मिल्कीपुर विधानसभा का उपचुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ देता दिख रहा है। यह उपचुनाव समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की राजनीति की ताबूत में आखिरी कील साबित होता दिख रहा है। मिल्कीपुर विधानसभा की सीट अयोध्या जिले में फैजाबाद लोकसभा सीट के अंतर्गत अवस्थित है। इस सीट पर उपचुनाव में अखिलेश यादव घिरते दिख रहे हैं। अखिलेश यादव की समस्या सिर्फ अपने धुर विरोधी भाजपा से ही नहीं बल्कि अपने सहयोगी कांग्रेस पार्टी और चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) से भी मिल रही है। इन दोनों दलों की चुनौतियों से निपटना अखिलेश के लिए बड़ी समस्या है।
हम शुरुआत कांग्रेस पार्टी से करते हैं। लोकसभा के चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव आहूत हुए। उपचुनाव के पिछले दौर में नौ सीटों पर उपचुनाव हुए थे। इन नौ सीटों के उपचुनाव में सपा ने कांग्रेस पार्टी को एक भी सीट देना मुनासिब नहीं समझा। कांग्रेस पार्टी का इन उपचुनावों के साथ होने वाले झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में सारा ध्यान लगा था। कांग्रेस पार्टी को इस बात का भी आभास था कि अगर उनकी पार्टी इस उपचुनाव में अपना भाग्य आजमाती है तो उसके पाले कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला है और कांग्रेस पार्टी कोई भी सीट नहीं जीत सकेगी। अतएव कांग्रेस पार्टी ने इस उपचुनाव के दौर से अपने को दूर रखने में ही अपनी भलाई समझी।
मगर अब सपा का कांग्रेस पार्टी के प्रति अपना असल रंगत आना शुरू हो गया है और दिल्ली विधानसभा चुनाव में सपा ने बिना मांगे आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन जारी किया और कांग्रेस पार्टी से अब सदैव के लिए दूरी बनाने जैसा व्यवहार करती दिख रही है। सपा के इस सौतेले व्यवहार से कांग्रेस पार्टी के समर्थक पूरे राज्य में सपा से काफी विचलित व दुखी हैं। कांग्रेस पार्टी के समर्थक सपा के विरोध में वोट करने का मन बनाते दिख रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस पार्टी को पिछले दो विधानसभा चुनाव में उसके अपने उम्मीद से ज्यादा मत मिले थे। मिल्कीपुर सीट पर 2012 में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार भोलानाथ भारती को 16,651 मत मिले थे जबकि 2022 में कांग्रेस उम्मीदवार बृजेश कुमार को 3,166 मत मिला था। 2017 में इस सीट पर कांग्रेस और सपा में गठबंधन के तहत इस सीट से सपा ने चुनाव लड़ा था। अखिलेश यादव को इस सीट से कांग्रेस पार्टी के समर्थकों और कार्यकर्ताओं द्वारा समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के उलट मतदान से निपटने के लिए अपनी रणनीति को तैयार रखना चाहिए।
दूसरी बड़ी चुनौती अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के लिए नगिना के सांसद चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) से निपटने की है। 2022 के विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर आज़ाद ने सपा और जयंत चौधरी के रालोद के साथ गठबंधन करने का प्रयास किया था मगर यह सफल नहीं हो सका था। लेकिन फिर भी चंद्रशेखर आज़ाद का सपा-रालोद गठबंधन के प्रति नम्र रुख रहा था। चंद्रशेखर आज़ाद को उम्मीद थी कि आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में अखिलेश यादव उनके नगिना लोकसभा सीट से उम्मीदवारी को समर्थन करेंगे। मगर अखिलेश यादव ने उनके उम्मीदवारी का समर्थन करने के बजाय नगिना सीट से कांग्रेस पार्टी से गठबंधन के तहत मनोज कुमार को उम्मीदवार बना दिया। लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर आज़ाद ने अखिलेश यादव को दोहरा तमाचा जड़ा था। चंद्रशेखर आज़ाद ने ना सिर्फ अपना चुनाव जीता बल्कि सपा उम्मीदवार की जमानत तक जब्त करवा दी थी।
अब चंद्रशेखर आज़ाद लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव की वादाखिलाफी का बदला लेने के लिए संतोष कुमार को अपने खुद के दल से चुनाव मैदान में उतार रहे हैं। चंद्रशेखर आज़ाद के उम्मीदवार को बंगाली तांत्रिक के नाम से भी जाना जाता है और यह उम्मीदवार अखिलेश यादव की पार्टी के इस सीट से पूर्व विधायक व वर्तमान सांसद अवधेश प्रसाद का करीबी माना जाता है। ऐसा समझा जा रहा है कि चंद्रशेखर ने इस उम्मीदवार को सपा के वोट बैंक में सेंधमारी करने के लिए दिया है। चंद्रशेखर इस उपचुनाव में सपा को पराजित करने के लक्ष्य के साथ ही अपनी पार्टी को अगले 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए भी तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं।
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