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अब देश विरोधी तंत्र पर प्रहार की बारी

चंदन गुप्ता हत्याकांड में एनजीओ के खिलाफ एनआईए न्यायालय की टिप्पणी के गहरे निहितार्थ। अब गृह मंत्रालय और बार काउंसिल आफ इंडिया को भी गहन जांच करके इस इकोसिस्टम को तोड़ने का काम करना होगा

by आशीष राय
Jan 12, 2025, 02:32 pm IST
in भारत, विश्लेषण, उत्तर प्रदेश
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देश विरोधी ताकतों द्वारा देश में अशांति फैलाने के कुत्सित प्रयास समय-समय पर होते रहे हैं। इस्लामी आतंकियों और दंगाइयों को वित्तपोषण से लेकर कानूनी मदद तक एक कथित इकोसिस्टम के द्वारा मिलती है। चंदन गुप्ता के मामले में भी ऐसा ही हुआ, जिस पर न्यायालय ने गंभीर चिंता जताई है।

आशीष राय
अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय

इस इकोसिस्टम को चलाने के लिए देश में बहुत से एनजीओ सक्रिय हैं, जिनको विदेशों से पैसे मिलते हैं। इनका असल काम आधी रात को भी इस्लामी आतंकियों और कट्टरपंथियों के न्यायालय खुलवाना, मीडिया में प्रोपगेंडा करना, भ्रामकता फैलाना होता है। कभी मानवाधिकार के नाम पर, कभी महजब के नाम पर ये कट्टरपंथियों और आतंकियों के लिए ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं।

आरोपियों को बचाने के लिए ये पूरी ताकत लगाते हैं। चंदन गुप्ता हत्याकांड में जब आरोपियों के खिलाफ अदालत में सुनवाई शुरू हुई, तब कासगंज में अपराधियों के समर्थन में निरंतर न्यायालय के बाहर भारी भीड़ जुटती थी, ताकि चंदन के परिवार पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाया जा सके। बाद में ऐसा हुआ भी। चंदन गुप्ता के परिवार पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाने वालों में आरोपियों के वकील मुनाजिर रफी का भी नाम था।

इससे परेशान होकर चंदन के पिता सुशील गुप्ता ने मामले की सुनवाई कहीं और कराने की अपील की। उनकी अपील पर मामला लखनऊ एनआईए अदालत में स्थानांतरित किया गया। तमाम तथ्यों और गवाहों के बयान के बाद विशेष अदालत के न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने 3 जनवरी को 129 पृष्ठों का फैसला सुनाया। न्यायालय ने 28 आरोपियों को उम्रकैद व जुर्माने के साथ आर्म्स एक्ट और राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के अपराध के लिए भी सजा सुनाई।

देश विरोधी ताकतों के मददगार एनजीओ

उत्तर प्रदेश के कासगंज कस्बे की घटना में अमेरिका, ब्रिटेन सहित भारत के तमाम एनजीओ को लगाकर मुकदमे को प्रभावित करने की कोशिश भी की। इसी मामले में बचाव पक्ष के अधिवक्ता जियाउल जिलानी ने अलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटिबिलिटी (न्यूयॉर्क), इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (वाशिंगटन), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (नई दिल्ली), सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस (मुंबई), रिहाई मंच (लखनऊ), साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप (लंदन), यूनाइटेड अगेंस्ट हेट (नई दिल्ली) द्वारा तैयार की गई झूठी रिपोर्ट्स पेश की। इस रिपोर्ट को न्यायालय ने बेबुनियाद और तथ्यहीन पाया।

दबाव की रणनीति

अदालत ने यह भी कहा कि ऐसी रिपोर्ट्स न्यायपालिका पर दबाव बनाने का कार्य करती हैं। यह भी स्प्ष्ट हो रहा है कि साम्प्रदायिकता की भावना बहुत चुपके से मानवीय गतिविधि के क्षेत्र में विचारों के स्तर पर दस्तक देती है। इस विशेष एनआईए न्यायालय में भी यह देखा गया है कि विभिन्न प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, केरल, असम, पंजाब आदि प्रदेशों से जब कोई अभियुक्त आतंकवाद, जाली मुद्रा, भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध, देश की रक्षा संस्थाओं से गोपनीय सूचनाओं की जासूसी से संबंधित अपराधों एवं विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम से संबंधित राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में गिरफ्तार करके एजेंसियों द्वारा अचानक न्यायालय में लाया जाता है, तो पहले से ही कुछ वकील (जो ऐसे विशेष अपराधों की पैरवी करते हैं) वकालतनामा लेकर उनकी पैरवी के लिए उपस्थित रहते हैं। इनमें से कथित तौर पर अधिकांश ऐसे वकील होते हैं, जिनके संबंध उक्त संस्थाओं (अदालत में जिन एनजीओ के नाम आए) से होते हैं।

बचाव पक्ष का तर्क

बचाव पक्ष के वकील जियाउल जिलानी ने बहस के दौरान मुसलमानों की सामाजिक स्थिति को लेकर पक्ष रखा। जिलानी का कहना था कि भारत विभाजन के बाद मुसलमानों ने स्वेच्छा से पाकिस्तान नहीं जाने और भारत में रहने का निर्णय लिया था। वे संवैधानिक कानूनों का पालन करते हुए नागरिक कर्तव्य निभाते हैं, फिर भी समय-समय पर मुसलमानों की देशभक्ति और निष्ठा पर संदेह किया जाता है और उन पर पाकिस्तान परस्त होने के आरोप लगाए जाते हैं। इसी के साथ जिलानी ने अदालत से इस संबंध में ऐसा आदेश देने की अपील की, जिससे ऐसी ‘विचारधारा’ पर अंकुश लगाया जा सके।

अभियोजन पक्ष का तर्क

अभियोजन पक्ष की ओर से लोक अभियोजक ललित किशोर दीक्षित ने कहा कि ऐसी विचारधारा पर कोई अंकुश स्वयं मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध लोगों द्वारा आत्मचिंतन और आत्ममंथन करके लगाया जा सकता है। मुस्लिम समाज के मजहबी प्रमुख, प्रबुद्ध वर्ग से संबंधित लोगों, समाजशास्त्रियों आदि सभी लोगों को इस पर विचार करना होगा कि हिंदुओं के धार्मिक जुलूसों, विशेषकर रामनवमी, दुर्गा पूजा आदि पर मुस्लिम समाज के उपद्रवियों द्वारा क्यों पथराव किए जाते हैं।

चिंता जायज

अदालत ने राज्य की ओर से लोक अभियोजक द्वारा कुछ रिपोर्ट्स पर जताई गई चिंता को भी जायज माना है। लोक अभियोजन का यह कहना कि देश के हर राज्य की राजधानी में एनआईए अदालत है। इनमें जब भी देश विरोधी, आतंकी गतिविधियों में शामिल आतंकी या यूएपीए के तहत प्रतिबंधित आतंकी संगठनों के आतंकियों को गिरफ्तार कर पेश किया जाता है तो विभिन्न एनजीओ, जो केवल मुस्लिम हितों के पैरोकार हैं, द्वारा तत्काल उन्हें कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाती है, जो संविधान की मूल भावना के अनुरूप नहीं है, क्योंकि इससे ऐसे अवांछित तत्वों का मनोबल बढ़ता है। इस संबंध में अभियोजन पक्ष ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के लीगल सेल इंस्टीट्यूट का डेटा अदालत में पेश किया था, जिसमें इस संगठन ने यह श्रेय लिया है कि उसकी पैरवी से मार्च 2019 तक कथित रूप से 400 आरोपी अदालतों से निर्दोष साबित हुए।

संगठनों की भारत विरोधी भूमिका

इन एनजीओ की पृष्ठभूमि भारत विरोधी ही रही है। अलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटिबिलिटी अमेरिकी एनजीओ है, लेकिन भारत में अशांति फैलाने के लिए पैसे देता है। तीस्ता सीतलवाड़, पादरी सेड्रिक प्रकाश, अनिल धारकर, अलीक पदमसी, जावेद अख्तर ने मिलकर सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) को शुरू किया। लेकिन इनका मुख्य काम कट्टरपंथियों को कानूनी मदद करना है। इसी तरह, इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल हो या पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, मानवाधिकार संगठन की ओट में इन सबका काम मुस्लिम कट्टरपंथियों को प्रश्रय देने का ही है। वहीं, रिहाई मंच उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार के खिलाफ जनमानस तैयार करने वाली गतिविधियों में ही लगा रहता है।

1987 में अमृत विल्सन और कल्पना विल्सन द्वारा स्थापित साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप में श्रीलंका के पूर्व लिट्टे सदस्य निर्मला राजसिंघम सहित कई ऐसे नाम हैं, जो भारत विरोधी गतिविधियों में ही लिप्त रहते हैं। साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप ने हमेशा आतंकवादियों का समर्थन किया है और आतंकी समूहों से सहानुभूति रखते हुए अफजल गुरु को ‘निर्दोष’ बताया है, लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी बुरहान वानी की हत्या को ‘न्यायिक हत्या’, लश्कर-ए-तैयबा की इशरत जहां की मौत को भारतीय राज्य द्वारा ‘हत्या’ बताया है और खालिस्तानी आतंकी जगतार सिंह जोहल की गिरफ्तारी को ‘गैरकानूनी’। यह संगठन ब्रिटेन में खालिस्तानियों के साथ मिलकर काम कर रहा है।

खालिस्तानी न्यूज पोर्टल ‘सिख सियासत’ के लिए लिखने से लेकर लंदन में भारत सरकार के खिलाफ उनके साथ विरोध प्रदर्शन करने तक, साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप ने आतंकी समूह खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के सदस्य जगतार सिंह जोहल उर्फ जग्गी की रिहाई की मांग की है। उत्तराखंड के हल्द्वानी मुद्दे पर, जहां मुसलमानों ने राज्य सरकार के खिलाफ अदालती आदेशों का पालन करने में एक अनधिकृत मस्जिद और मदरसे को ध्वस्त करने पर खूब उत्पात मचाया और साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप ने जॉर्ज सोरोस के भारत प्रतिनिधि हर्ष मंदर द्वारा हिंदू विरोधी समाचार पोर्टल में लिखा एक लेख साझा किया। उन्होंने कहा था कि उत्तराखंड में हिंदू उत्तराखंड के मुसलमानों का ‘जातीय सफाया’ कर रहे हैं।

इसी तरह, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के बारे में तो संसद में गृह मंत्री ने कहा था कि यूनाइटेड अगेंस्ट हेट नाम सुनने में बहुत पवित्र लगता है, लेकिन देखिए उन्होंने क्या वकालत की। उन्होंने कहा, ‘‘डोनाल्ड ट्रम्प आने वाले हैं। हमें सड़कें बंद कर देनी चाहिए। इसी वजह से उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा हुई।’’

वर्ष 2020 में दिल्ली में हुए दंगे में इस संगठन की भूमिका जगजाहिर है। इसके संस्थापक खालिद सैफी सहित उमर खालिद सब जेल गए। उन पर कठोर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया।

आतंकी फंडिंग से ही कट्टरपंथियों को कानूनी सहायता मिलती रहती है। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के समय तो भारत में आतंकी फंडिंग पर तगड़ी नकेल न होने के कारण इस प्रकार के गैर सरकारी संगठनों के हौसले बढ़ते गए और उसी फंडिंग से न्यायालयों को भी प्रभावित करने का काम होने लगा। अगस्त 2013 में लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री आर.पी.एन.सिंह ने कहा था कि खुफिया जानकारी के अनुसार आतंकवादी और अलगाववादियों को हवाला और विदेशी मुद्रा के माध्यम से धन मिल रहा है।

एफआईसीएन भारत में आतंकवाद के वित्तपोषण का भी एक सक्रिय स्रोत रहा है। उसे पड़ोसी देश की विदेशी खुफिया एजेंसी का समर्थन है। उन्होंने संसद को बताया कि केंद्रीय एवं राज्य विधि आयोग से प्राप्त इनपुट के आधार पर प्रवर्तन एजेंसियां, 2006 से लेकर 30 जून, 2013 तक कुल 218 एफआईआर दर्ज की गई हैं और 65 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए गए हैं। बता दें कि इनमें आतंकवाद के लिए फंडिंग के के 10 मामले शामिल हैं, जिनकी जांच अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है।

वर्तमान सरकार के सामने भी इस समस्या से निपटने की चुनौती है। आतंकियों को की जाने वाली फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए भी हैं। सरकार ने ‘नो मनी फॉर टेरर’ कॉन्फ्रेंस आयोजित करके विश्व के तमाम देशो की जांच एजेंसियों से विदेशी फंडिंग के मार्गों की जांच करने व इस मामले में आपसी सहयोग एवं पारदर्शिता का आग्रह भी किया है। चंदन गुप्ता के मामले में बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने जिन एनजीओ के नाम लिए वह सब के सब इसी देश विरोधी इकोसिस्टम के हिस्से हैं, जिनका काम कट्टरपंथियों और आतंकवादियों को मानवधिकार के नाम पर प्रश्रय देना है।

अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता ललित किशोर दीक्षित ने ऐसी रिपोर्ट्स पर चिंता जताते हुए न्यायालय का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। उनके तर्कों का समर्थन एनआईए न्यायालय तथा एटीएस के वादों की पैरवी कर रहे अन्य लोक अभियोजकों ने भी किया है। भियोजकगण द्वारा भी किया गया ।

न्यायालय ने जताई चिंता

एनआईए न्यायालय लखनऊ ने इन एनजीओ की भूमिका पर गंभीर चिंता जताई है, कथित तौर पर कासगंज मामले में आरोपियों के लिए महंगे वकीलों को काम पर रखा था। एनजीओ की खिंचाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि न्यायिक प्रणाली के हितधारकों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के कासगंज में सांप्रदायिक झड़प में इन एनजीओ की क्या दिलचस्पी हो सकती है।

सभी बुद्धिजीवियों, संस्थाओं और न्यायिक व्यवस्था के हितधारकों से यह भी कहा कि वे इस बात पर गौर करें कि आखिर ऐसे एनजीओ आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के मामलों में मुल्जिमों का बचाव करने और उन्हें कानूनी सहायता देने के लिए आगे क्यों आते हैं, जबकि कानून में पहले से ही प्रावधान है कि अगर कोई आरोपी कोर्ट में अपना बचाव करने की स्थिति में नहीं है, तो उसे मुफ्त में वकील मुहैया कराया जाता है। न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा कि इन हितधारकों को कासगंज सांप्रदायिक हिंसा मामले में इन एनजीओ की भूमिका पर भी गौर करना चाहिए।

एनआईए न्यायालय ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और अधिवक्ताओं की उच्चतम नियामक संस्था बीसीआई को इन एनजीओ के सामूहिक उद्देश्यों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने और न्यायिक प्रक्रिया में इन एनजीओ के अनुचित हस्तक्षेप को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करने को भी कहा है। एनआईए न्यायालय लखनऊ की इस महत्वपूर्ण टिप्पणी से हडकंप तो मचा ही है, परन्तु अब केन्द्रीय गृह मंत्रालय और बार काउन्सिल आफ इंडिया को भी गहन जांच करके इस इकोसिस्टम को तोड़ने का काम करना होगा।

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