋतुराज वसंत का क्या कहना। वसंत पंचमी ऋतुराज के आगमन का उत्सव है। इस ऋतु में चहुंओर पेड़-पौधों में नव कोपलें उगती हैं। ऋतुराज बसंत जब अपने रथ पर सवार होकर आते हैं तो पृथ्वी झूम उठती है। चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छा जाता है। पृथ्वी पर नवीनता का पुनः सृजन होने की ऋतु है वसंत। भगवान श्री कृष्ण ने भगवद् गीता में इसलिए कहा भी है ‘मैं ऋतुओं में वसंत हूं’।
तनाव दूर करता है वसंत
वसंत ऋतु का आगमन जीवन में ऊर्जा का संचार करता है। इस दौरान प्रकृति की छटा में उतरता पीला रंग व्यक्ति के जीवन में गहरा प्रभाव डालता है। वैज्ञानिक दृष्टि की बात करें तो पीला रंग प्राण शक्ति का प्रतीक माना गया है। मनौवैज्ञानिक मान्यता है कि यह रंग डिप्रेशन को दूर करने में कारगर है। क्योंकि यह जीवन में उत्साह बढ़ाकर दिमाग को सक्रिय कर आत्मविश्वास में वृद्धि करता है। इस ऋतु का प्रभाव मानव जीवन में आशावाद और सकारात्मक सोच लेकर आता है। जीवन की हताशा, निराशा, आलस्य और विफलताओं से व्यथित प्राणियों को वसंत में हो रहे बदलाव आगे बढ़ने और विफलताओं का सामना कर फिर से नवीन रास्ते सृजन करने की प्रेरणा देते हैं।
पुराने पत्तें झड़ते हैं, नव कोपलें फूटती हैं। नये से और नया होने का आह्वान जहां है, वहीं तो जीवन है। वसंत ऋतु इसलिए भी सुहाती है क्योंकि इस समय दूर तक सरसों के पीले रंग के पुष्पों की चादर छा जाती है। बचपन में जब मैं दूर-दूर तक सरसों के ऐसे खेत देखता था तो मन भरता ही नहीं था। आज भी जहां भी सरसों के फूल खिलते हैं, तो मैं उन्हें देखने के लिए रूक जाता हूं। वहां खेतों में खड़ा ही रह जाता हूं। ये पीले फूल देखकर हर किसान के मन में उत्साह और उमंग भर जाते हैं। इन पीले फूलों से माताएं-बहनें भगवान की पूजा करती है।
माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाने वाले वाली वसंत पंचमी न केवल प्रकृति के नव जीवन का प्रतीक है, बल्कि यह ज्ञान, विद्या एवं कला की देवी मां सरस्वती की आराधना का भी पर्व है। ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के ही दिन भगवान ब्रह्मा जी की जिह्वा से वाणी, ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती प्रकट हुई थी। वसंत पंचमी के दिन से ही रंगोत्सव का आगाज भी हो जाता है। ये रंगोत्सव हमारे जीवन में भी उल्लास और उमंग का संचार करता है।
वसंत पंचमी का महत्व केवल धार्मिक-सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि शैक्षणिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत गहरा है। संसाधनों के अभाव में शिक्षा में बाधा नहीं हो, इसलिए हमारी सरकार राजकीय विद्यालयों के बच्चों को 4 करोड़ से अधिक पाठ्य पुस्तकों को निःशुल्क उपलब्ध कराने के साथ-साथ विभिन्न योजनाओं के माध्यम से विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करने और चरित्रवान व संस्कारित पीढ़ी तैयार करने में जुटी हुई है। हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है कि प्रदेश को शिक्षा के क्षेत्र में देश में अग्रणी बनाया जाए। एक लक्ष्य यही है कि शिक्षा के जरिए चहुंमुखी विकास हो। इसी संकल्प के साथ हमारी सरकार कार्य कर रही है।
सही ज्ञान और उत्तम शिक्षा से ही समाज का कल्याण संभव है। हमें ज्ञान को परमार्थ के लिए लगाना चाहिए। इसका अहंकार नहीं करना चाहिए। महाकवि कालिदास को भी जब ज्ञान का अहंकार हुआ, तो उसे दूर करने के लिए स्वयं मां सरस्वती को प्रकट होना पड़ा। वृद्धा वेश में मां सरस्वती ने कालिदास से परिचय पूछा। प्यास से बेहाल कालिदास जब वृद्धा के चरणों में नतमस्तक हो गए, तब मां सरस्वती ने वास्तविक रूप में प्रकट होकर उनसे कहा- कि तुमने शिक्षा के बल से प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को अपनी उपलब्धि समझ लिया था। तुम्हें अहंकार हो गया था। ज्ञान प्रकाश (एनलाइटमेंट) के लिए होता है, अहंकार के लिए नहीं।
ऋतुएं हमें चरैवेति-चरैवेति की प्रेरणा देने के साथ ही नवीन सोच के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। इनमें वसंत सृजन और सौन्दर्य के साथ समावेशन को इंगित करती है। अपने सपनों और लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नई शुरूआत करने का साहस रखें और संकल्प के साथ आगे बढ़े। तो आइए इस अमृतकाल में हम सब मिलकर वासंती प्रेरणा को आत्मसात् कर ‘आपणो अग्रणी राजस्थान’ और ‘विकसित भारत’ के संकल्प को साकार करें।
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