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सेना दिवस: सशक्त भारत का आधार है भारतीय सेना की बढ़ती ताकत, पराक्रम और प्रौद्योगिकी से बढ़ती भारतीय सेना की शक्ति

भारतीय थलसेना न केवल सीमाओं पर दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देकर देश की रक्षा करती है बल्कि प्राकृतिक आपदाओं, अशांति और उपद्रव की स्थितियों में बचाव तथा मानवीय सहायता पहुंचाने में प्रशासन का सहयोग भी करती है।

Published by
योगेश कुमार गोयल

भारतीय थलसेना न केवल सीमाओं पर दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देकर देश की रक्षा करती है बल्कि प्राकृतिक आपदाओं, अशांति और उपद्रव की स्थितियों में बचाव तथा मानवीय सहायता पहुंचाने में प्रशासन का सहयोग भी करती है। देश को हर पल सुरक्षा का अहसास कराती सेना देश पर आए हर संकट से जान की बाजी लगाकर लड़ती रही है। खून जमा देने वाली ठंड हो या जैसलमेर जैसी तन झुलसा देने वाली अत्यधिक गर्म जगहों पर ऊंट पर बैठकर सीमाओं की पहरेदारी करने की बात हो, विकटतम परिस्थितियों में भी हमारे जांबाज देश की सीमाओं की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा देने में पलभर की भी देर नहीं करते। आज हम 77वें सेना दिवस के अवसर पर थलसेना के अदम्य साहस, अपने जांबाज सैनिकों की वीरता, शौर्य और उनकी शहादत को याद कर रहे हैं। ऐसे में भारतीय सेना के गठन से लेकर वर्तमान में उसकी बढ़ती ताकत और मौजूदा चुनौतियों पर विमर्श करना जरूरी है। 1776 में कोलकाता में थलसेना का गठन ईस्ट इंडिया कम्पनी की एक सैन्य टुकड़ी के रूप में हुआ था, जो बाद में ब्रिटिश भारतीय सेना बनी और देश की आजादी के बाद इसे ‘भारतीय थलसेना’ नाम दिया गया। भारतीय सेना का आदर्श वाक्य है ‘स्वयं से पहले सेवा’।

फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा के सम्मान में प्रतिवर्ष 15 जनवरी को ‘सेना दिवस’ मनाया जाता है। जनरल फ्रांसिस बुचर भारत के आखिरी ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ थे और उनके बाद 15 जनवरी 1949 के दिन करिअप्पा भारतीय सेना में कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किए गए, जो इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले भारतीय थे। उन्होंने न केवल 1947 में भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया बल्कि द्वितीय विश्वयुद्ध में बर्मा में जापानियों को शिकस्त देने पर उन्हें प्रतिष्ठित सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अम्पायर’ से भी सम्मानित किया गया था। 1899 में कर्नाटक के कुर्ग में जन्मे करिअप्पा के संबंधित में सबसे दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख और बाद में राष्ट्रपति बने जनरल अयूब खान ने भी उनके नेतृत्व में सेना में कार्य किया था। 1953 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् उन्हें आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड में भारत का उच्चायुक्त बनाया गया, जहां उन्होंने 1956 तक कार्य किया और उनके अनुभवों का इस्तेमाल कई देशों की सेनाओं के पुनर्गठन में किया गया। वह भारतीय सेना के दूसरे ऐसे सैन्य अधिकारी थे, जिन्हें 1986 में भारतीय सेना में सर्वोच्च प्राप्य तथा फाइव स्टार जनरल ऑफिसर रैंक प्रदान किया गया। उनसे पहले 1973 में राष्ट्रपति द्वारा सैम मानेकशां को फील्ड मार्शल के इस रैंक से सम्मान दिया गया था।

भारतीय सेना की 53 छावनियां और 9 आर्मी बेस हैं। भारतीय सेना वैश्विक स्तर पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी और चौथी सबसे शक्तिशाली सेना है। सैन्य शक्ति के मामले में हमारी सेना अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथे स्थान पर है। जर्मन डेटाबेस कम्पनी ‘स्टेटिका’ के मुताबिक दुनियाभर में सबसे बड़े सैन्यकर्मियों वाले देशों में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। स्टेटिका के अनुसार चीनी सेना में सूचीबद्ध लोगों की संख्या करीब 21.85 लाख है जबकि भारतीय सेना में सक्रिय सैन्यकर्मियों की यह संख्या 14.44 लाख है। वैश्विक रक्षा से जुड़ी जानकारी पर नजर रखने वाली डेटा वेबसाइट ‘ग्लोबल फायरपावर’ की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सेना की गिनती दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेनाओं में होती है, जिसके जखीरे में कई प्रकार के अत्याधुनिक हथियार शामिल हैं, जिनमें आधुनिक टैंकों के साथ बैलिस्टिक मिसाइलें भी शामिल हैं। हमारी सेना पिछले कुछ वर्षों में लगातार मजबूत होती गई है और इसके आधुनिकीकरण की प्रक्रिया भी निरन्तर जारी है। सीमा पार से पाकिस्तान से लगातार मिलती चुनौतियों के बीच पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार चीन भी भारत के लिए हर कदम पर चुनौतियां खड़ी कर रहा है, उसी के बाद बदलती भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति तथा सुरक्षा परिदृश्य के कारण सेना के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तेज की गई। हालांकि रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार सैन्य आधुनिकीकरण के मामले में भी सबसे बड़ी समस्या भारत में यही है कि आवंटित बजट का बहुत बड़ा हिस्सा जनशक्ति पर ही खर्च हो जाता है। रक्षा विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि आज के समय में भारत के समक्ष जिस प्रकार की चुनौतियां पैदा हो रही हैं, ऐसे में सैन्य आधुनिकीकरण के लिए रक्षा बजट को बढ़ाया जाना बेहद जरूरी है।

हालांकि भारतीय सेना आज 1962 वाली सेना नहीं है, जिसके पास संसाधनों की अत्यधिक कमी थी और जिसके चलते चीनी सेना भारत पर भारी पड़ी थी। अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। भले ही संख्या बल के हिसाब से चीन की सेना भारतीय सेना से हर मामले में इक्कीस प्रतीत होती है लेकिन दुनियाभर के विशेषज्ञों का साफतौर पर यही कहना है कि यदि भारत और चीन के बीच युद्ध जैसी स्थितियां निर्मित भी होती हैं तो ड्रैगन के लिए राह आसान नहीं होगी। यही कारण है कि वह छल-प्रपंच के सहारे भारत को घेरने के कुत्सित प्रयासों में लिप्त है और भले ही पिछले दो वर्षों से उसके सैनिक सिक्किम से लेकर लद्दाख तक में टकराव की मंशा से सीमा पर खड़े हैं लेकिन भारत की बढ़ती सैन्य ताकत से चीन अनभिज्ञ नहीं है। दरअसल चीनी सेना भले ही हथियारों के मामले में भारत से मजबूत प्रतीत होती है लेकिन दुनियाभर के रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय सैनिक लड़ने के मामले में दुनिया के सबसे बेहतरीन सैनिक माने जाते हैं।

हल्की ठंड पड़ने पर जहां हम लोग ठंड से बचने के हरसंभव उपाय अपनाने लगते हैं, वहीं सेना के हमारे जांबाज सीमाओं पर भारी बर्फबारी और हाड़ जमा देने वाली ठंड में माइनस 30 से माइनस 60 डिग्री तापमान में ऐसी विकट परिस्थितियों में भी देश की हिफाजत के लिए पूरे साहस और सजगता के साथ मुस्तैद रहते हैं, जब जम्मू कश्मीर जैसी जगहों पर सेना की 60 फीसदी से ज्यादा चौकियों का सम्पर्क दुनियाभर से कट जाता है। ऑक्सीजन की भारी कमी के बावजूद सियाचिन की 45 से ज्यादा ऊंची बर्फीली चोटियों की निगरानी भी भारतीय सेना कर रही है, जहां का तापमान माइनस 60 डिग्री तक चला जाता है। बहरहाल, भारतीय थलसेना हर प्रकार की परिस्थिति में चीनी सेना से बेहतर और अनुभवी है, जिसके पास युद्धों का बड़ा अनुभव है, जो कि विश्व में शायद ही किसी अन्य देश के पास हो। भले ही चीन के पास भारत से ज्यादा बड़ी सेना और सैन्य साजो-सामान है लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में दुनिया में किसी के लिए भी इस तथ्य को नजरअंदाज करना संभव नहीं कि भारत की सेना को अब धरती पर दुनिया की सबसे खतरनाक सेना माना जाता है और सेना के विभिन्न अंगों के पास अब ऐसे-ऐसे खतरनाक हथियार हैं, जो चीनी सेना के पास भी नहीं हैं। जहां तक चुनौतियों की बात है तो भारतीय सेना की चुनौतियों के बारे में तत्कालीन सीडीएस जनरल बिपिन रावत का कहना था कि भारतीय सेना दुनिया की किसी भी अन्य सेना की तुलना में अधिक चुनौतियों का सामना करती है और इसीलिए युद्ध के स्पैक्ट्रम को पूरा करने के लिए दूसरे देशों में अपनाई गई परिवर्तन अवधारणाओं का अध्ययन करने की जरूरत है। उनका कहना था कि भारत एक जटिल सुरक्षा और चुनौतीपूर्ण वातावरण का सामना कर रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, उच्च रक्षा रणनीतिक मार्गदर्शन, उच्च रक्षा तथा संचालन संगठनों में संरचनात्मक सुधारों को परिभाषित करना कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कदम हैं, जो उठाने की आवश्यकता है।

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