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Indus Water Treaty: जिन्ना के देश की किरकिरी; किशनगंगा, रतले परियोजनाओं पर विश्व बैंक के विशेषज्ञ भारत के पक्ष में

यह फैसला भारत के इस मत को सही ठहराता है कि किशनगंगा तथा रतले जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर सभी सात बिन्दु संधि के अंतर्गत उसकी क्षमता के अधीन ही आते हैं

Published by
Alok Goswami

विश्व बैंक द्वारा नियुक्त निष्पक्ष विशेषज्ञ ने पाया कि किशनगंगा तथा रतले जलविद्युत परियोजनाओं से पाकिस्तान को जल की मात्रा में कोई कमी नहीं आने वाली है। अत: भारत की इन परियोजनाओं से पाकिस्तान को कोई नुकसान नहीं होने वाला है। विशेषज्ञ का यह निर्णय सिंधु जल संधि के तहत उठे जल बंटवारे के इस विवाद को यहीं समाप्त कर देता।


सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी है। भारत के अनुरोध पर विश्व बैंक द्वारा भेजे गए निष्पक्ष विशेषज्ञ ने भारत का पक्ष लेते हुए पाकिस्तान की आपत्तियों को निरस्त कर दिया है।

पाकिस्तान सिंधु जल संधि पर बेवजह का विवाद खड़ा करता आ रहा है। उसने ताजा विवाद जम्मू—कश्मीर में भारत की दो जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर उठाया था। इस मुद्दे पर भारत ने किसी निष्पक्ष विशेषज्ञ से जांच कराकर फैसला कराने का सुझाव दिया था। उसी सुझाव के बाद विश्व बैंक ने अपना विशेषज्ञ भेजा, जिसने पूरी पड़ताल के बाद पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज कर दिया है। विशेषज्ञ ने भारत की कार्रवाई में किसी तरह की विवादित चीज नहीं पाईं

इस तरह पाकिस्तान की शरारत धरी की धरी रह गई है। इस मामले में भी पाकिस्तान चाहता था कि कोर्ट इसका फैसला करे, लेकिन अंतत: भारत द्वारा विवाद सुलझाने के लिए निष्पक्ष विशेषज्ञ को बुलाने की बात सही मानी गई। इसके बाद ही उक्त कार्रवाई हुई और भारत का पक्ष सही ठहराया गया।

विश्व बैंक द्वारा नियुक्त निष्पक्ष विशेषज्ञ ने पाया कि किशनगंगा तथा रतले जलविद्युत परियोजनाओं से पाकिस्तान को जल की मात्रा में कोई कमी नहीं आने वाली है। अत: भारत की इन परियोजनाओं से पाकिस्तान को कोई नुकसान नहीं होने वाला है। विशेषज्ञ का यह निर्णय सिंधु जल संधि के तहत उठे जल बंटवारे के इस विवाद को यहीं समाप्त कर देता।

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भारत द्वारा विवाद का हल निष्पक्ष विशेषज्ञ द्वारा कराए जाने के सुझाव के बाद पाकिस्तान ने इस पर यह कहकर अड़ंगा लगा दिया था कि इस विवाद को हेग स्थित मध्यस्थता कोर्ट में ले जाना चाहिए। लेकिन अब विश्व बैंक के निष्पक्ष विशेषज्ञ ने इस बात पर भी भारत का पक्ष लिया है कि वर्तमान विवाद भारत के ही अधिकार क्षेत्र में आता है अत: कोर्ट की इसमें कोई भूमिका नहीं है। उसके इस फैसले से नदी जल बंटवारे को लेकर दोनों पक्षों के बीच एक लंबे समय से जारी विवाद में एक और आयाम जुड़ गया है।

सिंधु जल संधि साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर के बाद अमल में आई थी। इसके तहत उद्देश्य दोनों देशों में सीमा पार बहने वाली नदियों के जल के बंटवारे पर पैदा होने वाले तमाम विवाद दूर करना था। यह संधि होने से पहले दोनों देशों के बीच 9 साल तक वार्ता चली थी। संधि के अंतर्गत सिंधु, झेलम तथा चिनाब नदियों का पानी ज्यादातर पाकिस्तान को दिया गया। जबकि रावी, ब्यास और सतलुज नदियों के जल पर भारत का अधिकार माना गया। इन तीनों नदियों के पानी को भारत सिंचाई और बिजली बनाने में प्रयोग करने का अधिकार रखता है।

पाकिस्तान की आपत्तियां जम्मू कश्मीर में चल रहीं किशनगंगा तथा रतले जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर हैं। पाकिस्तान को लगता था कि इन दोनों परियोजनाओं के क्रियान्वित होने से उसे कम पानी मिलेगा, जो सिंधु जल संधि के विपरीत होगा। लेकिन इसके बरअक्स भारत ने यही कहा कि उसकी परियोजनाएं संधि में पालन करने वाले बिन्दुओं के अनुरूप ही हैं इसलिए पाकिस्तान को इनसे कोई नुसान नहीं होने वाला।

साल 2016 में पाकिस्तान ने मांग रखी कि इस विवाद का हल हेग के मध्यस्थता कोर्ट से कराया जाए। भारत ने इससे इनकार किया क्योंकि ‘संधि के तहत पहले निष्पक्ष विशेषज्ञ के फैसले की प्रतीक्षा करनी जरूरी’ थी। विश्व बैंक ने माइकल लीनो को विशेषज्ञ के तौर पर नियुक्त किया। कल माइकल ने अपना निर्णय भारत के पक्ष में दिया।

विशेषज्ञ माइकल लीनो के अनुसार, उनके पास दोनों परियोजनाओं को लेकर भारत तथा पाकिस्तान के बीच उठे विवादों की पड़ताल करके फैसला ​सुनाने का अधिकार है। और अब उनके सुनाए निर्णय को भारत ने स्वीकार किया है।

भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि यह फैसला भारत के इस मत को सही ठहराता है कि किशनगंगा तथा रतले जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर निष्पक्ष विशेषज्ञ को प्रेषित सभी सात बिन्दु संधि के अंतर्गत उसकी क्षमता के अधीन ही आते हैं।

मंत्रालय ने अपने वक्तव्य में कहा है कि सिंधु जल संधि, 1960 के ‘एफ’ में खंड 7 के तहत निष्पक्ष विशेषज्ञ के फैसले का भारत स्वागत करता है। इस मामले में अगली सुनवाई के बाद विशेषा सातों बिन्दुओं पर अपना अंतिम निर्णय देंगे। विदेश मंत्रालय ने बताया कि सिंधु जल संधि में बदलावों और इसकी समीक्षा को लेकर भारत और पाकिस्तान एक दूसरे के साथ संपर्क बनाए हुए हैं।

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