केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का लेख, जिसका शीर्षक है-‘श्री नारायण गुरु : वह सनातन धर्म के समर्थक नहीं थे’, वास्तव में 31 दिसंबर को शिवगिरी तीर्थयात्रा के उद्घाटन समारोह के दौरान उनके द्वारा दिए गए भाषण का एक संपादित अंश था। उनके भाषण को कई लोगों ने विवादास्पद और अपमानजनक माना। लेकिन शिवगिरी मठ, जिसकी स्थापना श्री नारायण गुरु ने ही की थी, के प्रमुख स्वामी सच्चिदानंद ने कड़े शब्दों में इसका खंडन किया है।
एक मलयालम दैनिक में प्रकाशित अपने खंडन में स्वामी सचिदानंद ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि श्री नारायण गुरु ने स्वयं गुरु के आशीर्वाद से डॉ. पी. पापलु द्वारा स्थापित श्री नारायण धर्म परिपालन (एसएनडीपी) योगम् को दिए एक संदेश में सुधा हिन्दूमत सिद्धांत या पवित्र हिंदू धर्म के सिद्धांतों के प्रचार पर जोर दिया था। इस प्रकार, केरल में संप्रदायवाद के बीज बोने के मुख्यमंत्री विजयन के कथित प्रयास का श्री नारायण आंदोलन के नेतृत्व ने गुरु की मूल दृष्टि और शिक्षाओं को कायम रखते हुए निर्णायक रूप से प्रतिकार किया।
माकपा की प्रोपगेंडा मशीनरी, जो प्राय: राज्य तंत्र द्वारा समर्थित होती है, ने बार-बार इस झूठ का प्रचार किया है कि श्री नारायण गुरु सनातन धर्म के विरोधी थे। जबकि सचाई यह है कि सामाजिक असमानताओं, अस्पृश्यता और जातिवाद के कारण जब सनातन धर्म का पतन हो रहा था, तब श्री नारायण गुरु ही थे, जो केरल में हिंदू पुनर्जागरण के मार्गदर्शक बनकर उभरे। उनकी साहित्यिक रचनाएं सनातन धर्म में गहराई से निहित हैं, जिसे उन्होंने श्री गणेश, श्री कार्तिकेय, माता काली, दुर्गा माता और भगवान परमेश्वर आदि देवताओं को समर्पित किया है।
गुरु के महानतम योगदानों में आत्मोपदेश शतकम्, अद्वैत दीपिका, दर्शन माला और ईशावस्य उपनिषद् के अनुवाद शामिल हैं। इनमें आद्य शंकराचार्य से प्रेरित अद्वैत दर्शन और वेदांत की गहन व्यारख्याएं हैं। उन्हें सनातन धर्म विरोधी करार देना किसी अज्ञानता या कट्टरता से कम नहीं है।
यह गलतबयानी श्री नारायण गुरु को ईवी रामास्वामी नायकर जैसी शख्सियतों के साथ जोड़ने का एक सोचा-समझा प्रयास लगता है। यह एक विकृति है, जो हाल ही में शुरू हुई है। यह इंडी गठबंधन और उसके सहयोगियों द्वारा चलाए जा रहे विभाजनकारी एजेंडे का हिस्सा है, जिसमें स्टालिन और पिनराई विजयन जैसे लोग सबसे आगे हैं। उनकी मंशा समाज को धार्मिक और जातिगत आधार पर विभाजित करना है।
केरल के मुख्यमंत्री की मंशा अनावश्यक विवाद और केरल के हिंदुओं के बीच कलह पैदा करने की नीयत से प्रेरित प्रतीत दिखती है। खासकर ऐसे समय में जब हिंदुओं में एकता की भावना स्पष्ट रूप से मजबूत हो रही है। श्री नारायण गुरु के जीवन और कार्यों पर बारीकी से नजर डालने पर पता चलता है कि वे सनातन धर्म के समर्थक और पुनर्स्थापनाकर्ता थे, वामपंथी जिसकी अवहेलना अब ब्राह्मणवाद के रूप में करते हैं। उनका प्रसिद्ध ग्रंथ ‘श्री नारायण स्मृति’ वेदों के आधार पर संहिताबद्ध एक आधुनिक स्मृति है, जो स्पष्ट रूप से उनके उद्देश्यों को रेखांकित करता है। उनका यह कार्य महर्षि दयानंद सरस्वती के ‘सत्यार्थ प्रकाश’ से काफी मिलता-जुलता है। इसमें जाति व्यावस्था का उन्मूलन, वेदों का सर्वोच्च अधिकार, मनुस्मृति को आधुनिक बनाने के प्रयास और पंच महा यज्ञ जैसी प्रथाओं को बढ़ावा देने वाले विषय शामिल हैं।
सनातन धर्म के आलोचक श्री नारायण गुरू को वेदों और उसके सिद्धांतों के विपरीत चित्रित करने के लिए बेचैन हैं। लेकिन अपने दावों के समर्थन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत करने में वे पूरी तरह विफल रहे हैं, चाहे उनके भाषण हों या लेख। वास्तव में, वे वेदों या सनातन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ बोलने या लिखने का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। इसके विपरीत, गुरुदेव के प्रयास स्थानीय धार्मिक समुदायों को सनातन धर्म के व्यापक दायरे में एकीकृत करने और सामाजिक रूप से वंचित समूहों के जीवन में वैदिक प्रथाओं को प्रस्तुत करने की दिशा में थे।
इस संदर्भ में 1925 में आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद से उनकी भेंट रेखांकित करने योग्य है। बातचीत के दौरान गुरुदेव ने वैदिक भजन की शैली में एक मंत्र की रचना की थी, जिसे होम मंत्रम् नाम से जाना जाता है। उन्होंने आर्य समाज के संन्यासियों को इसे अपने शिवगिरी मठ में होने वाले अग्निहोत्र अनुष्ठानों में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया था। अपने व्याख्यानों और संवादों में अक्सर उन्होंने महर्षि दयानंद की प्रशंसा की। यहां तक कि 1924 में अलुवा में अपने अद्वैत आश्रम में एक सर्व-आस्था सम्मेलन में उन्होंने घोषणा की थी कि महर्षि दयानंद ने सभी धार्मिक नेताओं के अनुकरण के लिए एक मानक निर्धारित किया था।
मम् वर्त्मानुवर्तन्तो मनुष्या: पार्थ सर्वश:।
अर्थात् हे पृथा पुत्र! सभी लोग जाने या अनजाने में मेरे मार्ग का ही अनुसरण करते हैं। यह श्लोक सनातन धर्म की आधारशिला है। गुरुदेव ने पल्लाथुरुथी में एसएनडीपी के 25वें वार्षिक सम्मेलन में अपने व्याख्यान के दौरान इस अवधारणा के बारे में और विस्तार से बताया था। उन्होंने कहा था कि सनातन वह धर्म है, जो ‘एक जाति, एक धर्म और एक ईश्वर’ के आदर्शोंं का प्रतीक है। विजयन की गलत व्याख्या के विपरीत यह स्पष्ट रूप से गुरु की शिक्षाओं को सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों से जोड़ता है।
पिनराई विजयन ने यह दावा भी किया है कि श्री नारायण गुरु आश्रम धर्म के विरोधी थे। विजयन के लिए गुरु देव की ‘श्री नारायण समृति’ का अध्ययन करना अच्छा रहेगा। इसमें चार अध्याय आश्रम धर्म का अभ्यास करने का महत्व सिखाने को समर्पित हैं। इनमें से एक अध्याय में उन्होंने पंच महा यज्ञों के बारे में विस्तार से बताया है। इसमें गुरुदेव मानवता को आध्यात्मिक पतन की चेतावनी देते हैं, जो उन लोगों की प्रतीक्षा करता है, जो आवश्यक वैदिक अनुष्ठानों और प्रथाओं का अनुसरण करने में विफल रहते हैं। इसे सनातन धर्म नहीं तो और क्या कहा जाएगा? यदि पिनराई अब भी मानते हैं कि ‘श्री नारायण स्मृति’ की शिक्षाएं सनातन धर्म के मूल्यों को शामिल नहीं करती हैं, तो वह अपनी पार्टी के सदस्यों को इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित क्यों नहीं करते? वह इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की वकालत क्यों नहीं करते?
पिनराई ने राजा मार्तंड वर्मा पर तत्कालीन त्रावणकोर में कथित ‘साम्प्रदायिक’ धर्म राज्य की स्थापना करने का आरोप भी लगाया है। पिनराई को दिए तीखे जवाब में श्री नारायण स्मृति की शुरुआत केरल को एक धर्म राज और धर्म संस्थान के रूप में मंहिमामंडित करने से होती है। ये शब्द स्पष्ट तौर पर इसे एक धार्मिक राज्य के रूप में वर्णित करते हैं। इसलिए उनके विरोधाभासी बयान, जबरदस्त झूठ और मनगढ़ंत दावे केरल में द्रविड़ मॉडल के सनातन धर्म विरोधी आंदोलन को प्रचारित करने के माकपा के सुविचारित प्रयास का हिस्सा हैं। हालांकि, अगर वे मानते हैं कि वे श्री नारायण गुरु को केरल के ईवी रामासामी नायकर (ईवीआर) के समकक्ष बना सकते हैं, तो वे खुद को धोखा दे रहे हैं।
इस संदर्भ में यह जांचना आवश्यक है कि पहले के समय में कम्युनिस्टों द्वारा श्री नारायण गुरु को किस प्रकार देखा जाता था। माकपा के पूर्व महासचिव और विचारक ईएम शंकरन नंबूदिरीपाद अक्सर श्री नारायण गुरु और उनके सनातन धर्म आंदोलन को ‘बुर्जुआ’ आदर्शों से अधिक कुछ नहीं मानते थे। ‘नारायण गुरु-टुडे’ शीर्षक वाले एक लेख में ईएमएस ने गुरु की शिक्षाओं को अप्रासंगिक बताते हुए खारिज किया था। उन्होंने लिखा था, ‘‘मुझे विश्वास नहीं होता कि स्वामी के संदेश अकेले आज के केरल की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।’’ खासतौर से, ईएमएस ने उन्हें ‘गुरुदेव’ संबोधित करने से परहेज किया और सुझाव दिया कि श्री नारायण आंदोलन केवल कम्युनिस्ट आंदोलन के साथ जुड़कर ही अपनी प्रासंगिकता बनाए रख सकता है।
श्री नारायण गुरु के प्रति पिनराई विजयन की कथित भक्ति को दर्शाते हुए कोई भी उनके अपमानजनक कार्यों की शृंखला की अनदेखी नहीं कर सकता है, जो बिल्कुल विपरीत हैं। 2023 में कन्नूर स्थित श्री नारायण कॉलेज में पिनराई ने गुरुदेव को समर्पित प्रार्थना के दौरान खड़े होने से इनकार कर दिया था, जबकि मंच पर और सभागार में मौजूद सभी लोग श्रद्धा से खड़े हो गए थे। इसके अलावा, उन्होंने खुलेआम उस विधायक का मजाक उड़ाया, जिसने श्री नारायण गुरु के नाम पर शपथ लेने का फैसला किया था।
विडंबना यह है कि वामपंथी गुटों द्वारा भड़काए गए इन राजनीति से प्रेरित और अदूरदर्शी विवादों का उल्टा असर पड़ने की संभावना है। वे लंबे समय से श्री नारायण गुरु की कालातीत शिक्षाओं और दृष्टिकोण की अधिक समझ और सराहना को प्रेरित करके हिंदू एकता को मजबूत करने का काम ही करते रहे हैं।
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