नागवासकुी मंदिर : प्रयागराज के संगम तट से उत्तर दिशा की ओर दारागंज के उत्तरी कोने पर अति प्राचीन नागवासुकी मंदिर है। इस मंदिर में नागों के राजा वासुकीनाग विराजमान रहते हैं। वासुकी भगवान शिव के परमभक्त हैं और हमेशा उनके गले पर ही लिपटे रहते हैं। माना जाता है कि नाग वासुकी मंदिर में दर्शन करने से काल सर्प दोष भी दूर होता है, साथ ही सभी पापों का नाश होता है। नाग वासुकी मंदिर में शेषनाग और वासुकी नाग की मूर्तियां हैं। मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद नागराज वासुकी ने यहीं पर विश्राम किया था।
लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर : संगम किनारे लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा खड़ी नहीं, बल्कि लेटी हुई अवस्था में है। माना जाता है कि इनके बाएं पैर के नीचे कामदा देवी और दाएं पैर के नीचे अहिरावण दबा है। उनके दाएं हाथ में राम-लक्ष्मण और बाएं हाथ में गदा शोभित है। बजरंग बली यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। मान्यता है कि कन्नौज के राजा के कोई संतान नहीं थी। उनके गुरु के बताने पर उन्होंने इस प्रतिमा का निर्माण कराया था।
वे विंध्याचल से हनुमान जी की प्रतिमा नाव से लेकर आए थे। रास्ते में अचानक से नाव टूट गई और यह प्रतिमा जलमग्न हो गई। यह देखकर राजा को बेहद दुख हुआ और वे अपने राज्य वापस लौट गए। इस घटना के बाद जब गंगा का जलस्तर घटा तो वहां बाबा बालगिरी महाराज को यह प्रतिमा मिली।
मनकामेश्वर मंदिर : यमुना नदी के किनारे मनकामेश्वर मंदिर है, जहां पर भगवान शिव अपने विविध रूपों में विराजमान हैं। यहां भगवान शिव, गणेश एवं नंदी की मूर्तियां हैं। यहां हनुमान जी की भी एक बड़ी मूर्ति है। मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।
भारद्वाज आश्रम : प्रयागराज में बालसन चौराहे पर विशालकाय मुनि भारद्वाज की प्रतिमा स्थापित है। मुनि भारद्वाज के समय यह एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था। कहा जाता है कि भगवान राम अपने वनवास पर जाते समय सीता और लक्ष्मण के साथ इस स्थान पर आए थे। भारद्वाज मुनि प्रभु श्रीराम के उपासक भी थे। वन जाते समय भारद्वाज आश्रम में प्रथम पड़ाव पर श्रीराम का उन्होंने स्वागत किया था और उन्हें चित्रकूट जाने का रास्ता बताया था। लंका विजय करके अयोध्या वापस लौटते समय राम ने भारद्वाज ऋषि के दर्शन किए थे।
श्रृंगवेरपुर धाम : श्रृंगवेरपुर धाम प्रयागराज से 40 किमी दूर है। रामायण काल में यह निषादराज की राजधानी हुआ करती थी। मान्यताओं के अनुसार श्रृंगवेरपुर में श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। राजा दशरथ को जब कोई संतान नहीं हो रही थी तो उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। उस यज्ञ में खीर बनाई गई थी। इस खीर को राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने को दिया था। इसके बाद ही उन्हें प्रभु राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप में चार पुत्र प्राप्त हुए थे।
शंकर विमान मंडपम्: कांचिकामकोटि के 69वें पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने अपने गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती की इच्छापूर्ति के लिए श्री आदि शंकर विमान मंडपम् का निर्माण कराया था। गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने 1934 में प्रयाग में चातुर्मास किया था। उन दिनों वे दारागंज के आश्रम में रुके थे। वह प्रतिदिन पैदल संगम स्नान को जाते थे। बांध के पास उन्हें दो पीपल के वृक्षों के बीच खाली स्थान दिखा। उन्होंने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया और पाया कि इसी स्थान पर आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट के बीच संवाद हुआ था। शंकर विमान मंडपम् की नींव 1969 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल बी. गोपाल रेड्डी ने रखी थी। 130 फीट ऊंचे इस मंदिर में श्री आदि शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित की गई है।
ललिता देवी मंदिर : प्रयागराज में यमुना नदी के समीप मीरापुर में देवी सती का प्राचीन मंदिर स्थित है, जिसे महाशक्ति पीठ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यहां पर सती का हस्तांगुल गिरा था। मान्यता है कि पवित्र संगम में स्नान के पश्चात् इस पीठ में दर्शन-पूजन से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।
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