महाराष्ट्र में गुलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के प्रकोप ने स्वास्थ्य अधिकारियों और आम जनता में दहशत पैदा कर दी है। पुणे में इस दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार से जुड़ी पहली मौत की सूचना आई है, जिससे यह स्थिति और भी गंभीर हो गई है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, रविवार तक कुल 101 लोग इस बीमारी से प्रभावित हो चुके हैं, जिनमें से 16 मरीज वेंटिलेटर पर हैं। यह संख्या पिछले कुछ हफ्तों में अचानक बढ़ी है, जिससे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को भी आश्चर्यचकित कर दिया है।
बीमारी का कारण और लक्षण
गुलियन-बैरे सिंड्रोम एक अत्यंत दुर्लभ और गंभीर न्यूरोलॉजिकल विकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अचानक अपने ही तंत्रिका तंत्र पर हमला करने लगती है। इसके परिणामस्वरूप शरीर के विभिन्न हिस्सों में कमजोरी, सुन्नता, मांसपेशियों में दर्द और गंभीर मामलों में पक्षाघात की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। प्रारंभिक लक्षणों में पैरों में कमजोरी, झुनझुनी और संतुलन में गड़बड़ी शामिल हो सकती है, जो धीरे-धीरे शरीर के अन्य हिस्सों तक फैल सकती है। गंभीर अवस्था में, यह सांस लेने में कठिनाई और दिल की धड़कन के असामान्य होने जैसी समस्याओं का कारण बन सकती है, और इलाज के लिए वेंटिलेशन की आवश्यकता हो सकती है।
मामलों की जांच करने पर पता चला है कि इस बीमारी के फैलने का मुख्य कारण एक बैक्टीरिया “कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी” है, जो अक्सर पेट के संक्रमण के कारण होता है। इस बैक्टीरिया के संपर्क में आने से GBS का खतरा बढ़ सकता है। अधिकारियों ने यह भी पाया कि पुणे के कुछ क्षेत्रों के पानी में ई. कोली बैक्टीरिया का स्तर काफी बढ़ गया है, जो यह संकेत देता है कि पानी की गुणवत्ता में खामी हो सकती है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन क्षेत्रों में पानी का उपयोग किया जा रहा है या नहीं, लेकिन नागरिकों को पानी उबालने और भोजन को गर्म करके खाने की सलाह दी गई है।
पुणे के प्रमुख अस्पतालों में जीबीएस के मामलों की संख्या अचानक बढ़ गई है, जिससे अस्पतालों पर दबाव बढ़ गया है। 10 जनवरी को, 26 मरीज अस्पताल में भर्ती हुए थे, जबकि शुक्रवार तक यह संख्या बढ़कर 73 हो गई। इस स्थिति को देखते हुए, राज्य सरकार ने मुफ्त इलाज देने का फैसला किया है। पुणे के नागरिकों के लिए यह इलाज कमला नेहरू अस्पताल और ससून अस्पताल में उपलब्ध होगा, जबकि पिंपरी-चिंचवाड़ के लोगों के लिए वाईसीएम अस्पताल में मुफ्त इलाज की व्यवस्था की गई है। उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा कि इलाज महंगा है, लेकिन राज्य सरकार ने गरीब और निचले आय वर्ग के मरीजों के लिए इस बीमारी का इलाज मुफ्त में करने का निर्णय लिया है।
जीबीएस का इलाज
गुलियन-बैरे सिंड्रोम का इलाज महंगा है, क्योंकि मरीजों को इम्युनोग्लोबुलिन (आईवीआईजी) इंजेक्शन के एक कोर्स की आवश्यकता होती है, जिसमें प्रत्येक इंजेक्शन की कीमत लगभग 20,000 रुपये है। हालांकि, डॉक्टरों के अनुसार, अधिकांश मरीज उपचार के छह महीने के भीतर बिना किसी सहारे के चलने की क्षमता हासिल कर लेते हैं, लेकिन कुछ को पूर्ण रिकवरी में एक साल या उससे अधिक का समय लग सकता है।
स्वास्थ्य विभाग ने पूरी स्थिति की निगरानी बढ़ा दी है और पुणे में 25,578 घरों का सर्वेक्षण किया है, ताकि जीबीएस के और मामलों का पता लगाया जा सके। प्रशासन का कहना है कि इस बीमारी के प्रकोप का कारण जानने के लिए और लोगों को बचाने के लिए हर संभव कदम उठाए जा रहे हैं।
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