विश्लेषण

भारतीय संस्कृति में मातृत्व का महत्व

कहते हैं कि भगवान हर जगह नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने मां बनाई। एक मां अपने बच्चों को अनकंडीशनल प्यार करती है उस दिन से लेकर जब से मातृत्व का पहली बार एहसास होता है अपनी अंतिम सांस तक।

Published by
निलेश कटारा

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति व सभ्यता है, जिसे विश्व भर की सभी संस्कृति की जननी माना जाता है भारत हमेशा से धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्रति भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र रहा है। मां को मानवता की जन्मदात्री माना जाता है। मां ब्रह्मांड में ईश्वर की सबसे अच्छी रचना है मां शब्द अपने आप में ही परिपूर्ण है मां शब्द नारी को पूर्णताओं का बहुत करवाता है। मां का अस्तित्व हर एक के लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि कोई भी बच्चा अपनी सांस, पहला भोजन और अपने अस्तित्व के लिए जो भी जरूरी क्रिया होती है वह अपनी मां की कोख में ही करता है इसलिए हम सब का यह शरीर हमारी मां की देन है। गर्भ से ही बच्चे का मन के साथ भावनात्मक जुड़ा होता है एक तरफ से बच्चों के लिए उसकी मां ही भगवान होती है।

कहते हैं कि भगवान हर जगह नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने मां बनाई। एक मां अपने बच्चों को अनकंडीशनल प्यार करती है उस दिन से लेकर जब से मातृत्व का पहली बार एहसास होता है अपनी अंतिम सांस तक। मां बनने का एहसास बहुत ही सुखद होता है। मां अपने बच्चों की मां दर्शन संरक्षक होती है। मां बिना किसी शिकायत के अपने बच्चों के सब कुछ काम करती है अपने बच्चों की हर सुख सुविधा का ध्यान रखती है एक बच्चे को अच्छे संस्कार देने की जिम्मेदारी हो या फिर उसके स्कूल के होमवर्क हो हर काम को बहुत शालीनता से करती है। एक मां अपने बच्चों की पहली मित्र स्कूल और शिक्षक होती है जब कोई बच्चा छोटा होता है तो उसके लिए उसकी सारी दुनिया उसकी मां होती है मन ही उसकी पहले शिक्षक होते हैं क्योंकि बच्चा स्कूल जाने से पहले जो भी सिखाते हैं ज्यादातर अपनी मां से ही सीखते हैं।

मां का प्यार ऐसा होता है कि कई बार बच्चे शब्दों में अपनी बात नहीं कर पाते, लेकिन एक मां उनकी भाषा समझ लेती है छोटे बच्चों के होठों पर ईश्वर का नाम उसकी मां होती है भारतीय संस्कृति में भी मन को बहुत महत्व दिया गया है वेदों पुराणों उपनिषदों धर्म ग्रंथो में मां की भूरि भूरि प्रशंसा की गई है वेदों में मातृ शब्द का अर्थ है-

नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।’
महर्षि वेदव्यास “संकद पुराण”
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

“मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।”

परंपराओं और मूल्यों का संरक्षण

सांस्कृतिक विरासत को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने में माताएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं-

कहानी सुनाना- माताएं पारंपरिक कहानियां, लोककथाएं और महाकाव्य साझा करती हैं, सांस्कृतिक मूल्य, नैतिक शिक्षा और ऐतिहासिक ज्ञान प्रदान करती हैं।

धार्मिक प्रथाएँ- माताएँ अपने बच्चों को धार्मिक अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों में शामिल करती हैं, जिससे उनमें सांस्कृतिक पहचान और अपनेपन की भावना बढ़ती है।

कला और संगीत- कई माताएं अपने बच्चों को नृत्य और संगीत जैसी पारंपरिक कलाओं से परिचित कराती हैं, जिससे इन सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण होता हैं। माताएं अपने बच्चों के नैतिक दिशा-निर्देश और नैतिक संहिता को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

ईमानदारी और सच्चाई- माताएं ईमानदारी और सच्चाई के महत्व पर जोर देती हैं तथा बच्चों को ईमानदार और नैतिक व्यक्ति बनना सिखाती हैं।

करुणा और उदारता- माताएं दयालुता और करुणा के कार्यों को प्रोत्साहित करती हैं, जिससे उनके बच्चों में सहानुभूति और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना बढ़ती है।

बड़ों और शिक्षकों का सम्मान- बड़ों और शिक्षकों का सम्मान भारतीय संस्कृति में गहराई से समाया हुआ है। माताएँ अपने बच्चों में यह मूल्य भरती हैं, जिससे पदानुक्रम की भावना और अधिकार रखने वाले व्यक्तियों के प्रति सम्मान को बढ़ावा मिलता है।

अनुशासन और आत्म-नियंत्रण- माताएं मार्गदर्शन और अनुशासन प्रदान करती हैं, जिससे बच्चों को आत्म-नियंत्रण, जिम्मेदार व्यवहार और मजबूत कार्य नैतिकता विकसित करने में मदद मिलती है।

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