आज उमंग और उल्लास का दिवस है। केंद्र में है जनजातीय नृत्य महोत्सव, जिसका आयोजन जनजातीय कल्याण केंद्र, बरगांव में 19 जनवरी को किया गया। यह केंद्र 1995 से जनजातीय विकास और सांस्कृतिक संवर्धन के क्षेत्र में सक्रिय है। इस आयोजन की प्रेरणा राष्ट्रीय विचारक राजकुमार मटाले जी से प्राप्त हुई, और इसे केंद्र के अध्यक्ष मनोहर साहू जी के निर्देशन में डॉ. एच. एस. मरकाम, श्री नरेंद्र मरावी, वन साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. शिवव्रत मोहंती, और सचिव एस.के. वाजपेयी सहित कई सदस्यों ने योजनाबद्ध तरीके से संपन्न किया।
आज के बदलते युग मे जहॉं सिनेमाई संगीत गॉंव-गॉंव के युवाओं तक पहुच चुका है, जिससे स्वयं की संस्कृति पर खतरा मंडराने लगा है, वही दूसरी ओर गैर जनजातीय, समाज भी इन गीतों और नृत्यों में रची बसी, अपनत्व की महक, प्रकृति का संदेश भी भूल चुका है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए जनजातीय कल्याण केन्द्र के स्वयं सेवकों ने मध्यप्रदेश के डिण्डौरी, मण्डला, शहडोल, उमरिया एवं छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र का भ्रमण किया। जनजातीय कल्याण केन्द्र के सदस्यों ने गीत संगीत नृत्य के उस मूल स्वरूप् को खोजकर उन कला प्रेमी दलों को इस प्रतियोगिता के लिए आमंत्रित किया। इसके लिए ग्राम संपर्क, ग्राम प्रमुख की बैठक, पोस्टर, बैनर एवं सोशल मीडिया के विभिन्न साधनों का प्रयोग किया गया। इस एक माह के अथक परिश्रम ने न केवल विभिन्न दलों को इस प्रतियोगिता के लिए आमंत्रित किया।
आखिरकार राष्ट्रीय जनजातीय सांस्कृतिक मेले का दिवस आ गया, 19 जनवरी 2025 को हुए सांस्कृतिक मेले के लिए विभिन्न दल अपने गाजे – बाजे के साथ एक दिन पूर्व ही कल्याण केन्द्र आ चुके थे, इन हजारों लोगों के आने- जाने हेतु वाहन, रूकने की व्यवस्था एवं भोजन की व्यवस्था भी जनजातीय कल्याण केन्द्र के द्वारा की गई थी। 19 जनवरी 2025 को इस कार्यक्रम का प्रारंभ श्री श्री 108 नागा साधु भगतगिरि बच्चूजी महाराज, एवं श्री श्री 108 नर्मदानंद जी महाराज द्वारा तथा आदरणीय राजकुमार मटाले जी, केन्द्र के अध्यक्ष मनोहर साहू जी, विधायक ओम प्रकाश धुर्वे बैगा कलाकार पद्मश्री अर्जुन जी आदि की उपस्थिति में दीप प्रज्वलन एवं रानी दुर्गावती, बिरसामुण्डा एवं भारत माता के चित्रों पर माल्यार्पण किया गया, मंच संचालन का कार्य डॉ शिवव्रत मोहंती जी ने किया। आदरणीय बच्चूजी महाराज ने जनजातीय कल्याण केन्द्र के कार्यों की सराहना की और राष्ट्र सेवा को ही धर्म माना। आदरणीय राजकुमार मटाले जी ने अपने ओेजस्वी उद्बोधन में कहा, कि जनजातीय समाज ने पर्यावरण प्रकृति ओर सांस्कृतिक संरक्षण को अपनी जीवनशैली बना लिया है। सभी समाजों में जनजातीय समाज से इन परम्पराओं को ग्रहण करने की आवश्यकता है।
उद्घाटन सत्र में जनजातीय कल्याण केन्द्र के छात्रावास के बालकों ने पारम्परिक वेषभूषा में अतिथि गणों के समक्ष सैला नृत्य को प्रस्तुत किया, महाराष्ट्र से आध्यात्मिक गुरू डॉ. तीरथ जी ने जनजातीय परम्परा से इस प्रतियोगिता का उद्घोष किया।
जनजातीय नृत्य दलों का पंजीयन अश्विनी साहू के नेतृत्व सुआ नृत्य, सैला नृत्य, बैगा नृत्य, करमा नृत्य, रीना नृत्य, गैड़ी नृत्य आदि नृत्यों का पंजीयन हुआ, प्रतियोगिता में नृत्यों के प्रदर्शन के लिए पॉंच अलग-2 मंच बनाए गए, एवं हजारों दर्शको की मौजूदगी में इन नृत्य दलों ने अपने दल नायकों के साथ इन नृत्यों को प्रस्तुत किया, प्रत्येक मंच पर प्रतियोगिता का निर्णय लेने के लिए तीन विशेषज्ञ उपस्थित थे, जिसमें पूरनसिंग बरकड़े, जवाहरलाल विष्वकर्मा, इन्द्रपाल सिंग परस्ते, ज्ञानवती कुशराम , अजमेर सिंग टेकाम, राजकुमार मोंगरे, नीरज पट्टा, दीपा परस्ते, प्रियंका आर्मो आदि थे, इसमें मुख्य निर्णायक की भूमिका धनेश परस्ते द्वारा निभाई गई।
पॉंच मंचो पर 87 दलों ने जनजातीय नृत्य संगीत की प्रस्तुति दी, इनके नृत्य और गीतों में देव पूजा, पर्यावरण संरक्षण सामाजिक संस्कार,ऋतुचक्र, रोजमर्रा का जीवन एवं धरती मॉं की झलक मिलती है, नृत्य में नर्तको का सामंजस्य परम्परागत वाद्य यंत्रों का प्रयोग, नृत्य में पद संचालन की कुशलता एवं चपलता ने सब का मन मोह लिया।
जनजातियों ने इन नृत्यों में मादर, टिमकी , गुदुम्ब, ठिसकी, चुटकी, सिंगबाजा, अलगोझा, चरकुला, झांझमंजीरा आदि वाद्य यंत्रों का प्रदर्षन किया।
जनजाति के नृत्य गीतों में जैसे कर्मा में झूरा-झूरी पान मांगे, जाए कैसे सोसी पडे, वही रीना नृत्य में-री रीना ययो हिन रीना जबकि परधौनी नृत्य में-कौन बनावे हथिया रे धोरिया, कौन चढ़े असेवार। इन नृत्यों मेें खेती कर लो रे भैया, खेती में है सब सार, के द्वार कृषि को बढ़ावा देने, जीवन जीने के गीत जैसे- या जिंदगी रेहला दिन चारा गेदना गीत में- दादर ऊपर चानू पके, कौआ रेरी दे, मां पुत्री के स्नेह को दिखाने वाला आज मेरी दुलरी ससुराल चली, आदि को प्रस्तुत किया गया।
जनजातीय नृत्य पारम्परिक वेषभूषा में प्रस्तुत किए गए, जिसमें मोरपंख, कौडी, पत्थरों की बनी मालाए, विभिन्न जानवरों के मुखौटें, पैर में पैजना, गले में रंग बिरंगी सूता माला, बांह में नाग मौरी, सिर पर पगडी ओर स्त्रिययो के बाल से कमर के नीचे तक बीरन घास की लडिया धरण की हुई थी।
नृत्यों के प्रदर्शन के बाद 87 दलों ने बड़ादेव अर्थात महादेव के चारों ओर परिक्रमा कर सामूहिक नृत्य को प्रस्तुत किया, जिसकी अद्भुत छटा और ऊर्जा ने दर्कों को भी थिरकने पर मजबूर कर दिया, चाहे वह बच्चा हो, या वृद्ध, आम जन हो या प्रषासनिक अधिकारी, हर किसी पर इस नृत्य संगीत का जादू चढ़ चुका था, और सभी लोग समरसता के रंग में रंग चुके थे। ऐसा लग रहा था मानो बड़ादेव अर्थात महादेव स्वयं इस नृत्य में सामिल होकर सबको आशीर्वाद दे रहे हो।
अंत में प्रतियोगिता के निर्णय की घड़ी आई, जिसमें बजाग के गोपालसिंग को प्रथम स्थान, मिला, बरसौद के सैला नृत्य को द्वितीय स्थान और बालाघाट के बरकत सिंह के दल को तृतीय स्थान मिला, साथ ही दस दलों को सांत्वना पुरस्कार दिए गए। इस पुरस्कार वितरण समारोह में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी कैबिनेट मंत्री सम्पति उइके जी, एवं संस्कृति पर्यटन धार्मिक सिंह लोधी जी के मुख्य अतिथ्य में सम्पन्न हुआ, इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय विचारक राजकुमार मटाले जी, शहपुरा विधायक ओमप्रकाश धुर्वे जी, बांधवगढ़ विधायक शिवनारायण सिंह जी, शहडोल विधायक श्रीमती मनीषा सिंह एवं जिला पंचायत अध्यक्ष संदेश परस्ते, विग्रेडियर अवधेंद्र प्रताप सिंह , पद्म श्रीअर्जुन सिंह धुर्वे, कलेक्टर हर्ष सिंह , पुलिस अधीक्षक श्रीमती वाहिनी सिंह आदि उपस्थित रहे। सम्पतिया उइके जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जनजातीय कल्याण केन्द्र वरगांव का यहॉं होना, हमारे लिए सौभाग्य की बात है, इन नृत्य दलों ने हमारी संस्कृति, परम्परा, रीति रिवाज, प्रकृति की उपासना, फसल का रोपा लगाते गीत आदि की प्रस्तुति कर युवा पीढ़ी को इन्हें संजो कर रखने की सीख दी है। वही संस्कृति मंत्री धर्मेन्द्र सिंह लोधी जी ने प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी 87 दलों को 5001/-रू. की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की, एवं कहा कि संस्कृति मंत्रालय के माध्यम से बरगॉंव में प्रत्येक वर्ष दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
जनजातीय कल्याण केन्द्र बरगॉंव में आयोजित इस राष्ट्रीय लोक नृत्य को युवा पीढ़ी के समक्ष एक मिसाल प्रस्तुत की वही दूसरी ओर आम जन को भी जनजातियों से जोड़ा। यह आदिवासी नृत्य उत्सव केवल एक कार्यक्रम नहीं था यह इन समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाली जीवंत और विविध सांस्कृतिक ताने.बाने का उत्सव था। यह हमारी स्वदेशी परंपराओं को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के महत्व की याद दिलाता है, जो हमारी राष्ट्रीय पहचान का एक अभिन्न अंग हैं। त्योहार के दौरान हवा में जो खुशी और ऊर्जा भरी हुई थी वह संक्रामक थी जिसने सभी को हमारे आदिवासी समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए गहरी सराहना दी। यह आयोजन सांस्कृतिक एकता और कलात्मक उत्कृष्टता का प्रतीक बनकर याद रखा जाएगा।
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