1948 में होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य भारत में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना था। 1974 में पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण और 1998 में दूसरा परीक्षण भारत की आत्मनिर्भरता और सुरक्षा के प्रतीक बने। भारत का उद्देश्य अक्षय ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता देकर अपनी वैश्विक शक्ति को और सुदृढ़ करना है। यह लक्ष्य परमाणु, पवन, सौर और जलविद्युत जैसी कम कार्बन ऊर्जा प्रणालियों की ओर बढ़ते वैश्विक रुझानों के अनुरूप है। इस दिशा में भारत अपने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को तेजी से प्रगति के रास्ते पर लाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी का लाभ उठाने की योजना बना रहा है, जिसमें 26 बिलियन डॉलर का निजी निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य रखा गया है।
भारत ने 2047 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को मौजूदा 7.5 गीगावाट से बढ़ाकर 100 गीगावाट करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। परमाणु ऊर्जा विभाग ब्रीडर रिएक्टरों के माध्यम से 3 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन के लिए विचार कर रहा है, साथ ही, अन्य देशों के सहयोग से 17.6 गीगावाट उत्पन्न करने में सक्षम हल्के रिएक्टरों और 40 से 45 गीगावाट के लिए दबावयुक्त भारी जल रिएक्टरों की स्थापना पर भी मंथन हो रहा है। भारत का उद्देश्य 2031-32 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को 8,180 मेगावाट से बढ़ाकर 22,480 मेगावाट करना है, जिसमें गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में 8000 मेगावाट क्षमता के 10 रिएक्टरों का निर्माण शामिल होगा।
अनुसंधान और विकास को दिशा
वर्ष 1948 में होमी जे. भाभा के नेतृत्व में भारत सरकार ने परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को दिशा देना और उसके विकास के लिए आवश्यक अनुसंधान करना था। इस आयोग का मुख्य उद्देश्य भारत में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना था, जिसमें ऊर्जा उत्पादन, चिकित्सा और औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए अनुसंधान शामिल था। होमी भाभा को इस आयोग का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जिन्हें भारतीय परमाणु कार्यक्रम का पितामह माना जाता है। आयोग ने परमाणु प्रौद्योगिकी में अनुसंधान को प्राथमिकता दी, जिसके परिणामस्वरूप 1957 में भारत का पहला परमाणु रिएक्टर ‘अप्सरा’ विकसित हुआ। साथ ही भारत में परमाणु ऊर्जा पर अनुसंधान के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई। 3 अगस्त, 1954 को प्रधानमंत्री के प्रत्यक्ष नियंत्रण में परमाणु ऊर्जा के व्यावसायिक उपयोग के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई। 1 मार्च, 1958 को सरकार ने परमाणु ऊर्जा आयोग को पूर्ण कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां प्रदान कीं।
परमाणु ऊर्जा विभाग परमाणु ऊर्जा के बिजली और गैर-बिजली अनुप्रयोगों से संबंधित सभी क्षेत्रों में कार्य करता है। परमाणु ऊर्जा के शांतिप्रिय अनुप्रयोगों के रूप में स्वास्थ्य, खाद्य और कृषि उद्योग और पर्यावरण के लिए विकिरण प्रौद्योगिकियों पर कार्य से परमाणु ऊर्जा विभाग की विशिष्ट पहचान बनी है।
पोखरण प्रथम के 50 साल
भारत के परमाणु परीक्षण, विशेष रूप से पोखरण प्रथम और पोखरण द्वितीय भारतीय रक्षा और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में महत्वपूर्ण मील के पत्थर रहे हैं। इन दोनों परीक्षणों ने न केवल भारत के परमाणु कार्यक्रम को मजबूती दी, बल्कि देश की शक्ति और सुरक्षा नीति को भी प्रभावित किया।
1960 के दशक में जब परमाणु अप्रसार संधि का मसला चल रहा था। भारत ने इसे भेदभावपूर्ण मानते हुए इसका विरोध किया था। भारत का मानना था कि परमाणु अप्रसार संधि के तहत कुछ देशों को परमाणु हथियारों की अनुमति दी जाती है, जबकि अन्य देशों को इस अधिकार से वंचित किया जाता है। भारतीय परमाणु वैज्ञानिक होमी भाभा का तर्क था कि भारत को शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट की दिशा में काम करना चाहिए, ताकि गैर-सैन्य कार्यों के लिए परमाणु शक्ति का उपयोग किया जा सके।
18 मई, 1974 को भारत ने पोखरण में पहली बार परमाणु परीक्षण किया था। इस परीक्षण को ‘स्माइलिंग बुद्धा’ नाम दिया गया। यह पाकिस्तान और चीन से भारत की सुरक्षा को लेकर एक स्पष्ट संदेश था। इस परीक्षण के दौरान केवल एक फिजन (विखंडन) विस्फोट हुआ, जिसमें 12 किलोटन टीएनटी की शक्ति पैदा हुई। इस परीक्षण को ‘शांतिपूर्ण परमाणु धमाका’ कहा गया, जो कि वास्तव में भारत की परमाणु हथियारों की क्षमता का प्रदर्शन था। इस परीक्षण ने भारत को परमाणु हथियारों वाले देशों के विशेष श्रेणी में शामिल किया।
इस परीक्षण के बाद भारत को वैश्विक स्तर पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। अमेरिका और अन्य परमाणु शक्ति संपन्न देशों ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगाए, जिससे भारत के परमाणु कार्यक्रम को तकनीकी आपूर्ति मिलना बंद हो गया। 1975 में, अमेरिका ने न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप की स्थापना की, जो देशों को परमाणु सामग्री और तकनीक की आपूर्ति पर नियंत्रण रखने के लिए था। इसके बाद भारत पर परमाणु परीक्षण और तकनीकी सहयोग को लेकर कड़े प्रतिबंध लगाए गए।
1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे भारत ने पोखरण में दूसरा परीक्षण किया, इसे आपरेशन शक्ति का नाम दिया गया। 11 से 13 मई, 1998 के बीच हुए इस परीक्षण में कुल पांच परमाणु धमाके किए गए। इसमें तीन फिजन (विखंडन) और दो फ्यूजन (संलयन) धमाके शामिल थे। यह परीक्षण पिछली बार से कहीं अधिक शक्तिशाली था, क्योंकि इसमें 45 किलोटन टीएनटी की ऊर्जा का उत्पादन हुआ। इस परीक्षण के साथ ही भारत ने अपनी परमाणु शक्ति को सार्वजनिक रूप से मान्यता दी और इससे एक नई परमाणु नीति की शुरुआत हुई। भारत ने स्वयं पर परमाणु परीक्षण की रोक लगाने का ऐलान किया और भविष्य में इसका उपयोग केवल अपनी रक्षा के लिए करने की बात की। इस कदम से भारत परमाणु शक्ति संपन्न देशों के क्लब में स्थायी रूप से शामिल हो गया। भारत न केवल परमाणु शक्ति के रूप में उभरा, बल्कि परमाणु हथियारों के निर्माण, उपयोग और उसकी तकनीक को विकसित करने में भी सक्षम हो गया। यह परीक्षण पाकिस्तान और चीन के लिए एक कड़ा संदेश भी था क्योंकि भारत के पास अब परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन चुका था।
बिजली उत्पादन में बढ़ता योगदान
परमाणु ऊर्जा को स्वच्छ ऊर्जा तकनीक के रूप में संदर्भित किया जाता है, क्योंकि यह शून्य कार्बन डाइआक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पैदा करती है। परमाणु ऊर्जा वायु प्रदूषकों के उत्पादन से भी बचती है जो अक्सर ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन को जलाने से जुड़े होते हैं। भारत में परमाणु ऊर्जा का योगदान लगातार बढ़ रहा है, और हाल के वर्षों में इसका असर भी स्पष्ट है। पिछले तीन वर्षों में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से कुल 115,292 मिलियन यूनिट बिजली उत्पादन हुआ है। परमाणु ऊर्जा विभाग का लक्ष्य भारत की स्थापित परमाणु उर्जा क्षमता को वर्ष 2031-32 तक तीन गुना बढ़ाना है। वर्ष 2031-32 तक वर्तमान स्थापित परमाणु उर्जा क्षमता 8,180 मेगावाट से बढ़कर 22,480 मेगावाट तक पहुंच जाएगी।
परमाणु ऊर्जा विभाग भारत में कैप्टिव परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लिए 220 मेगावाट क्षमता वाले दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (पीएचडब्ल्यूआर) का डिजाइन कर रहा है, जिसका उपयोग लघु रिएक्टरों (बीएसआर) में किया जाएगा। इसके साथ ही, भारत हल्के जल-आधारित रिएक्टरों के स्थान पर 220 मेगावाट क्षमता वाले लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (बीएसएमआर) पर भी काम कर रहा है। परमाणु रिएक्टर डिजाइन में एक बदलाव किया जा रहा है, जिसमें कैलेंड्रिया (जो परमाणु रिएक्टर में न्यूट्रॉन की गति को नियंत्रित करती है) को प्रेशर वेसल (जो रिएक्टर के भीतर दबाव बनाए रखने और ईंधन को सुरक्षित रखने का काम करता है) से प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है।
बढ़ी परमाणु क्षमता
पिछले 10 वर्षके दौरान भारत की परमाणु उर्जा क्षमता 70 प्रतिशत बढ़ी है। यह 2013-14 के 4,780 मेगावाट से बढ़कर वर्तमान में 8,180 मेगावाट पर पहुंच गई। परमाणु उर्जा संयंत्रों से वार्षिक विद्युत उत्पादन भी 2013-14 के 34,228 मिलियन यूनिट से बढ़कर 2023-24 में 47,971 मिलियन यूनिट तक पहुंच गया है। वर्तमान में देश की कुल स्थापित परमाणु उर्जा क्षमता 8,180 मेगावाट है।
महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हो रहा प्रयोग
परमाणु ऊर्जा और विकिरण प्रौद्योगिकियों का उपयोग आज हमारे जीवन के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एक सशक्त बदलाव ला रहा है। इन प्रौद्योगिकियों ने न केवल बिजली उत्पादन, बल्कि कृषि, चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे न केवल जीवन स्तर में सुधार हुआ है, बल्कि देश की ऊर्जा और स्वास्थ्य सुरक्षा भी सुदृढ़ हुई है। परमाणु ऊर्जा विभाग की पहलें और नवाचार इस दिशा में अत्यधिक प्रभावी साबित हुए हैं। ऊर्जा सुरक्षा, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ रेडियो फार्मास्युटिकल्स और परमाणु चिकित्सा, कृषि और खाद्य संरक्षण पर भी परमाणु ऊर्जा विभाग कार्य कर रहा है।
कृषि क्षेत्र में विकिरण द्वारा उत्पन्न उत्परिवर्तन तकनीक के माध्यम से 70 किस्मों को विकसित किया गया है, जिनमें तिलहन, दलहन, चावल और जूट जैसी फसलों की किस्में शामिल हैं, जो अब वाणिज्यिक खेती के लिए उपलब्ध हैं। इसके अलावा, भारत में कई इरेडीऐशन (किरणीयन) प्लांट्स स्थापित किए गए हैं, जिनका उपयोग कृषि उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। फल, जैसे आम और अनार, और सब्जियां जैसे प्याज और लहसुन अब विकिरण प्रक्रिया के माध्यम से अधिक समय तक ताजी रहती हैं, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो रही है।
परमाणु ऊर्जा और विकिरण तकनीकी का स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्र में भी अत्यधिक प्रभाव है। चिकित्सा के लिए प्रयुक्त रेडियो आइसोटोप्स की सहायता से अनेक गंभीर बीमारियों, विशेषकर कैंसर, का निदान और उपचार किया जा रहा है। भारत में 220 से अधिक परमाणु चिकित्सा केंद्र सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं, जहां पर रेडियो फार्मास्युटिकल्स का उपयोग किया जा रहा है, जो शरीर के विभिन्न अंगों और कैंसर का पता लगाने में सहायक होते हैं। इसके अलावा, उपचार के लिए प्रयुक्त फास्फोरस, समेरियम और ल्यूटेटियम आधारित रेडियो फार्मास्युटिकल्स भी कैंसर रोगियों को दर्द से राहत देने और उपचार में मदद करते हैं। विकिरण तकनीकी का उपयोग अब इस क्षेत्र में और अधिक किफायती हो गया है। उदाहरण के तौर पर, ल्यूटेटियम-177 से युक्त उत्पाद के द्वारा न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर के उपचार की लागत आयातित रेडियो फार्मास्युटिकल्स से 10-15 गुना कम है, जो इसे गरीब और मिडल क्लास मरीजों के लिए सुलभ बनाता है।
वैश्विक स्तर पर सराहना
वर्ल्ड नूक्लियर एसोसिएशन ने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम और उसकी अद्वितीय चुनौतियों पर लिखा है कि 34 वर्षों तक न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफेरेशन ट्रीटी से बाहर होने के बावजूद, भारत ने अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने में जो लचीलापन और नवाचार दिखाया है, वह सराहनीय है।
देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता के विस्तार के प्रति प्रतिबद्धता, यह दर्शाती है कि भारत अपनी बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को स्वच्छ, निम्न-कार्बन ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत परमाणु ऊर्जा में नवाचार के मामले में अग्रणी बन गया है, जो दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के साथ-साथ आयातित यूरेनियम पर निर्भरता को भी कम करता है। ल्ल
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