प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ मेला आर्थिक क्रांति का सूत्रधार बन रहा है। सनातन धर्म में पर्व और मेले तो आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते ही हैं, अर्थव्यवस्था में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस बार विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक समागम महाकुंभ से उत्तर प्रदेश में दो लाख करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार और सरकार को 25,000 करोड़ रुपये प्राप्त होने का अनुमान है। साथ ही, देश की जीडीपी में यह 0.03 प्रतिशत का योगदान देगा। इसके अलावा, महाकुंभ मेला पर्यटन, आतिथ्य और ढांचागत विकास को बढ़ावा देने के साथ स्थानीय उद्योगों को भी सशक्त कर रहा है।
महाकुंभ 6 लाख से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान कर रहा है। महाकुंभ के आयोजन पर सरकार ने लगभग 7,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इनमें लगभग 4,500 करोड़ रुपये मेला क्षेत्र में ढांचागत, परिवहन, सेवा क्षेत्रों के विकास और तकनीक पर खर्च किए गए हैं। इसके अलावा, डाबर, मदर डेयरी और आईटीसी जैसे प्रमुख ब्रांडों द्वारा 3,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाने का अनुमान है।
यह महोत्सव भारत की परंपराओं, आध्यात्मिक आस्थाओं और आतिथ्य को दुनिया भर में प्रदर्शित करता है, जिससे पर्यटन उद्योग को भारी बढ़ावा मिलता है और हजारों करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न होता है। अपनी विशालता और भव्यता के लिए विख्यात कुंभ मेला अब भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुका है। यह आयोजन एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है कि कैसे पारंपरिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मान्यताएं आधुनिक आर्थिक ढांचे से जुड़ी हो सकती हैं। कुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक धरोहर और आर्थिक विकास का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है, जो धार्मिक आस्था का उत्सव होने के साथ-साथ पर्यटन, व्यापार और रोजगार सृजन के माध्यम से स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
आर्थिक गतिविधियों का साक्षी
इस बार महाकुंभ विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक आर्थिक गतिविधियों का साक्षी बन रहा है। देश-विदेश के श्रद्धालु और पर्यटक ट्रेन, बस और हवाई जहाज से यात्रा करेंगे और होटल, गेस्ट हाउस सहित विभिन्न बुनियादी सुविधाओं का उपयोग करेंगे, भोजन, दवाइयों के अलावा अन्य आवश्यक चीजें खरीदेंगे। संगम नगरी में दो नवनिर्मित पांच सितारा होटलों सहित प्रयागराज और उसके आसपास के क्षेत्रों में करीब 150 होटल हैं। इससे 40,000 करोड़ रुपये से अधिक, भोजन और पेय पदार्थों से लगभग 20,000 करोड़ रुपये तथा धार्मिक वस्तुओं जैसे-दीये, मूर्तियों, धूप, धार्मिक पुस्तकों और प्रसाद की बिक्री से भी 20,000 करोड़ रुपये का कारोबार होने का अनुमान है। माल ढुलाई, टैक्सी सेवाएं और स्थानीय परिवहन भी लगभग 10,000 करोड़ रुपये जोड़ेंगे, जबकि ट्रेवल पैकेज और पर्यटक सेवाओं से 10,000 करोड़ रुपये का कारोबार होने की उम्मीद है। साथ ही, हस्त शिल्प 5,000 करोड़ रुपये, स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में लगभग 3,000 करोड़, आईटी व डिजिटल सेवाओं जैसे-ई-टिकटिंग, डिजिटल भुगतान और वाईफाई सुविधाओं से 1,000 करोड़ रुपये, मनोरंजन और मीडिया के क्षेत्र में विज्ञापन, प्रचार 10,000 करोड़ रुपये का योगदान करेंगे। इसके अतिरिक्त अन्य वस्तुओं जैसे-किराना सामान 4,000 करोड़, खाद्य तेल 1,000 करोड़, सब्जियां 2,000 करोड़, डेयरी उत्पाद 4,000 करोड़ रुपये का योगदान देंगे। अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ के अनुसार, इस बार दैनिक जरूरतों की वस्तुओं का कारोबार 17,310 करोड़ या उससे अधिक होगा।
प्रयागराज नाविक संघ में ही लगभग 6,000 नाविक पंजीकृत हैं। उनकी मांग को देखते हुए सरकार ने प्रति व्यक्ति नौका विहार शुल्क 60 रुपये से बढ़ाकर 90 रुपये कर दिया है। मेले में हर नाविक प्रतिदिन कम से कम 800 से 1000 रुपये की कमाई कर रहा है। सभी नाविकों को प्रतिदिन कुल लगभग 50 लाख रुपये की कमाई हो रही है, जो पूरे मेले के दौरान 22 करोड़ रुपये होती है। इस साल मेले में टेंट सिटी में छोटे-बड़े 1.5 लाख टेंट लगाए गए हैं। इनके लिए प्रतिदिन की दरें 7,000 रुपये से लेकर 1.10 लाख रुपये तक हैं। इनमें 2,200 लग्जरी टेंट हैं, जिनका एक रात का किराया 18,000 से 20,000 रुपये है। वहीं, प्रीमियम टेंट का किराया 1 लाख रुपये और इससे अधिक है। राज्य सरकार को इससे भी बड़ी आमदनी हो रही है। फूड कोर्ट और स्टॉल्स में भी भारी निवेश हुआ है। मेले में कई अन्य बड़े ब्रांड जैसे स्टारबक्स, कोका कोला और डोमिनोज के आउटलेट्स हैं। इनसे कारोबारियों ने 100 से 200 करोड़ रुपये का कारोबार करने का लक्ष्य रखा है। मेले में 7,000 से अधिक विक्रेता हैं, जिनमें से 2,000 ने डिजिटल भुगतान के लिए प्रशिक्षण लिया है। इससे मेले में व्यापार और अधिक आधुनिक हो गया है। साथ ही, पर्यटन विभाग ने 1,000 टूरिस्ट गाइड की टीम बनाई है।
इस बार महाकुंभ क्षेत्र का भ्रमण कराने के लिए हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है। केवल हेलीकॉप्टर सेवा से ही प्रतिदिन औसतन 3.5 करोड़ रुपये की आय होने का अनुमान है। इस हिसाब से 45 दिन में 7,000 तीर्थयात्री हेलीकॉप्टर से मेले का आनंद उठाएंगे, जिससे 157 करोड़ रुपये से अधिक की आय होने का अनुमान है। इस प्रकार, महाकुंभ मेला न केवल तीर्थयात्रियों के लिए सहज हुआ है, बल्कि व्यापारियों और छोटे व्यवसायों को भी बड़ा अवसर उपलब्ध करा रहा है।
दूसरे राज्यों को भी लाभ
कुंभ मेले पहले से ही स्थानीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक भूमिका निभाते रहे हैं। मेले में आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक स्थानीय व्यापारियों और उद्यमियों से सामान खरीदते हैं और विभिन्न सेवाएं लेते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था सशक्त होती है। साथ ही, आतिथ्य, परिवहन, खाद्य और खुदरा क्षेत्रों को भी बढ़ावा मिलता है। महाकुंभ जैसे आयोजन विशेषकर स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों को अपनी पारंपरिक कला और शिल्प का प्रदर्शन करने के लिए उत्कृष्ट मंच प्रदान करते हैं। मेले से न केवल विभिन्न क्षेत्रों के छोटे-बड़े सभी कारोबारियों को अच्छी खासी कमाई होती है, बल्कि यह हजारों लोगों के लिए रोजगार भी सृजित करता है।
इस बार केवल असंगठित क्षेत्र में ही लगभग 55,000 नई नौकरियों का सृजन हुआ है, जिनमें पर्यटक गाइड, टैक्सी चालक, दुभाषिए और स्वयंसेवक जैसे कार्य शामिल हैं। वहीं, आतिथ्य क्षेत्र में 2,50,000, विमानन सेवाओं में 1,50,000 और पर्यटन क्षेत्र में 45,000 रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं। ईको-टूरिज्म और मेडिकल टूरिज्म कुंभ में 85,000 नई नौकरियां सृजित हो रही हैं। इसके अलावा, रिक्शा, नौका विहार जैसे असंगठित क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों को भी प्रोत्साहित कर रहा है, जिससे स्थानीय लोग लाभान्वित हो रहे हैं। यही नहीं, महाकुंभ के कारण काशी और अयोध्या को भी आर्थिक लाभ होने का अनुमान है, क्योंकि प्रयाग में आने वाले हजारों श्रद्धालु काशीविश्वनाथ गलियारा और श्रीराम मंदिर में रामलला के दर्शन के लिए भी जाएंगे।
इस प्रकार, महाकुंभ मेले से राज्य सरकार को कर, परमिट और अन्य शुल्कों के रूप में पर्याप्त राजस्व मिलेगा। अस्थायी दुकानें और परिवहन सेवाएं भी शुल्क चुकाती हैं, जो सरकार के खजाने में योगदान करती हैं। इस प्रकार न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे आसपास के राज्य भी इससे लाभान्वित हो रहे है। महाकुंभ में बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय और विदेशी पर्यटकों के आने से इन राज्यों में भी पर्यटन से संबंधित गतिविधियां बढ़ेंगी और राजस्व में वृद्धि होगी, जिससे पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलेगा। मेले में आने वाले विदेशी पर्यटक विदेशी मुद्रा लाते हैं, जिससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि होती है। इस प्रकार, महाकुंभ मेला देश के लिए अरबों रुपये का राजस्व उत्पन्न करेगा।
ऐतिहासिक विकास
आज से 143 वर्ष पहले महाकुंभ का बजट 20,288 रुपये था, जो आज की मुद्रा स्फीति दर के हिसाब से लगभग 3.65 करोड़ रुपये होता है। उस समय के विवरणों के अनुसार, 8 लाख श्रद्धालु संगम में स्नान करने आए थे, जबकि तब देश की कुल जनसंख्या 22.5 करोड़ थी। उस समय सजावट और आयोजन की दृष्टि से कुंभ बहुत सादा था। इसके बाद 1894 तक देश की जनसंख्या बढ़कर 23 करोड़ हो गई और कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़कर 10 लाख हो गई थी। उस वर्ष आयोजन पर 69,427 रुपये खर्च किए गए थे, जो आज की मुद्रास्फीति दर से वर्तमान मूल्य लगभग 10.5 करोड़ रुपये होते हैं। 1906 के कुंभ में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़कर 25 लाख हो गई थी और मेले के आयोजन पर 90,000 रुपये व्यय किए गए थे। कुंभ मेले से ब्रिटिश सरकार को 10,000 रुपये की आय हुई थी।
1918 में कुंभ में 30 लाख श्रद्धालु पहुंचे और आयोजन का बजट 1.37 लाख रुपये पहुंच गया। यह व्यय आज की दर से करीब 16.44 करोड़ रुपये होता है। 2013 में प्रयाग में आयोजित कुंभ मेले से सरकार को 12,000 करोड़ रुपये की राजस्व प्राप्ति हुई थी। 2019 के कुंभ को भी उस समय तक का सबसे बड़ा और व्यवस्थित कुंभ कहा गया था, जिसमें देश-विदेश से 24 करोड़ श्रद्धालु आए थे। इनमें 10 लाख विदेशी थे। उस समय मेले का बजट 4,200 करोड़ रुपये रखा गया था। अर्धकुंभ मेले ने राज्य की अर्थव्यवस्था में 1.2 लाख करोड़ रुपये का योगदान दिया था। इस बार प्रयागराज महाकुंभ-2025 के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने 5,435 करोड़ रुपये का बजट तय किया है। कुल मिलाकर आयोजन का अनुमानित खर्च लगभग 7,500 करोड़ रुपये तक हो सकता है, जिसमें केंद्र सरकार का 2,100 करोड़ रुपये का योगदान भी शामिल है। इस तरह से 143 वर्ष बाद इस महाकुंभ मेले के आयोजन की लागत बढ़कर 37 लाख गुना हो गई है। इस प्रकार, बीते 200 वर्ष में कुंभ मेले का स्वरूप तो बदला ही है, इससे होने वाली कमाई भी कई गुना बढ़ गई है।
सांस्कृतिक और पर्यावरण संरक्षण
महाकुंभ से प्रत्यक्ष और परोक्ष व्यावसायिक गतिविधियों में वृद्धि देखी जा रही है। पूरे भारत और विशेष रूप से, उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में उछाल देखा जा रहा है। कुंभ या महाकुंभ मेला पर्यावरण संरक्षण के लिए कई स्थायी उपायों को बढ़ावा देता है, जैसे कचरा प्रबंधन, स्वच्छ ऊर्जा समाधानों का उपयोग और जैव-अपघटनीय उत्पादों का प्रचलन। ये प्रयास वैश्विक पर्यावरण संरक्षण लक्ष्यों के साथ मेल खाते हैं। साथ ही, भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को संरक्षित करते हैं। इस बार महाकुंभ में पर्यावरण का विशेष ध्यान रखते हुए राज्य सरकार ने बिजली से चलने वाले ई-रिक्शा भी लांच किए हैं, जिनकी बुकिंग एप से होती है। इससे किराए में भी पारदर्शिता सुनिश्चित हो रही है।
यह आयोजन न केवल आस्था और संस्कृति का केंद्र है, बलिक इसकी तुलना विश्व के अन्य प्रमुख आयोजनों, जैसे फीफा विश्व कप या ओलंपिक से भी की जा सकती है, जो कुंभ मेले की तुलना में आकार और व्याप में काफी पीछे रह जाते हैं। इस अद्वितीय आयोजन की वैश्विक पहचान भारत की सांस्कृतिक धरोहर और संगठन क्षमता का एक अप्रतिम उदाहरण है। यह भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक तो है ही, आधुनिक आर्थिक और सामाजिक संरचना को भी सशक्त करता है।
कुल मिलाकर महाकुंभ मेले का सफल प्रबंधन 1 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ‘ब्रांड यूपी’ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विभिन्न क्षेत्रों में हजारों करोड़ रुपये के कारोबार और राजस्व प्राप्ति को देखते हुए महाकुंभ-2025 न केवल धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी एक ऐतिहासिक आयोजन के रूप में उभर रहा है। इससे न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत की आर्थिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव आएगा।
टिप्पणियाँ