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संस्कृत के श्लोकों को सुनने से हो सकता है मानसिक बीमारियों का इलाज, रिसर्च में खुलासा

सेंटर ऑफ बायो मेडिकल रिसर्च के अध्ययन में पुख्ता प्रमाण मिले। अध्ययन में देखा गया कि संस्कृत श्लोकों का मस्तिष्क पर एक विशेष प्रभाव पड़ता है, जो अन्य भाषाओं के शब्दों या ध्वनियों से संभव नहीं हो पाता।

by सुनीता मिश्रा
Jan 18, 2025, 05:55 pm IST
in भारत
संस्कृत के श्लोकों पर नई रिसर्च आई सामने

संस्कृत के श्लोकों पर नई रिसर्च आई सामने

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वेदों-पुराणों और अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में लिखे संस्कृत के श्लोकों के उच्चारण से न केवल जीवन में सकारात्मकता आती है, बल्कि मानसिक ​बीमारियों का इलाज भी संभव है। सेंटर ऑफ बायो मेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर) लखनऊ के अध्ययन में इसके पुख्ता प्रमाण मिले हैं। अध्ययन में यह देखा गया है कि संस्कृत श्लोकों का मस्तिष्क पर एक विशेष प्रभाव पड़ता है, जो अन्य भाषाओं के शब्दों या ध्वनियों से संभव नहीं हो पाता। ॐ असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय और अहं ब्रह्मास्मि जैसे संस्कृत के श्लोकों को सुनने से मानसिक बीमारियों का इलाज हो सकता है। दरअसल, संस्कृत श्लोकों को सुनने से मस्तिष्क के वे हिस्से सक्रिय हो जाते हैं, जो संगीत सुनने या कला देखने के दौरान सक्रिय होते हैं। इस अध्ययन को प्रतिष्ठित जर्नल स्प्रिंगर नेचर में प्रकाशित किया गया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, अध्ययन में 44 प्रतिभागियों को दो समूहों में बांटा गया था। पहले समूह में संस्कृत के विद्वान शामिल थे, जिन्होंने औसतन 12 साल तक वैदिक संस्कृत की शिक्षा ली थी। वहीं, दूसरे समूह में हिंदी और अंग्रेजी जानने वाले लोग थे, जिन्हें संस्कृत का कोई ज्ञान नहीं था। अध्ययन में संस्कृत श्लोकों और बिना अर्थवाले संस्कृत के बनावटी श्लोकों को सुनाकर मस्तिष्क की प्रतिक्रिया को मापा गया। जांच के लिए एमआरआई का उपयोग किया गया। संस्कृत के विद्वान समूह ने जब अर्थवाले श्लोक सुने तो उनके मस्तिष्क के हिस्से सक्रिय हो गए। यह सक्रियता उनमें बनावटी श्लोक को सुनने के बाद नहीं देखी गई। इसके अलावा हिंदी व अंग्रेजी के जानकार व्यक्तियों में भी किसी भी श्लोक को सुनने पर मस्तिष्क की सक्रियता नहीं देखी गई।

अल्जाइमर का उपचार संभव

संस्कृत के श्लोकों के उच्चारण और सुनने से अल्जाइमर जैसी मानसिक बीमारियों का इलाज भी किया जा सकता है। अध्ययन में बताया गया है कि अल्जाइमर में निष्क्रिय होने वाले टेंपोरल क्षेत्र को भी श्लोकों के प्रभाव से सक्रिय पाया गया।

संस्कृत श्लोकों का आध्यात्मिक के साथ वैज्ञानिक प्रभाव

संस्थान के निदेशक डॉ. आलोक धवन के अनुसार इस अध्ययन का उद्देश्य मस्तिष्क और संस्कृत श्लोकों के बीच संबंध को समझना था। उन्होंने कहा कि संस्कृत श्लोकों का प्रभाव केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक भी है। असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर उत्तम कुमार ने बताया कि उन्होंने इस शोध के लिए काफी समय से अलग-अलग टेस्ट किए हैं। अध्ययन के दौरान कुछ लोगों को संस्कृत के श्लोकों को सुनवाया गया। इसे सुनने से मस्तिष्क में जो प्लेस है, वह खुल गया और साथ ही देखने वाले स्पेस भी खुल गए। उनके मुताबिक यह पहली बार हुआ है, जब सुनने पर देखने वाला स्पेस भी सक्रिय हो गया।

सफल होने के लिए प्रेरित करते हैं संस्कृत के ये श्लोक

संस्कृत में ऐसे कई श्लोक मौजूद हैं, जो व्यक्ति को प्रेरणा देने का काम करते हैं। ये श्लोक व्यक्ति को मेहनत करने और सफल होने के लिए प्रेरित करते हैं। जैसे “उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।” अर्थात् केवल इच्छा करने से काम पूरे नहीं होते, बल्कि इसके लिए व्यक्ति को जीतोड़ मेहनत करनी होती है। जिस प्रकार सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है। “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥” अर्थात् उठो, जागो और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। रास्ते कठिन हैं और वे अत्यन्त दुर्गम भी हो सकते हैं, लेकिन कठिन रास्तों पर चलकर ही सफलता प्राप्त होती है।

 

Topics: संस्कृत पर रिसर्चSanskrit ShlokasTreatment of mental diseases through ShlokasSanskrit and scienceResearch on Sanskritसंस्कृत के श्लोकश्लोक से मानसिक बीमारियों का इलाजसंस्कृत और विज्ञानसंस्कृत पर शोध
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