नई दिल्ली । दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। एक शैक्षणिक शोध के आधार पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें दिल्ली सरकार द्वारा स्कूलों में किए गए खर्च की न्यायिक जांच की मांग की गई है। याचिका स्वतंत्र जन आवाज़ फाउंडेशन नाम की संस्था ने दायर की है, जिसमें बताया गया है कि राजधानी के 45 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है, और 36,000 से ज्यादा छात्र बिना किसी गाइडेंस के पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
शोध में पाया गया है कि सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र में भारी-भरकम खर्च दिखाने के बावजूद, बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, शिक्षक भर्ती में पारदर्शिता नहीं है, और छात्रों के लिए अनिवार्य व्यवस्थाएं अधूरी हैं। “हमारे बच्चों का भविष्य अधर में है,” याचिकाकर्ता ने दलील दी, “सरकार आंकड़ों की बाजीगरी में लगी है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि स्कूलों में शिक्षक ही नहीं हैं।”
बजट बढ़ा, लेकिन स्कूलों में सुधार नहीं
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 में शिक्षा विभाग का बजट 2215.95 लाख रुपये था, जो 2024-25 में बढ़कर 3121.80 लाख रुपये हो गया। लेकिन शिक्षकों की भर्ती, कक्षाओं के निर्माण और सुविधाओं में कोई समानुपातिक सुधार नहीं हुआ।
शोध में सामने आया है कि 1,082 स्कूलों में से सिर्फ 273 स्कूलों में ही सैनिटरी पैड डिस्पेंसर मशीनें उपलब्ध हैं, जिससे कई छात्राएं मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं आ पातीं।
छात्रों को शिक्षा से वंचित करने का आरोप
याचिका में आरोप लगाया गया है कि कमजोर छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली से हटाकर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय (NIOS) की ओर मोड़ा जा रहा है, ताकि सरकारी स्कूलों के परीक्षा परिणाम बेहतर दिखाए जा सकें। रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में NIOS में 62,508 छात्रों का नामांकन था, जो 2024 में बढ़कर 78,517 हो गया है।
न्यायिक जांच की मांग
याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट से मांग की गई है कि शिक्षा बजट और स्कूलों में हो रहे खर्च का स्वतंत्र ऑडिट हो, शिक्षकों की भर्ती पारदर्शी तरीके से की जाए, और स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी को दूर किया जाए।
अब सभी की नजरें हाईकोर्ट पर टिकी हैं कि क्या न्यायपालिका इस गंभीर मुद्दे पर सख्त कदम उठाएगी और दिल्ली के लाखों बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए सरकार को जवाबदेह ठहराएगी।
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