हर देश की शक्ति उसके अपने नागरिक होते हैं। वे ही होते हैं जो देश का निर्माण करते हैं, उसकी संस्कृति का निर्माण करते हैं। मगर तब क्या होगा जब किसी देश के नागरिकों का दमन उस देश की राजनीति के चलते होने लगे और दमन भी ऐसा नहीं कि एक पीढ़ी तक सीमित हो, बल्कि ऐसी पीड़ा दी जाए, जो तन मन और आत्मा सभी को छलनी कर दे। एक ऐसा छल, जो लोकतंत्र और स्वतंत्र मूल्यों के नाम पर किया जाए। बात है यूके की! पश्चिम के उस देश की जिसके विषय में एक समय में कहा जाता था कि अंग्रेजी राज्य का सूर्य कभी डूबता ही नहीं है। मगर इस बार सूर्य डूबा ही नहीं हैं, बल्कि पूरी तरह डूबता हुआ दिखाई दे रहा है।
यूके में पाकिस्तानी मुस्लिम आदमियों के समूहों द्वारा वहाँ की लड़कियों का यौन शोषण हो रहा है, उनके साथ बलात्कार हो रहा है और इतना ही नहीं बच्चियों को वैश्यावृत्ति के दलदल में फेंका जा रहा है, मगर वहाँ के सत्ताधारी नेता, अपनी कथित समावेशीकरण की राजनीति के नाम पर इन लड़कियों के साथ हो रहे इन अत्याचारों से इनकार कर रहे हैं। उनके अनुसार, कुछ गलत नहीं हो रहा है। दशकों से चल रहे इस शोषण की जांच के लिए लाया गया विधेयक ब्रिटिश संसद में गिर गया। इस विधेयक के पक्ष में जहां मात्र 111 वोट मिले तो वहीं इसके विरोध में 364 वोट पड़े। यह बहुत ही हैरान और परेशान करने वाली बात है कि जहां इन दिनों सोशल मीडिया यूके के “ग्रूमिंग गैंग” की खबरों और पीड़िताओं के बयानों से भरा पड़ा है, तो वहीं यूके की सरकार ही इस जांच के लिए तैयार नहीं है? आखिर यह जांच क्यों नहीं चाहिए? सबसे बढ़कर बच्चियों के साथ हुए यौन शोषण को नकारा क्यों जा रहा है?
कम्युनिस्ट और इस्लामिस्ट मीडिया, जो खुद को महिलाओं के अधिकारों का मसीहा मानता है, वह पीड़िताओं के साथ न होकर पाकिस्तानी मुस्लिमों के उस समूह के साथ क्यों खड़ा है, जो लड़कियों के साथ बलात्कार और सामूहिक बलात्कार जैसा कुकृत्य करते हैं?
यूके में ग्रूमिंग गैंग पर चल रहे घमासान के बीच हैरिस सुल्तान ने एक्स पर एक पोस्ट किया कि क्या सामूहिक बलात्कार एक इस्लामिक समस्या है, एक पाकिस्तानी समस्या या फिर एक चरम दक्षिणपंथी षड्यन्त्र? यदि यह इस्लामिक समस्या है, तो हमें यह देखना होगा कि क्या विश्व के दूसरे हिस्सों में भी गैर मुस्लिम महिलाओं के साथ दूसरे मुस्लिम सामूहिक बलात्कार कर रहे हैं? तो आँकड़े क्या कहते हैं? आइए देखते हैं।
उसके बाद उन्होंने इसी पोस्ट के आगे आंकड़ों के साथ कई पोस्ट की हैं, जिनमें लिखा है कि एलन मस्क का धन्यवाद इस तथ्य को बताने के लिए कि ब्रिटेन में अधिकतर सामूहिक बलात्कार एक विशेष समुदाय ने किये हैं अर्थात पाकिस्तानियों ने। तो हो सकता है कि यह केवल पाकिस्तानी समस्या हो? और फिर उन्होंने अगली पोस्ट में लिखा है कि जर्मनी में सीरियाई और अफगानी केवल जनसंख्या का 2% हैं, मगर फिर भी सामूहिक बलात्कार के मामले में उनकी भागीदारी 34% है।
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फिर उन्होंने नॉर्वे और स्वीडन के उदाहरण दिए, जहां पर मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका के लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं। फिर वे पूछते हैं कि यह बताएं कि किस पंथ के लिए उत्तरी अफ्रीका और मिडल ईस्ट में रहते हैं।
एक यूजर ने डेली मेल की एक रिपोर्ट साझा की, जिसमें यह चौंकाने वाला समाचार था कि रॉठेरहम ग्रूमिंग गैंग के आधे दोषी रिहा किये जा चुके हैं और दो लोग अपने पेरोल की सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं।
अब इस मामले में यूके के हिंदू संगठन भी आगे आए हैं। यूके की हिंदू काउंसिल ने पूरे यूके में चल रहे ग्रूमिंग गैंग के मामले में सरकारी जांच की मांग की है। संस्था के अध्यक्ष कृष्ण भान ने कहा कि यह सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह बच्चों और युवाओं की रक्षा इस जघन्य अपराध से करे। संस्था ने यूके की न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाते हुए लिखा कि यहाँ की न्याय प्रणाली पीड़िताओं को न्याय दिलाने में विफल रही है। और इस पूरे प्रकरण की जांच होनी चाहिए।
इसके साथ ही काउंसिल ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही। संस्था की ओर से कम्युनिस्ट मीडिया द्वारा इन अपराधियों की पहचान के विषय में जो भ्रम फैलाया जा रहा है, उस पर आपत्ति दर्ज करते हुए संस्था ने कहा कि “हिंदू काउंसिल यूके ने लंबे समय से मीडिया में इन गिरोहों का वर्णन करने के लिए ‘एशियाई’ शब्द का प्रयोग न करने के लिए अभियान चलाया है, क्योंकि हमारी हिंदू और सिख लड़कियां भी इनकी शिकार थीं और ‘एक्स’ मंच पर वर्तमान में हुई तीखी प्रतिक्रिया को देखते हुए, बीबीसी ने अंततः कल शाम ग्रूमिंग गैंग्स का अधिक सटीक वर्णन करने के लिए अपने समाचार रिपोर्टों में एशियाई शब्द का प्रयोग करने से परहेज किया, लेकिन हम इस बात से निराश हैं कि प्रधानमंत्री ने कल अपने संवाददाता सम्मेलन में फिर भी इस जघन्य अत्याचार को ‘एशियाई’ शब्द से ढकने का विकल्प चुना।“
यूके की राजनीति में यह बहुत ही दुखद क्षण है, जब वहाँ की अपनी लड़कियों की पीड़ाओं को राजनीतिक लाभ के लिए दबाया जा रहा है, अपराधियों की पहचान को “एशियाई” के दायरे में छिपाया जा रहा है। लोग मीडिया और सोशल मीडिया में यह पूछ रहे हैं कि “आपके लिए अपनी बच्चियाँ जरूरी हैं या फिर राजनीति?”
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