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“दूरदर्शन और प्रसार भारती के डिजिटल बदलाव: ओटीटी लॉन्च और मीडिया में सरकारी भूमिका पर गहरी चर्चा”

रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म एंड इन्फॉर्म तो ये जो चार चीजें हैं की आप व्यवस्था में सुधार करिए, बेहतर काम करिए, जो वर्तमान परिदृश्य है उसको परिवर्तित करिए और उसके बाद इसकी जानकारी सब तक पहुंचाई।

Published by
Mahak Singh

पाञ्चजन्य के 78वें स्थापना वर्ष पर भारत के अष्टायाम कार्यक्रम में श्री गौरव द्विवेदी जी ने “जन के मन तक” पर चर्चा करते हुए कहा कि यदि हम पिछले 10-11 वर्षों की अवधि को देखें, तो वर्तमान सरकार के कार्यकाल में प्रधानमंत्री जी द्वारा चार महत्वपूर्ण शब्दों का बड़े सटीक तरीके से उपयोग किया गया है और मेरे ख्याल से उसी में शासन और प्रशासन दोनों की जितनी भूमिका है वह स्पष्ट हो जाती है। रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म एंड इन्फॉर्म तो ये जो चार चीजें हैं की आप व्यवस्था में सुधार करिए, बेहतर काम करिए, जो वर्तमान परिदृश्य है उसको परिवर्तित करिए और उसके बाद इसकी जानकारी सब तक पहुंचाई। अभी ये चारों काम एक साथ चलते हैं।

एक व्यक्तिगत तौर पे जो पुरानी भावना रहती है किसी भी ब्यूरोक्रेट के लिए की। ब्यूरोक्रेसी शुड बी नेमलेस एंड फेसलेस वो बात अपनी जगह उतनी ही स्थापित है, लेकिन सरकार जो काम कर रही है या देश, दुनिया में जो भी कुछ चीजें हो रही है। उसकी सही जानकारी, प्रमाणिक जानकारी जनता तक पहुंचाना भी प्रशासन का एक अभिन्न अंग है।

प्रश्न- सरकारी नियंत्रण वाला मीडिया आमतौर पर कुछ सरकार की खबरें ज्यादा दिखता है। मीडिया में स्वतंत्रता की बात बहुत की जाती है, ऐसे में ये बैलेंस बिठाना चुनौतीपूर्ण रहा। क्योंकि कुछ समय में बदलाव तो है, कुछ अग्रेशन तो है, दूरदर्शन में आया है, लोग मानते हैं शोज में डिबेट्स में ये देखने को मिलता है लेकिन एक छवि थी की अच्छा प्रसार भारती दूरदर्शन मतलब सरकार की खबरों को। मीडिया की क्रेडिबिलिटी को बरकरार रखते हुए इस रास्ता को आपने कैसे पाया और कितना बदले बदलने में सफल हुए।

उत्तर- अग्रेशन की जगह मैं ये कहूंगा की प्रोएक्टिव होना चाहिए क्योंकि एक हमारी लम्बी लीगेसी है आकाशवाणी की दूरदर्शन की, जो की कई सालों से मीडिया यूनिट्स के सरकार में काम किए थे और उसके बाद 97 में जा करके सरकार से अलग हो करके एक संस्था बना करके प्रसार भारती का गठन किया गया। लेकिन फिर भी इस जो प्रशासनिक व्यवस्था है, उसमें ज़ाहिर है कि दूरदर्शन और आकाशवाणी को एक अक्सेस जरूर है सरकार के लिए और उस अक्सेस का लाभ उठाते हुए जो सरकार से संबंधित खबरें हैं, वो हम जरूर जनता तक पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा मुझे याद नहीं आता कि इतने दिनों में कभी हमसे कहा गया हो कि आप ये न्यूज़ चलाइए, ये न्यूज़ मत चलाइए या इस तरह चलाइए या उस तरह चलाइए, ऐसा कुछ नहीं है। मुझे या मेरी टीम को ऐसा करने के लिए कभी भी कहीं से कोई दबाव का सामना नहीं करना पड़ा। सरकार की तरफ से जो स्वायत्तशासी संस्था की भावना है उसका भी पूरा सामान रखा जा रहा है और हम ये प्रयास कर रहे हैं कि प्रसार भारती जो कि संसद द्वारा एक पारित कानून के तहत जिसका गठन किया गया है तो वो संसद की भावना का भी उल्लंघन न हो पाए।

प्रश्न- दूरदर्शन ने अपना ओटीटी चैनल लॉन्च किया। अनुभव कैसा था? क्योंकि वो एक लंबे प्रोसेसर में आप थे और आखिरकार उसको लॉन्च करने में सफल रहे। उसका इनिशियल रिस्पांस कैसा है? क्योंकि ओटीटी की दुनिया में कदम रखना वहाँ के अपने चैलेंजेस है तो वो पहला अनुभव आपका कैसा रहा?

उत्तर- अगर आप स्ट्रीमिंग सर्विसेज या उसको कहे उसको आइसोलेशन में देखना उचित नहीं होगा, जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ी है, पहले केवल ऑडियो टेकनिक थी तो रेडियो चलता था। रेडियो पहले आकाशवाणी के तौर पर भारत में आया। उसके बाद विज़ुअल सर्विसेज शुरू हुई, जो कि अगेन ब्रॉडकास्ट मोड में जिसमें दूरदर्शन भारत का पहला चैनल था और धीरे धीरे करके फिर चाहे रेडियो में हो, चाहे टीवी में हो। प्राइवेट सेक्टर को भी एक प्रवेश मिला और टेकनिक के साथ- साथ जो है जो पहले टेरेस्ट्रियल ट्रांसमिशन होता था, फिर सॅटीलाइट ट्रांसमिशन में गया और इवन जो लिनियर चैनल्स है। ये भी काफी कुछ जो है वो यूट्यूब या अपने ऐप के माध्यम से उसकी स्ट्रीमिंग कर रहे हैं। आज जो परिस्थिति बन रही है कि ऑडियंस दिन बड़े बदलाव आए हैं।

आज जो स्थिति विकसित हो रही है, वह यह है कि दर्शकों के लिए बड़े बदलाव आए हैं। हम पुरानी कहानियाँ सुनते हैं कि जब भी कोई विशेष कार्यक्रम आता था, तो कुछ ही घरों में टीवी हुआ करती थी और पूरा मोहल्ला उस घर में जाकर बैठ जाता था। सभी लोग वहां बैठकर एक साथ देखते थे, चाहे वह रविवार की फीचर फिल्म हो या रामायण या कोई अन्य कार्यक्रम। आज जो दो-तीन बुनियादी बदलाव हुए हैं, वो ये कि स्क्रीन की संख्या बढ़ गई है, जो पहले आपके पूरे मोहल्ले में सिर्फ एक स्क्रीन हुआ करती थी। आज हर किसी के हाथ में स्क्रीन है, हमारे साथ बैठे हमारे कई मित्रों के हाथ में एक नहीं बल्कि दो स्क्रीन होंगी।

दूसरा उसमें ये जो परिवर्तन हुआ की जो पहले ब्रॉडकास्ट मोड में चलता था। मतलब जो भी प्रसारक दिखा रहा है, आपको वही देखना है। आपके पास में कोई चारा नहीं है। दूसरा कोई आपके पास में ऑप्शन नहीं है। आपके पास में केवल बाइनरी ऑप्शन है या तो टीवी चालू करो या टीवी उसके सिवा कोई ऑप्शन नहीं था। लेकिन आज इतने सारे स्रोतों से कार्यक्रम आ रहे हैं तो लोगों की अपनी पसंद ना पसंद के हिसाब से चाहे सब्जेक्ट हो, चाहे फॉर्मॅट हो, चाहे भाषा हो। इस सभी चीजों को सेलेक्ट करते हुए लोग अपनी पसंद का कार्यक्रम अपने समय पर अपने चाहे हुए समय पर देखना चाहते हैं। अगर लोगों को एक ऑन डिमॅंड कॅन्टेंट देखने की अगर आदत है तो वो ब्रॉडकास्ट मोड जो है वो उसके लिए सूटेड नहीं है। उसके लिए डिजिटल या स्ट्रीमिंग मोड ही। एक और चीज़ जो देखने में आ रही है कि डेटा कन्सम्पशन जो है, जो काफी समय हो गया। 2012 में गार्डनर की एक रिपोर्ट आई थी और 1516 के आसपास में भारत में भी ये हो गया था कि मोबाइल डिवाइसेज़ के ऊपर में जो डेटा का कन्सम्पशन है वो फिक्स्ड डिवाइसेज़ की तुलना में यानी आपके डेस्कटॉप कंप्यूटर्स की तुलना में बढ़ गया था। बढ़ चुका ऑलरेडी 10 साल हो चुका है। इस बात को तो अब ऐसी परिस्थिति में जहाँ हर हालत में हर हाथ में एक स्क्रीन है। जहाँ पर लोगों को अपनी पसंद का कॅन्टेंट अपने चाहे हुए समय पर देखना है और उसको मोबाइल डिवाइसेज़ पे देखना है तो ये सब देखते हुए ज़ाहिर सी बात है कि लोक एक लोक सेवा प्रसारक होने के नाते प्रसार भारती को भी उस मीडियम पे अपनी उपस्थिति दर्ज कराना आवश्यक है क्योंकि हम प्रसारक है, एक संस्था है इसलिए सब कोई हमको जरूर देखे, अपने घर में टीवी रख कर के ये तो हम बात नहीं कर सकते हैं तो जो भी हमारी दायित्व है उसको पूरा करने के लिए हमारे लिए ये आवश्यक है कि हम उस हर माध्यम पे उपलब्ध रहे।

प्रश्न- उन तरह के ओटीटी प्लेटफार्म जो की अश्लीलता परोसने वाले हैं तो अश्लील और शील के बीच में सामंजस्य बिठाना कमर्शियल पहलू को भी ध्यान में रखना. इस बात को लेकर देश में भी बहस चल रही है। ओटीटी प्लेटफार्म को लेकर भी एक पॉलिसी होनी चाहिए। उन पर भी ऐसा सेंसर होना चाहिए और उसकी सीमा क्या होनी चाहिए, ये सब एक बहस का विषय है, तो क्या आप मानते हैं कि ये चुनौतियां आपके सामने रहेंगी?

उत्तर- यह चुनौती सिर्फ हमारे सामने ही नहीं है। यह उन सभी लोगों के सामने है जो एक उच्च गुणवत्ता वाला कार्यक्रम लोगों तक ले जाना चाहते हैं। जहां तक ​​इसके रेगुलेशन का सवाल है तो यह करीब ढाई साल से हो रहा है, जिसमें लोगों ने कई ऐसे प्लेटफॉर्म पर आने वाले कार्यक्रमों के प्रकार पर चिंता व्यक्त की है। चाहे सोशल प्लेटफॉर्म पर हो, चाहे लिखित रूप में हो, अखबारों में हो, पत्रिकाओं में हो, इस पर लेख आए हैं, संसद में भी सवाल उठे हैं, कुछ संसदीय समितियां हैं जो इस विषय पर विचार कर रही हैं। यह हमेशा होता है कि टेक्नोलॉजी थोड़ी तेजी से आगे बढ़ती है और जब टेक्नोलॉजी तेजी से आगे बढ़ जाती है, तो हमारी न्यायिक प्रक्रिया, हमारे कानून, हमारे नियम और कायदे, सभी उस टेक्नोलॉजी को रेगुलेट करने के लिए सिस्टम्स बनाते हैं। तो इस विशेष मामले में आप देखेंगे कि टेक्नोलॉजी बहुत तेजी से आगे बढ़ी है और अब इसे कैसे रेगुलेट किया जाए, इसके लिए जो भी अथॉरिटीज है उनके स्तर पर ये विचार मंथन किया जा रहा है।

 

 

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