अपनी पहली पुस्तक को प्रकाशित करवाने की प्रक्रिया बेहद मुश्किल और संघर्ष भरी होती है। इसके उचित कारण हैं और नए लेखकों के प्रति प्रकाशकों का रवैया भी। कुछ नए लेखकों की पुस्तक प्रकाशित होती भी है तो प्रकाशक को इस प्रक्रिया का खर्च देने के बाद। प्रकाशन के बाद भी उन्हें इन पुस्तकों पर समुचित रॉयल्टी नहीं मिल पाती और कुछ प्रकाशक मुद्रित होने वाली और बेची गई किताबों का विवरण भी नहीं देते। ऐसे में इंटरनेट पर उपलब्ध स्व-प्रकाशन की सुविधा बहुत उपयोगी हो सकती है।
स्व-प्रकाशन वह प्रक्रिया है जिसमें लेखक अपनी पुस्तकों को स्वयं ही प्रकाशित कर लेते हैं और उन्हें लोगों तक पहुंचाने के लिए वैकल्पिक माध्यमों का प्रयोग करते हैं, जैसे कि सोशल मीडिया और निजी नेटवर्किंग। दुनिया भर में प्रकाशन की दुनिया में मौजूद दीवारों और अड़चनों से व्यथित लेखक स्व-प्रकाशन (सेल्फ-पब्लिशिंग) का प्रयोग कर रहे हैं।
हालांकि किताबों के लोकप्रिय होने में प्रकाशक का बड़ा और सुपरिचित नाम काफी अहमियत रखता है लेकिन अगर पुस्तक की विषय-वस्तु बहुत अच्छी हो तो वह अपने बल पर भी लोकप्रिय हो सकती है। हमने ऐसे अनेक लेखकों की किताबों को बेस्ट-सेलर में बदलते हुए देखा है जिन्होंने स्व-प्रकाशन का रास्ता अपनाया। इनमें प्रसिद्ध लेखक अमीश, रश्मि बंसल, प्रीति शिनॉय, नील डिसिल्वा, अर्जुन राज, देबाशी गुप्तू आदि शामिल हैं।
बात सिर्फ नवोदित लेखकों की ही नहीं है। आज स्व-प्रकाशन के मार्ग पर चलकर कुछ नए प्रकाशन गृह भी जन्म ले रहे हैं। इंटरनेट पर उपलब्ध अमेजॉन जैसे प्लेटफॉर्म न सिर्फ आपकी किताब छाप सकते हैं बल्कि उसे खुद ही लोगों तक पहुंचा भी सकते हैं और आपको एक बहुत स्वस्थ किस्म की रॉयल्टी भी दे सकते हैं।
ये सभी वे प्रक्रियाएं हैं जिनका दायित्व पारंपरिक प्रकाशन गृह भी संभालते हैं। अगर यह सब काम इंटरनेट पर उपस्थित किसी कंपनी को सौंपा जा सके और आपको सिर्फ अपनी किताब के कंटेंट तथा डिजाइन मात्र पर ध्यान केंद्रित करना हो तो फिर यह सबके लिए फायदे का सौदा है-लेखक के लिए भी, इंटरनेट पर स्व-प्रकाशन सेवाएं देने वालों के लिए भी तथा पाठकों के लिए भी, जिन्हें आपकी किताबें बहुत आसानी से इंटरनेट के जरिए उपलब्ध हो जाती हैं।
आज भारत में अमेजॉन किंडल डायरेक्ट पब्लिशिंग और नोशन प्रेस जैसे बड़े नामों के साथ-साथ दर्जनों दूसरे संस्थान मौजूद हैं जो स्व-प्रकाशन की सुविधा देते हैं। इनमें से कुछ संस्थानों के नाम हैं- ब्लू हिल पब्लिकेशंस, पोथी.कॉम, इंडिया प्रेस, क्लेवर फॉक्स पब्लिशिंग, गोया पब्लिशिंग, बुक रिवर्स, आथर्स इंक, ट्रीशेड बुक्स, विश्वकर्मा पब्लिकेशन, सिनेमन टील, जोरबा, व्हाइट फाल्कन पब्लिशिंग, इन्ग्राम स्पार्क आदि आदि।
अर्थ यह कि अगर आपके पास एक अच्छी किताब की पांडुलिपि मौजूद है तो इंटरनेट के वर्तमान युग में आपको इसके प्रकाशन के लिए बहुत दरवाजों को खटखटाने और भटकने की आवश्यकता नहीं है। यह काम आप अपने कंप्यूटर पर बैठे-बैठे खुद भी कर सकते हैं और वह भी एकदम व्यावसायिक स्तर पर।
हालांकि बहुत से लोग स्व-प्रकाशन की स्वतंत्रता और उससे हो रही प्रकाशन क्रांति के प्रति सहज नहीं हैं। यह भी सच है कि ये किताबें अच्छे कंटेंट की परख करने वाली सुस्थापित प्रक्रिया से नहीं गुजरतीं जिसके लिए अधिकांश प्रकाशन गृह जाने जाते हैं और इसलिए स्व-प्रकाशन के रास्ते आने वाली किताबों की गुणवत्ता, स्तर, भाषायी सौष्ठव, वास्तविक उपयोगिता और यहां तक कि मौलिकता पर भी प्रश्न उठाया जाना स्वाभाविक है। किंतु इंटरनेट युग में प्रचलित दूसरे माध्यमों की तरह इन किताबों पर भी यह नियम लागू किया जा सकता है कि अगर पुस्तक घटिया है तो उसे स्वत: ही पाठकों द्वारा अनदेखा कर दिया जाएगा जबकि अच्छे स्तर की किताबें अच्छा प्रदर्शन करेंगी। उम्मीद है कि अच्छी स्व-प्रकाशित पुस्तकों के आने से धीरे-धीरे उनकी स्वीकार्यता का वातावरण बनता चला जाएगा।
(लेखक एक बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी हैं)
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