उत्तर प्रदेश

अक्षयवट : अकबर ने घेरा, मोदी ने कराया मुक्त

मुगलों और अंग्रेजों के कारण हिंदू समाज प्रयागराज स्थित अक्षयवट के दर्शन से सैकड़ों वर्ष तक वंचित रहा। स्वतंत्रता के बाद की कांग्रेस सरकारों ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। 2018 में भाजपा सरकार ने इसके दर्शन की अनुमति दी

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हर्षिता सिंह

प्रयागराज स्थित जिन पावन तीर्थों का उल्लेख प्राचीन धर्म ग्रंथोें से लेकर आज तक सभी धर्माचार्यों, विद्वानों, कथावाचकों द्वारा नियमित रूप से अपने उपदेशों, कथाओं और प्रवचनों में किया जाता है उनमें एक नाम अक्षयवट का है। अक्षयवट यमुना नदी के किनारे बने अकबर के किले के भीतर स्थित एक वट वृक्ष है, जिसके बारे में अनादि काल से अनेक कथाएं प्रचलित हैं। अक्षयवट को प्रलय और सृष्टि का साक्षी कहा जाता है, लेकिन उसके साथ ही यह पावन वृक्ष आधुनिक भारत में मुगल और ब्रिटिश शासकों द्वारा स्वयं के ऊपर किए गए जुल्म का भी गवाह है। मुगलों और अंग्रेजों के कारण हिंदू श्रद्धालु सैकड़ों वर्ष तक इस पवित्र वृक्ष के दर्शन नहीं कर पाए। इस वृक्ष को जैन और बौद्ध मत में भी पवित्र माना जाता है।

हर्षिता सिंह
शोधार्थी

अक्षयवट के संबंध में प्रचलित एक कथा के अनुसार भगवान शिव और पार्वती ने इसे अपने हाथों से लगाया था। प्रलयकाल में जब पृथ्वी जलमग्न हो जाती है, तो उस समय भी पृथ्वी पर यही एक वट वृक्ष अस्तित्व में रहता है, जिसके एक पत्ते पर स्वयं भगवान विष्णु बाल रूप में विद्यमान रह कर सृष्टि के रहस्य को देखते हैं। इसी वृक्ष को हमारे धर्म ग्रंथों में अक्षयवट कहा गया है। वृक्ष के पत्ते पर भगवान के विराजने की मान्यता के कारण लोग इसकी पत्तियों को ले जाकर पूजा घरों में रखते हैं।

पद्मपुराण में इसे आदिवट, अक्षयवट और श्यामवट कहते हुए कहा गया है कि जहां श्यामवट (अक्षयवट) अपनी श्यामल छाह से लोगों को दिव्य सत्व गुण प्रदान करता है, जहां माधव के दर्शन से भक्तों के पाप और ताप समाप्त हो जाते हैं, ऐसे तीर्थराज प्रयाग की जय हो। बौद्ध मत में कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने कैलाश पर्वत के निकट प्रयाग के अक्षयवट का एक बीज रोपा था, जबकि जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने अक्षयवट के नीचे तपस्या की थी। इसीलिए इसे ऋषभदेव तपोस्थली भी कहा जाता है।

अक्षयवट की प्राचीनता को के बारे में कहा जाता है कि त्रेतायुग में वनवास जाते समय भगवान राम ने पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ इसी अक्षयवट के नीचे विश्राम किया था। इस प्रकार इस पावन वृक्ष की प्राचीनता वर्ष, सदी नहीं, अपितु युगों पुरानी है। आधुनिक भारत की बात करें तो महाराजा हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आए चीनी या़त्री ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक में प्रयाग के धार्मिक मेले सहित जिन पावन तीर्थों का जिक्र किया है उसमें अक्षयवट का भी उल्लेख है।

ह्वेनसांग ने लिखा है कि नगर में एक देव मंदिर (पातालपुरी मंदिर) है, जो अपनी सजावट और दैवी चमत्कार के लिए विख्यात है। मंदिर के आंगन में एक विशाल वट वृक्ष (अक्षयवट) है, जिसकी अपनी पौराणिक मान्यता है। पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार उस समय जो लोग जीवन से मुक्ति और मोक्ष पाने की लालसा रखते थे, वे इस विशाल वृक्ष पर चढ़ कर नदी में छलांग लगा कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते थे।

हिंदुओं की आस्था से जुड़े इस वृक्ष को समाप्त करने के बहुत प्रयास किए गए। पहले पठान राजाओं ने इसे नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। मुगल काल में अकबर ने वृक्ष से जल समाधि लेने की परंपरा को बंद करा दिया और जब यमुना के तट पर किला बनवाया तो इस वृक्ष को किले के अंदर करके आम लोगों के दर्शन-पूजन पर रोक लगा दी। अकबर के बाद जहांगीर ने इस वृक्ष के प्रति हिंदुओं की अगाध आस्था को देखकर इसे नष्ट करने के लिए कटवा दिया, लेकिन चमत्कारिक रूप से वृक्ष पुन: हरा-भरा हो गया। कट्टर मुगल शासक औरंगजेब ने भी कई बार इसे कटवाया, जलवाया, जड़ों में तेजाब तक डलवाया, लेकिन इस वृक्ष का अस्तित्व बना रहा। ब्रिटिश शसनकाल में भी इसे हिंदुओं के लिए नहीं खोला गया।

स्वतंत्र भारत में भी धर्माचार्य और श्रद्धालु इसे हिंदू समाज के लिए खोलने की मांग करते रहे, लेकिन कांग्रेस सरकार ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। पूर्ववर्ती सरकारें यह कह कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती थीं कि अकबर के किले में जहां अक्षयवट स्थापित है, वहां सेना का आयुध भंडार है। इसलिए आम जनमानस के लिए इसे खोला जाना संभव नहीं है। यद्यपि बाद में इसे माघ मेला और कुंभ के अवसरों पर सीमित समय के लिए खोला जाता रहा। 1992 में अक्षयवट के पास संगमरमर पत्थर बिछाए गए और 1999 में अक्षयवट के नीचे एक छोटा-सा मंदिर बना कर उसमें श्रीराम, सीता और लक्षमण की मूर्ति स्थापित की गई।

भाजपा ने किया उद्धार

केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद जब 2019 का कुंभ समीप आया तो प्रमुख धर्माचार्यों और संस्थाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने यह मुद्दा उठाया जिस पर त्वरित कार्रवाई हुई और तत्कालीन रक्षा मंत्री के हस्तक्षेप पर अक्षयवट को सनातन समाज के लिए खोलने की सहमति बनी। प्रधानमंत्री द्वारा 18 दिसंबर, 2018 को अक्षयवट खोले जाने की घोषणा के बाद इसे 10 जनवरी, 2019 को आम जनता के लिए खोल दिया गया।

अब 2025 का महाकुंभ चल रहा है, तो एक बार फिर अक्षयवट की चर्चा आम श्रद्धालुओं में इसकी दिव्यता और भव्यता को लेकर हो रही है। अक्षयवट गलियारा 10 एकड़ क्षेत्र में है, सके निर्माण पर18 करोड़ रुपए की लागत आई है। राजस्थान के लाल पत्थरों और संगमरमर पत्थरों से बना अक्षयवट गलियारा आज श्रद्धालुओं का केंद्र बना हुआ है।

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