इसे कहते हैं ‘प्यासे आदमी का गंगादान।’ पंजाब में मुफ्त बिजली के कारण सत्ता में आई आम आदमी पार्टी की सरकार को अब यही बिजली करंट मारती दिख रही है। इस योजना के चलते राज्य सरकार के खिसे खाली होते जा रहे हैं। कर्ज के मकडज़ाल में फंसे पंजाब पर मुफ्त बिजली की सब्सिडी का बोझ लगातार बढ़ रहा है। आने वाले वित्तीय साल 2025-26 में पंजाब में 20433 करोड़ की बिजली सब्सिडी रहने का अनुमान लगाया है, जबकि साल 2023-24 में बिजली सब्सिडी पर 17744 करोड़ रुपये का खर्च आया था। इसके कारण सरकार का वित्तीय संकट गहरा रहा है।
सरकार समय पर सब्सिडी राशि का भुगतान पावरकाम को नहीं कर पा रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चालू वित्तीय वर्ष की तकरीबन 6300 करोड़ की सब्सिडी सरकार की तरफ पेंडिंग पड़ी है। हाल ही में पीएसईबी इंजीनियर्स एसोसिएशन ने सीएम भगवंत मान को पत्र लिखकर इस सब्सिडी राशि समेत विभिन्न सरकारी विभागों की तरफ पेंडिंग पड़े करोड़ों रुपये के बिजली बिलों का भुगतान सुनिश्चित कराने की अपील की थी। लेकिन अभी तक यह भुगतान बकाया पड़े हैं।
पंजाब में 300 यूनिट मुफ्त होने के बाद से बिजली की खपत में रिकॉर्ड वृद्धि हो रही है। यहां तक कि सर्दियों में भी बिजली की खपत में बढ़ोतरी दर्ज हो रही है, लेकिन करीब 90 फीसदी खपतकारों के बिजली बिल शून्य आ रहे हैं। इससे बिजली सब्सिडी का बोझ पंजाब पर लगातार बढ़ रहा है। जहां वित्तीय साल 2023-24 में 17744 करोड़ की बिजली सब्सिडी रही थी। वहीं पावरकॉम ने 2024-25 में इसके 20324 करोड़ रहने का अनुमान लगाया है, जबकि पंजाब में 2025-26 में बिजली सब्सिडी 20433 करोड़ रहने का अनुमान लगाया गया है। यह 2023-24 के मुकाबले 2689 करोड़ रुपये ज्यादा रहने का अनुमान है।
2025-26 में खेतीबाड़ी सेक्टर में सबसे अधिक 10413 करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी रहने का अनुमान है। घरेलू खपतकारों पर 6860 करोड़ और इंडस्ट्री सेक्टर पर कुल 3159 करोड़ की बिजली सब्सिडी रहेगी।
इंडस्ट्री सेक्टर के तहत स्माल सप्लाई की बिजली सब्सिडी 155 करोड़, मीडियम सप्लाई की 343 करोड़ और लार्ज सप्लाई की 2662 करोड़ रहेगी। बिजली सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा खेतीबाड़ी सेक्टर पर ही खर्च होता है। साल 2023-24 की बात करें, तो खेतीबाड़ी सेक्टर की बिजली सब्सिडी 8334 करोड़ की रही थी। साल 2024-25 में 9883 करोड़ रहने का अनुमान है। राज्य पर पहले से ही कर्ज का बोझ बढ़ा हुआ है और आय के साधन सीमित हैं। ऐसे में बढ़ा हुआ बिजली का खर्च लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच रहा है।
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