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साकार होते संकल्प

प्रयागराज का महाकुंभ अनेक आंदोलनों और निर्णयों का साक्षी रहा है। यहां आयोजित धर्म संसद और हिंदू सम्मेलनों से राम मंदिर आंदोलन को गति मिली। कुंभ मेलों ने हिंदू समाज को यह भी संदेश दिया है कि हिंदू एकता ही भारत को भारत बनाए रख सकती है। 2025 का महाकुंभ विश्व को स्पष्ट संदेश दे रहा है कि आने वाला समय सनातन का है

by हरि मंगल
Jan 25, 2025, 06:03 pm IST
in विश्लेषण, उत्तर प्रदेश, धर्म-संस्कृति
महाकुंभ का एक विहंगम दृश्य

महाकुंभ का एक विहंगम दृश्य

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यदि आपको सनातन से साक्षात्कार करना हो, सनातन को जानना हो, सनातन की विशेषताओं पर शोध करना हो, तो सबसे उपयुक्त स्थल है प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ मेला। इस मेले की चर्चा भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में हो रही है। वास्तव में प्रयागराज महाकुंभ ने इस देश की सनातन शक्ति को जगाने का कार्य किया है। यह कार्य आज से नहीं हो रहा, बल्कि वर्षों से यहां सनातन समाज को झकझोरने वाले आंदोलनों की नींव रखी जा रही है और सबसे बड़ी बात यह है कि उस नींव पर बड़े-बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महल भी खड़े हो रहे हैं।

हरि मंगल
वरिष्ठ पत्रकार

अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी कहते हैं, ‘‘प्रयागराज का महाकुंभ धर्म से जुड़े सामाजिक सरोकार के आयोजन का केंद्र बन गया है। पहले मुगलों और बाद में अंग्रेजों ने ऐसा वातावरण बना दिया था कि सनातन की गतिविधियां सीमित हो गई थीं। देखा जाए तो हिंदुओं के पास कहीं कोई ऐसा मंच या स्थान नहीं था, जहां वे अपने धर्म, संस्कृति और समाज के बारे में बैठ कर चिंतन, मनन कर सकें। स्वतंत्रता के पश्चात् माहौल बदला और संत-महात्माओं के साथ ही अन्य धार्मिक और सांस्कृतिक संगठनों ने महाकुंभ को जनजागरण का जरिया बनाना शुरू किया। इसी जागरण का परिणाम है अयोध्या में बन रहा भव्य और दिव्य राम मंदिर।’’
वास्तव में राम मंदिर आंदोलन को धार देने का कार्य प्रयागराज कुंभ में आयोजित हुए उन सम्मेलनों और बैठकों ने किया, जिनका आयोजन विश्व हिंदू परिषद और अन्य संतों ने किया।

1966 के कुंभ में आयोजित प्रथम हिंदू सम्मेलन के मंच पर विराजमान संत और अन्य महानुभाव

प्रथम विश्व हिंदू सम्मेलन

भारत की स्वतंत्रता के बाद 1966 में प्रयागराज में दूसरा महाकुंभ लगा। इस अवसर पर विश्व हिंदू परिषद् ने 22-24 जनवरी तक विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें चारों पीठ के शंकराचार्यों के अतिरिक्त सभी संप्रदाय और पंथों के धर्माचार्य, संत तुडके जी महराज, मैसूर आश्रम के ब्रह्मचारी दत्तमूर्ति जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी उपस्थित थे। इसमें अफ्रीका, श्रीलंका, मॉरिशस, फीजी, त्रिनिनाद, अमेरिका, ब्रिटेन, थाईलैंड आदि देशों से भी बड़ी संख्या में हिंदू आए थे। नेपाल के महाराजाधिराज महेंद्रवीर विक्रमशाह देव के प्रतिनिधि के रूप में त्रिभुवन विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति रुद्रराज पांडेय तथा प्रधानमंत्री तुलसी गिरि शामिल हुए थे। इस सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के भाई और अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति राम प्रसाद मुखर्जी ने की थी।

द्वितीय विश्व हिंदू सम्मेलन

1979 में 25-27 जनवरी तक विश्व हिंदू परिषद ने प्रयागराज कुंभ में द्वितीय विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें भारत सहित 18 देशों से लगभग 1,00,000 हिंदुओं ने भाग लिया था। इसका उद्घाटन पूज्य दलाई लामा ने किया था। सबसे अच्छी बात यह रही कि दलाई लामा का स्वागत जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शांतानंद जी ने किया था। इस अनूठी घटना को बौद्ध मत और सनातन धर्म की एकता का प्रतीक माना जाता है। अपने स्वागत से अभिभूत परम पावन दलाई लामा ने कहा था, ‘‘हिंदू सम्मेलन में उनका उपस्थित होना असंगत-सा प्रतीत होता है, लेकिन उदार दृष्टि से देखा जाए तो यह असंगत नहीं है, क्योंकि इस सम्मेलन में हिंदू तथा भारत में जन्मे सभी मत-पंथों के अनुयायी सम्मिलित हुए हैं।’’ सम्मेलन में धर्माचार्यों की सहमति से 13 प्रस्ताव पारित हुए थे। इसमें उन स्थानों पर हिंदुओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाने की मांग की गई थी, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं। इसके साथ ही मठ-मंदिरों की सुरक्षा, देश-विदेश के हिंदुओं के हितों के संरक्षण, गोवंशों की रक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई थी।

तृतीय विश्व हिंदू सम्मेलन

2007 में प्रयागराज में अर्धकुंभ का आयोजन हुआ। इस अवसर पर 11-13 फरवरी तक तृतीय विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन हुआ। शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद जी की अध्यक्षता में आयोजित इस सम्मेलन का उद्घाटन शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद जी ने किया था। इसके लिए संगम तट पर 350 एकड़ में गुरु गोलवलकर नगर बसाया गया था। सम्मेलन में विदेशों से भी बड़ी संख्या में प्रतिनिधि आए थे। बांग्लादेश और भूटान से आए प्रतिनिधियों ने अपने यहां हो रही हिंदुओं की दुर्दशा पर पूरे विश्व का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया। सम्मेलन को राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री कुप्. सी. सुदर्शन और विश्व हिंदू परिषद् के तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिहल ने भी संबोधित किया था। प्रयागराज कुंभ में विश्व हिंदू सम्मेलनों के अलावा समय-समय पर धर्म संसदों का भी आयोजन हुआ है। इन धर्म संसदों के माध्यम से राम मंदिर आंदोलन को गति मिली।

प्रयागराज कुंभ में 1 फरवरी, 1989 को तृतीय धर्म संसद आयोजित हुई। इस संसद में उपस्थित धर्माचार्यों, संतों और अन्य विद्वानों ने एक मत से कहा कि 9 और 10 नवंबर, 1989 को श्रीराम जन्म भूमि मंदिर का शिलान्यास किया जाए। इसी धर्म संसद में प्रत्येक ग्राम से एक रामशिला पूजन और प्रत्येक हिंदू से सवा रुपया भेंट स्वरूप लेने की रूपरेखा तय की गई। श्रीराम मंदिर निर्माण की दिशा में यह धर्म संसद मील का पत्थर साबित हुई। इस धर्म संसद की अध्यक्षता कांची कामकोटि पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने की थी। परमपूज्य देवराहा बाबा का आशीर्वचन भी मिला था। यह एक महत्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि देवराहा बाबा किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में भागीदारी नहीं करते थे, लेकिन वे इस संसद में आए थे। इस संसद में राम मंदिर सहित कुल 9 प्रस्ताव पारित किए गए थे। उनमें से दो की चर्चा करना आवश्यक लग रहा है। एक प्रस्ताव में ‘इलाहाबाद’ का नाम बदल कर ‘प्रयागराज’ करने और दूसरे में संगम के पास अकबर के किले में स्थित ‘अक्षयवट’ को आम श्रद्धालुओं के लिए खोलने की मांग की गई थी। ये दोनों संकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण कुछ वर्ष पहले पूरे हुए हैं।

हट गई मुलायम सरकार

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 2 नवंबर, 1990 को अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलवाई थीं। इसके लगभग दो महीने बाद ही 1991 में प्रयागराज के माघ मेले में संतों का सम्मेलन हुआ। इसमें संतों ने कारसेवकों पर गोलियां चलवाने की घटना को क्रूरतम माना और कहा कि सरकार झुके या हटे। संतों की नाराजगी ऐसी फलीभूत हुई कि कुछ माह बाद हुए चुनाव में मुलायम सिंह को सत्ता से बाहर होना पड़ा और प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार का गठन हुआ। इसी मेले में मकर संक्रांति के दिन संतों द्वारा संगम में 22 हुतात्मा कारसेवकों की अस्थियों का विसर्जन किया गया

निकला मंदिर का मुहूर्त

महाकुंभ के साथ ही प्रयागराज में लगने वाले माघ मेले भी हिंदू जागरण के केंद्र रहे हैं। माघ मेले में 27-28 जनवरी, 1990 को पहली बार संत सम्मेलन आयोजित हुआ था। इसमें संतों ने श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए 14 फरवरी, 1990 का शुभ मुहूर्त निकाल कर निर्माण कार्य प्रारंभ करने का आदेश दिया था

नौवीं धर्म संसद

19-21 जनवरी, 2001 को प्रयागराज कुंभ में नौवीं धर्म संसद आयोजित हुई। इसमें अपार जन समूह के साथ करीब 6,000 धर्माचार्यों की उपस्थिति रही। इसमें अयोध्या में राम मंदिर बनाने के साथ ही सात प्रस्ताव पारित हुए थे। राम मंदिर वाले प्रस्ताव में कहा गया था कि सरकार 12 मार्च महाशिवरात्रि तक मंदिर निर्माण की समस्त बाधाओं को दूर करे, ताकि उसके बाद किसी शुभ मुहूर्त में निर्माण कार्य प्रारंभ हो सके।

11वीं धर्म संसद

प्रयागराज के माघ मेले में 2006 में 1-2 फरवरी तक 11वीं धर्म संसद आयोजित हुई। इसमें सरकार से आग्रह किया गया कि वह 2007 के अर्धकुंभ से पहले श्रीराम जन्मभूमि परिसर राम जन्मभूमि सेवा न्यास को सौंप दे, ताकि मंदिर निर्माण का कार्य हो सके। इसमें गंगा रक्षा और मठ-मंदिरों की सुरक्षा और स्वायत्तता का मुद्दा भी उठा था।

12वीं धर्म संसद

अर्ध कुंभ 2007 में 16-17 जनवरी तक 12वीं धर्म संसद आयोजित हुई। इसमें संतों ने सरकार को चेताया कि वह मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाए। संतों ने उसी समय स्पष्ट कर दिया था कि वे अयोध्या की शास्त्रीय सीमा में किसी भी मस्जिद का निर्माण नहीं होने देंगे।

मोदी को मिला समर्थन

2013 में आयोजित प्रयागराज महाकुंभ में विश्व हिंदू परिषद् के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक और धर्म संसद हुई। इसमें श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के अलावा एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार-विमर्श और गहन मंथन हुआ। वह था 2014 के आम चुनाव में हिंदू हितों की सरकार का गठन और उसका नेतृत्व। बैठक में सनातनधर्मियों के अनुकूल सरकार लाने और उसका नेतृत्व गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपे जाने पर संत समाज में सहमति बनी थी। संगम तट पर हुआ यह निर्णय मात्र 15 माह की अवधि में साकार हो गया और मई, 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने।

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