स्वीडन में इराक के ईसाई शरणार्थी सलवान मोमिका की हत्या उनके लाइव सेशन के दौरान कर दी गई। उनकी पहचान यह कहते हुए बताई जा रही है कि उन्होंने कुरान की प्रतियां जलाई थीं। यह भी कहा जा रहा है कि वह इराक के ऐसे ईसाई थे, जिन्होंने आतंकी संगठन आईएसआईएस का भी सामना किया था।
dr.Maalouf नामक यूजर ने लिखा कि सलवान मोमिका ने एक ऐसी मुस्लिम महिला को चुप कराया था, जो आईएसआईएस का महिमामंडन कर रही थी और यजीदी महिलाओं की गुलामी को भी सही ठहरा रही थी।
उन्होंने लिखा कि कुछ लोग कहते हैं कि सलवान ने कुरान की प्रतियां केवल ध्यानाकर्षित करने के लिए जलाई थी, मगर यह सच नहीं है। उसे पूरी तरह से विश्वास था कि वह किसके लिए लड़ रहा है। वह इराक से आया ईसाई था, जिसने इस्लाम के अत्याचार झेले थे और जो भी उस खतरे के दायरे में आता था, तो वह उसकी परवाह करता था।
Salwan Momika shut down a Muslim woman glorifying ISIS and the enslavement of Yazidi women.
Some people say Salwan burned Qurans only for attention, but that could not be further from the truth. He truly believed in what he was fighting for.
Salwan was an Assyrian Christian… pic.twitter.com/F57ioWjntE
— Dr. Maalouf (@realMaalouf) January 30, 2025
वहीं स्वीडन की नीतियों को लेकर भी लोग सवाल उठा रहे हैं। एक एस-मुस्लिम यूजर ने स्वीडिश सांसद की एक पोस्ट साझा की। उसमें उस सांसद ने सलवान मोमिका को इस्लामोफोबिक कहा।
This is a Swedish Parliament member.
He made his statement on Salwan Momika's murder by Muslims all about "Islamophobia" and "anti-Muslim hatred."Sweden, WTF? pic.twitter.com/b2RaGuff2a
— Ridvan Aydemir | Apostate Prophet 🇺🇸🇮🇱 (@ApostateProphet) January 31, 2025
कट्टरता को लेकर लगातार मुखर रहने वाले एमी मेक ने लिखा कि कैसे स्वीडन के प्रधानमंत्री ने सलवान मोमिका को धोखा दिया और उसकी हत्या के लिए मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने लिखा कि कैसे स्वीडन की सरकार ने अपने अभिव्यक्ति की आजादी के कानून के स्थान पर कट्टरपंथी मुस्लिमों के गुस्से को प्राथमिकता दी।
मोमिका को स्वीडन की सरकार द्वारा पुलिस संरक्षण भी नहीं दिया गया। यहां तक कि स्वीडन के प्रधानमंत्री ने इस हत्या की निंदा तक करने से इनकार कर दिया। हेट स्पीच के लिए मुकदमा चलाया गया। सोशल मीडिया पर इसको लेकर यही कहा जा रहा है कि कुरान जलाने का समर्थन नहीं किया जा सकता है, मगर इसके लिए किसी का खून भी नहीं किया जा सकता है।
नॉर्वे की पत्रकार रेबेका ने सलवान मोमिका की हत्या को लेकर एक वीडियो भी पोस्ट किया। उन्होंने कहा कि सलवान मोमिका इस्लाम से बचकर यूरोप आया था, इस्लाम के हाथों मरने के लिए। रेखाएं खींची जा चुकी हैं, और मौतों की संख्या बहुत अधिक है। इसे रोका जाना चाहिए।
Salwan Momika came to Europe to escape Islam, only to be killed by Islam.
The line has to be drawn, the death toll is too high. Yet the sharia death cult-members are protected with action plans and given our tax money to spread their fascist ideology.
This needs to stop NOW. pic.twitter.com/ATUelV1Hau
— Rebecca Mistereggen (@RMistereggen) January 30, 2025
यूरोप के कई लोगों के भीतर इस हत्या को लेकर गुस्सा है। एक यूजर ने लिखा कि सबसे संवेदनशील लोगों ने उसे मार डाला, क्योंकि उसने उनकी भावनाओं को आहत किया था। सभी यूरोपीय पुरुषों के लिए समय है कि हम एक साथ आएं और याद करें कि हमारे पूर्वजों ने किसलिए लड़ाई की थी।
वहीं हैरान करने वाली बात यह भी है कि मोमिका की हत्या के पांचों संदिग्धों को छोड़ दिया गया है। हालांकि वे अभी भी संदिग्ध हैं, मगर उन्हें अभी जेल में नहीं रखा गया है। वहीं मोमिका पर घृणा फैलाने का मुकदमा चल रहा है।
एक यूजर ने लिखा कि ईराकी शरणार्थी सलवान मोमिका इसलिए नहीं मारा गया क्योंकि उसने कुरान जलाई थी। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पश्चिमी राजनेता, पत्रकार, पुलिस और शिक्षक लगातार उन लोगों का पक्ष लेते हैं जो उनकी हत्या करना चाहते थे।
वहीं स्वीडन में बमबारी की घटनाएं भी लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसके साथ ही स्वीडन के प्रधानमंत्री और सरकार ने यह पुष्टि भी की है कि स्वीडिश सरकार के नियंत्रण से चीजें बाहर जा रही हैं। स्वीडन में बढ़ती इस्लामिक कट्टरता के विरोध में लगातार लिखने वाले पीटर स्वीडन ने लिखा कि जनवरी में स्वीडन में 32 बमबारी की घटनाएं हुई हैं। प्रधानमंत्री इसे अब घरेलू आतंकवाद कह रहे हैं। मैं सालों से इस बमबारी के संकट पर लिख रहा हूं और लेफ्ट मुझे “conspiracy theorist” कह रहा था।
स्वीडन में कट्टरता लगातार बढ़ रही है और पीटर स्वीडन जैसे लोग लगातार इन घटनाओं के विषय में लिख रहे हैं। मगर यह भी सच है कि कथित मुख्यधारा की मीडिया इन घटनाओं को छिपाती है, मोमिका जैसे लोगों पर लगातार विमर्श करवाती है और देश के लिए बात करने वालों को कट्टर और पिछड़ा घोषित करती है।
यह सच है कि किसी भी पंथ की पुस्तक जलाने की निंदा होनी चाहिए, मगर उसके लिए ऐसा विमर्श बनना कि उसकी जान की ही कोई कीमत न हो, ऐसा भी नहीं होना चाहिए।
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