Delhi Assembly Election-2025: दिल्ली सरकार का शिक्षा मॉडल, इमेज बिल्डिंग और वास्तविकता
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Delhi Assembly Election-2025: दिल्ली सरकार का शिक्षा मॉडल, इमेज बिल्डिंग और वास्तविकता

इमेज बिल्डिंग के लिए सरकार के द्वारा विज्ञापनों, प्रचार अभियानों, होर्डिंग्स पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। लेकिन जमीनी आकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 75 फीसदी लड़कियां और 55 फीसदी लड़के शौचालयों की सुविधा से असंतुष्ट हैं।

by डॉ शुभ गुप्ता/ अभिव्यक्ति विवेक
Jan 28, 2025, 01:56 pm IST
in विश्लेषण, दिल्ली
Delhi Education model myth vs reality

आतिशी मार्लेना और अरविंद केजरीवाल

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Delhi Assembly Election-2025: दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल ने अपने सार्वजनिक विद्यालय सुधारों के नाम पर देश और दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। 2024-25 में दिल्ली सरकार ने अपने कुल बजट का 24.2 फीसदी यानि कि 16,396 करोड़ शिक्षा के लिए आवंटित करके खूब नाम भी बटोरा। शिक्षा के नाम पर इमेज बिल्डिंग के लिए शौचालयों और प्रयोगशालाओं तक को कक्षाओं के तौर पर प्रदर्शित किया। जो वास्तविक आकंड़े थे, उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। लेकिन, ग्राउंड डेटा ये है कि 75 फीसदी लड़कियां और 55 फीसदी लड़के शौचालयों की सुविधा से असंतुष्ट हैं। प्रयोगशालाओं में प्रयोग के उपकरण नहीं हैं। कम्प्यूटर साइंस विभाग में फंड की कमी है।

पहले तो शिक्षा बजट को बढ़ाकर दिखाया गया, लेकिन फिर 2022-23 के बीच शिक्षकों के वेतन में 36 प्रतिशत की कटौती कर दी गई, यानि कि इसे 4,283 करोड़ रुपए से घटाकर 2,751 करोड़ रुपए कर दिया गया। इसका असर ये हुआ कि शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होने लगी और स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों का भी मनोबल टूटने लगा। उदाहरण के तौर पर समझने की कोशिश की जाए तो 2017-21 के बीच दिल्ली में स्वच्छता पर कुल मिलाकर 44 प्रतिशत ज्यादा खर्च किया गया, लेकिन उसके बाद के सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो समझ आता है कि इसमें 16.3 फीसदी की गिरावट हो गई।

केजरीवाल के विकास और विजन दोनों ही हास्यास्पद: वीरेंद्र सचदेवा

दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने केजरीवाल के शिक्षा के मॉडल की पोल खोलते हुए कहा, “केजरीवाल का विकास, विजन और उनकी टीम का दावा पूरी तरह से हास्यास्पद है। पिछले 10 वर्षों में न तो दिल्ली में नए स्कूल खुले और न ही कोई नया कॉलेज शुरू हुआ। जो स्कूल पहले से चल रहे हैं, उनमें विज्ञान और कॉमर्स जैसे विषय पढ़ाने की व्यवस्था तक नहीं है। सरकारी कॉलेजों की हालत यह है कि शिक्षक वेतन संकट के कारण साल में 8 महीने हड़ताल पर रहते हैं।

दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के बड़े-बड़े दावे किए गए, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला। अब दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी को उनके झूठे वादों और नाकामियों का राजनीतिक सबक सिखाने का मन बना चुकी है। फरवरी 2025 के विधानसभा चुनाव में जनता अपना फैसला सुनाएगी।”

इमेज बिल्डिंग और वास्तविकता में बड़ा अंतर

दिल्ली सरकार ने अपनी सरकार के कामकाज को विश्व स्तर का दिखाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इमेज बिल्डिंग के लिए सरकार के द्वारा विज्ञापनों, प्रचार अभियानों, होर्डिंग्स पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। लेकिन, शिक्षा के मंदिर स्कूलों की कक्षाओं के क्षैतिज विस्तार पर जोर दिया गया, खेल के मैदानों का इस्तेमाल भवन निर्माण के लिए किया गया। खेल के मैदान सिकुड़ते चले गए। इसका असर ये हुआ कि भीड़भाड़ वाले वातावरण के कारण छात्रों के बीच झगड़े बढ़े हैं। वहीं अलग-अलग रिपोर्ट्स से ये स्पष्ट हुआ है कि केजरीवाल के कार्यकाल के दौरान सरकार ने शौचालयों तक को कक्षाओं के तौर पर दिखाकर वाहवाही लूटी।

जमीनी आकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 75 फीसदी लड़कियां और 55 फीसदी लड़के शौचालयों की सुविधा से असंतुष्ट हैं। इनकी शिकायत रहती है कि शौचालय अक्सर गंदे और अस्वच्छ रहते हैं। प्रयोगशालाओं के हाल भी बुरे हैं। सबसे बुरे हाल कम्प्यूटर शिक्षा के हैं। आकंड़ों की मानें तो दिल्ली सरकार ने कम्प्यूटर शिक्षा पर कोई जोर ही नहीं दिया। 2022-23 में 60 करोड़ रुपए इसके लिए आवंटित हुए थे, लेकिन इसके ठीक अगले साल ये बजट आवंटन साढ़े दस करोड़ पर आ गया। छात्रों को पुराने सिस्टम को एक-दूसरे के साथ साझा करना पड़ रहा है।

हां, एक चीज में ये सरकार अवश्य आगे रही और वो ये कि इन्होंने कई शैक्षिक योजनाओं के नाम बदले, जिससे मुश्किलें अवश्य बढ़ गई। जैसे Rajiv Gandhi State Sports Awards का नाम बदलकर “Rajiv Gandhi Sport Awards-Rewards” रख दिया। इसके बजट को की मदों में बांट दिया, इससे फंड के सही इस्तेमाल में गड़बड़ी दिखने लगी। राजकीय प्रतिभा विद्यालयों में होने वाली प्रवेश नीति को बदलकर Schools of Specialised Excellence नाम रख दिया और खेल ये खेला गया कि निजी स्कूलों के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित कर दी। इसका असर ये हुआ कि 2013-24 के बीच एससी समुदाय के छात्रों का नामांकन भी 16.4 फीसदी से घटकर 12.5 प्रतिशत पर सिमट गया। इसमें गिरावट लगातार जारी है।

साथ ही दिल्ली के स्कूलों में एससी समुदाय से आने वाली लड़कियों की संख्या 13 फीसदी है, लेकिन 2023 के आंकड़ों की मानें तो उनमें से केवल 4.54 फीसदी लड़कियों को ही माहवारी पैड दिए गए। सबसे प्रमुख बात ये कि 60 फीसदी छात्र तो ऐसे हैं कि उन्हें स्कूलों में एडमिशन लेने के कई महीने के बाद किताबें मिल पाती हैं। ये तो दिल्ली सरकार के कामकाज के तरीके हैं, लेकिन अब बात करते हैं दिल्ली सरकार की योजनाओं के बारे में-

दिल्ली सरकार की योजनाएं

दिल्ली सरकार ने कई सारी योजनाएं भी शुरू कर रखी हैं, लेकिन उन योजनाओं का लाभ दिल्ली के छात्रों को सही तरीके से नहीं मिल पा रहा है।

1. मिड डे मील योजना

यह योजना 15 अगस्त 1995 को शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और स्थानीय निकाय स्कूलों में कक्षा I से VIII तक के छात्रों को पोषण सहायता प्रदान करना है। लेकिन, भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन के कारण ये योजना सवालों के घेरे में रहती है।

2. उच्च शिक्षा और कौशल विकास गारंटी योजना

इस योजना को दिल्ली में शुरू किया गया था। इसके तहत स्किल डेवलपमेंट के लिए छात्रों को 10 लाख रुपए तक का लोन बिना किसी गारंटी के प्रदान किया जाना था। ये दिल्ली सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन, इसको लेकर जानकारी के अभाव के कारण कई छात्र इसका लाभ नहीं ले पाते हैं।

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