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श्रीलंका: मजहबी कट्टरता के विरोधी बौद्ध भिक्षु को नौ महीने की जेल! बौद्ध संत पर साम्प्रदायिक तनाव फैलाने का आरोप

कोलंबो कोर्ट में बौद्ध संत पर 1500 श्रीलंकाई रुपए का जुर्माना भी जड़ा गया। जुर्माना न भरने पर सजा एक और महीने बढ़ जाएगी

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WEB DESK

राजपक्षे सरकार के ढहने के बाद बौद्ध भिक्षु ज्ञानसारा के विरोधी सक्रिय हो गए और उन पर गत वर्ष आरोप मढ़ा गया कि वे मुस्लिमों के विरुद्ध भाषण देते रहे हैं। उस मामले में भी अदालत ने उन्हें 4 साल कैद की सज़ा दी थी। लेकिन उस मामले में उनकी ज़मानत अपील स्वीकार कर ली गई थी।


श्रीलंका से आई एक खबर ​हैरान करने वाली है। वहां शांति, प्रेम और करुणा की बुद्ध की शिक्षाओं का समाज में प्रचार—प्रसार कर रहे एक बौद्ध संत को जेल की सजा सुनाई गई है। इतना ही नहीं, बौद्ध संत पर इस्लाम का अपमान करने का आरोप लगाया गया है और कहा गया है कि वे समाज में तनाव पैदा कर रहे थे।

यह विवादित मामला है बौद्ध भिक्षु गालागोदाते ज्ञानसारा का। कभी बौद्ध धर्म का अनुयायी रहा श्रीलंका अब सेकुलर सरकार के शासन में ज्यादा ही सेकुलर होता जा रहा है यही वजह है कि वहां की अदालत को एक बौद्ध संत अपराधी नजर आता है और कट्टरपंथी इस्लामवादी बेकसूर और मासूम नजर आते हैं।

दो दिन पहले अदालत ने 2016 के एक मामले में बौद्ध संत गालागोदाते ज्ञानसारा को इस्लाम की तौहीन करने और पांथिक वैमनस्यता फैलाने का दोषी ठहराते हुए नौ महीने की कैद की सज़ा सुनाई है। इतना ही नहीं, उस बौद्ध संत पर 1500 श्रीलंकाई रुपए का जुर्माना भी जड़ा गया। जुर्माना न भरने पर सजा एक और महीने बढ़ जाएगी।

दरअसल भंते गालागोदाते उस देश के पूर्व राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे के करीबी माने जाते हैं। उनके परामर्शदाता के तौर पर रहे हैं। गोतबाया को 2022 में श्रीलंका में उठे राजनीतिक तूफान और आर्थिक उथलपुथल से उपजे जन आक्रोश के बाद कुर्सी से हटना पड़ा था।

श्रीलंका कभी माना ही नहीं गया था कि बौद्ध भिक्षु भी अपराधी हो सकते हैं, उनको भी अदालत में घसीटा जा सकता है। उनसे कोई ‘अपराध’ हो सकता है। लेकिन अब उस देश में यही हो रहा है। गालागोदाते के साथ ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, पहले भी उन्हें जेल की सज़ा सुनाई जा चुकी है।

दरअसल भंते ज्ञानसारा श्रीलंका में कट्टर मजहबी तत्वों के विरुद्ध मुखर रहते हैं। वे मुस्लिमों की हिंसा के विरोध में खुलकर खड़े होते हैं। इसलिए उन पर ‘साम्प्रदायिक तनाव’ फैलाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। साल 2019 में भंते ज्ञानसारा को धमकाने और अदालत की अवमानना करने का दोषी ठहराया गया था, लेकिन उस सजा में उन्हें राष्ट्रपति से क्षमा मिली गई थी। लेकिन कोलंबो के मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने इस बार उन्हें 9 महीने जेल में कैद रखने की सज़ा सुना दी।

2016 के इस केस में भंते ज्ञानसारा पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस में इस्लाम विरोधी बात कर दी थी। इस शिकायत पर पिछले साल उन्हें गिरफ़्तार किया गया था।

मजहबी कट्टरता के विरोधी बौद्ध भिक्षु

दो दिन पहले बौद्ध भिक्षु को सजा सुनाते वक्त अदालत का कहना था कि श्रीलंका में संविधान में पंथनिरपेक्षता के तहत प्रत्येक मत पंथ के अनुयायी को अपने मत के अनुसार जीवन जीने की आजादी है। हालांकि भंते ज्ञानसारा ने अपील करके सजा निरस्त करने को कहा था, लेकिन अदालत द्वारा ज़मानत की उनकी याचिका ठुकरा दी गई।

इन्हीं भंते ज्ञानसारा को तत्कालीन राष्ट्रपति राजपक्षे ने देश में पांथिक एकजुटता बनाए रखने के लिए बनाए एक कार्यबल का प्रमुख बनाया था। उनका काम था पांथिक एकजुटता बनाए रखने के लिए मौजूदा क़ानूनों में जरूरी सुधार करने की सलाह देना।

लेकिन राजपक्षे सरकार के ढहने के बाद बौद्ध भिक्षु ज्ञानसारा के विरोधी सक्रिय हो गए और उन पर गत वर्ष आरोप मढ़ा गया कि वे मुस्लिमों के विरुद्ध भाषण देते रहे हैं। उस मामले में भी अदालत ने उन्हें 4 साल कैद की सज़ा दी थी। लेकिन उस मामले में उनकी ज़मानत अपील स्वीकार कर ली गई थी।

कोलंबो कोर्ट में बौद्ध संत पर 1500 श्रीलंकाई रुपए का जुर्माना भी जड़ा गया

इससे पहले साल 2018 में उन पर आरोप लगाया गया था कि राजनीति से जुड़े कार्टून बनाने वाले एक व्यंग्य चित्रकार की पत्नी को धमकाया था और अदालत की अवमानना की थी। मुकदमा चला और भंते ज्ञानसारा को 6 साल जेल की सज़ा सुनाई गई। उस सजा के तहत नौ महीने जेल में रहने के बाद उस वक्त के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना की ओर से उनकी शेष सजा माफ कर दी गई थी।

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