स्वतंत्रता के बाद देश ने कई महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित किए, जो राष्ट्रीय निर्माण की आवश्यकता को पूरा करते थे। लेकिन हमें जिस गति से विकास करना था, उस लिहाज से विकास नहीं हुआ, क्योंकि रास्ता ही अलग चुना गया। विकास यात्रा में कुछ गलत निर्णय लिए गए, जिनका असर देश की प्रगति पर पड़ा।
हमने दोस्त सोवियत संघ को चुना और तरफदारी की चीन की। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी दावेदारी करने के बजाए चीन को आगे किया। इन कारणों से हमारे देश का विकास 10 से 15 गुना अधिक हो सकता था, जो नहीं हुआ। स्वतंत्रता के बाद 5 आईआईटी की स्थापना हुई, जो संख्या अगले कई दशकों तक नहीं बढ़ी। पिछले एक दशक में अब इनकी संख्या बढ़कर 23 हो गई है। पूर्व में ऐसे कई मौके आए, जिसका लाभ उठाया जा सकता था, चाहे सुरक्षा, भू-राजनीतिक, वैज्ञानिक उपलब्धि की दृष्टि से देखें। लेकिन अब विकसित भारत दृष्टिकोण और कुछ मानकों को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत अब उड़ान भरने के लिए तैयार है।
अगर देश में जीवन प्रत्याशा को ही देखें तो 1947 में 32 वर्ष थी, जो अब 76 वर्ष हो गई है। साक्षरता दर 1947 में 12 प्रतिशत से बढ़कर 86 प्रतिशत, गरीबी दर 76 प्रतिशत से घटकर 4.5 प्रतिशत, शिशु मृत्यु दर 160 से घटकर 24 और प्रति व्यक्ति आय जो 2014 में 1,500 डॉलर थी, वह 2023 में बढ़कर 2,600 डॉलर हो गई है। विदेशी मुद्रा भंडार 2014 में 300 अरब डॉलर था, जो 2023 में 705 अरब डॉलर हो गया। 2014 में बहुआयामी गरीबी सूचकांक 29 प्रतिशत था, जो अब 11 प्रतिशत रह गया है। बीते एक दशक में 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला गया है।
इसके अलावा, सौर ऊर्जा क्षमता जो 10 वर्ष पहले 3 गीगावाट थी, अब 100 गीगावाट हो गई है। इसी तरह, 10 वर्ष पहले देश में 350 स्टार्टअप थे, जो अब 1.18 लाख हैं। पिछले एक वर्ष की ही बात करें तो जीएसटी राजस्व संग्रह अब तक के रिकॉर्ड स्तर पर, शेयर बाजार सूचकांक 85,000 के उच्चतम स्तर पर, आयकर रिटर्न अब तक के उच्चतम स्तर पर है, जबकि महंगाई दर 5 वर्ष के निचले स्तर पर है। ये उपलब्धियां बताती हैं कि भारत बदलाव के मुहाने पर खड़ा है।
हमें मुफ्त की योजनाओं और जन कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर समझना होगा। अगर मुफ्त की योजनाएं जारी रहीं, तो उपरोक्त आंकड़ों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। एक सच्चाई यह भी है कि देश में अभी भी तीन करोड़ लोग प्रतिदिन मात्र 60 रुपये पर जीवन यापन कर रहे है। 1.5 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। इस देश में 5 वर्ष से कम उम्र के 34 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और 20 प्रतिशत गरीब बच्चों का कभी टीकाकरण ही नहीं हुआ। प्रति व्यक्ति आय मामले में देश अभी 136वें स्थान पर है।
यानी इस मामले में श्रीलंका और कुछ महीने पहले तक हम बांग्लादेश से भी नीचे थे। अगर हमने मुफ्त की योजनाओं और कल्याकारी योजनाओं के बीच अंतर स्पष्ट नहीं किया तो भारत का विकास असंभव हो जाएगा। कल्याणकारी योजनाएं जरूरी हैं। मोदी जी ने 12 करोड़ शौचालय ही नहीं बनवाए, बल्कि प्रति परिवार स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले 50,000 रुपये भी बचाए हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट आई है कि इन शौचालयों के कारण 1.5 लाख नवजात शिशुओं की जान बची है। सरकार द्वारा 11 करोड़ नल कनेक्शन देने के कारण 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की डायरिया से होने वाली मौतों का आंकड़ा गिर कर आधा रह गया है।
यही नहीं, सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत 110 करोड़ परिवारों को जो गैस कनेक्शन दिए हैं, उसके कारण हर साल 1.5 लोगों की जान बच रही है। पारंपरिक चूल्हे से जो प्रदूषण होता था, वह बच्चों के लिए भी जानलेवा था। लेकिन विपक्षी दल यह नहीं देखते। इसी तरह मुद्रा ऋण, जनधन जैसी कल्याणकारी योजनाएं आवश्यक हैं। इसी तरह, लोग स्वतंत्रता के बाद भारत की अब तक की सबसे बड़ी कल्याणकारी उपलब्धि की गिनती ही नहीं करते, वह है कोरोनाकाल में एक साल में दो बार एक अरब लोगों का टीकाकरण। अगर कल्याणकारी योजनाएं न हों, तो यह देश चल ही नहीं सकता। वेलफेयर (कल्याण) से समाज का भला होता है, जबकि फ्रीबीज (मुफ्त उपहार) सिर्फ वोट बैंक की राजनीति का साधन हैं। हज पर सब्सिडी, मुफ्त बिजली, तीर्थ यात्रा और वक्फ बोर्ड जैसी संस्थाओं को ब्याज मुक्त ऋण जैसी घोषणाएं कर राजनीतिक दल अपना स्वार्थ साधते हैं, इससे देश को कोई फायदा नहीं होने वाला है। देर-सबेर इसका खामियाजा हमें ही भुगतना होगा। इसलिए हर राजनीतिक दल को मुफ्त का चलन खत्म करने की दिशा में काम करना चाहिए। जनता के पैसे को विकास के कार्यों में लगाना चाहिए।
इसी तरह, राजनीतिक दल करदाताओं का पैसा विज्ञापन पर पानी की तरह बहा रहे हैं। हाल ही में उच्च न्यायालय ने अस्पतालों में कैट स्कैन मशीन नहीं होने पर केजरीवाल सरकार को फटकार लगाई है। एनपीएस की ही बात करें तो 2005 में मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने कहा था कि जिस तरह से पेंशन दी जा रही है, वह लंबे समय तक नहीं चल सकता। हम दिवालिया हो सकते हैं। इसलिए कांग्रेस सरकार नई पेंशन स्कीम एनपीएस लेकर आई, जिसमें 10 प्रतिशत सरकार और 14 प्रतिशत योगदान कर्मचारियों का होता है, जबकि पुरानी पेंशन स्कीम में अंतिम वेतन का आधा पेंशन मिलता था, वह भी कर मुक्त होता था।
लेकिन 2022 में राहुल गांधी ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान कहा कि कांग्रेस सत्ता में आई तो पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर देंगे। इसी तरह, ‘रेवड़ी कल्चर’ की बात सबसे पहले कांग्रेस के अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने ही की थी। आज हिमाचल सरकार के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं। कुल राजस्व 77 प्रतिशत मुफ्त की योजनाओं पर खर्च हो जाता है। लेकिन लोगों ने क्षणिक फायदा देखा।
देश का हर नागरिक इस बदलाव के बिंदु का हिस्सा है। हमें तय करना है कि यह अवसर केवल कुछ विशेष वर्गों तक सीमित न रहे, बल्कि पूरे समाज के लिए उपयोगी बने। पूरा भारत विकास की इस यात्रा में समान रूप से भागीदार बने। भारत आज आत्मनिर्भरता और प्रगति की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रहा है। अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस प्रगति को बनाए रखें और इसे नई ऊंचाइयों पर ले जाएं।
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