कनाडा की राजनीति इस साल बेहद गर्म रहने वाली है, क्योंकि केवल 2-3 महीनों में देश को तीसरे प्रधानमंत्री का चेहरा देखने को मिलेगा। क्या कनाडा की राजनीति में खालिस्तान समर्थक तत्वों के लिए ट्रूडो की उदारता या फिर इस्तीफे की वजह कुछ और है? प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे ने सियासी हलचल को और बढ़ा दिया है। इसके साथ ही खालिस्तानी एंगल ने इस राजनीतिक संकट में आग में घी डालने का काम किया है। कनाडा की डिप्टी पीएम और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड द्वारा 16 दिसंबर को पद छोड़ने के बाद ट्रूडो पर इस्तीफे का दबाव और अधिक बढ़ गया था।
फ्रीलैंड का कहना था कि ट्रूडो ने उनसे वित्त मंत्री का पद छोड़ने का अनुरोध किया था, ताकि वह दूसरे मंत्रालय का कार्यभार संभाल सकें। कनाडा की राजनीति इस साल कई अहम बदलावों के दौर से गुजरेगी। जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा, खालिस्तानी मुद्दे का बढ़ता प्रभाव और आने वाले चुनाव देश के भविष्य को नई दिशा मिलेगी। ट्रूडो की सबसे प्रभावशाली और वफादार मंत्री मानी जाती रही हैं। पता चला है कि क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने सदन में वित्तीय रिपोर्ट पेश करनी थी, लेकिन उससे ठीक पहले उन्होंने अपना इस्तिफा दे दिया और आनन-फानन में जस्टिन ट्रूडो द्वारा अपने करीबी को वित्त मंत्री नियुक्त करके उससे वित्तीय रिपोर्ट पेश करवाई गई। अब पीएम की रेस में क्रिस्टिया फ्रीलैंड का नाम काफी आगे चल रहा है।
ट्रूडो का इस्तीफा और कनाडा की सरकार पर संकट
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अचानक इस्तीफे का ऐलान कर देश की राजनीति में भूचाल ला दिया है। मार्च तक कनाडा की संसद को सस्पेंड कर दिया गया है और नए सत्र में नए प्रधानमंत्री का शपथ ग्रहण होगा। हालांकि, गवर्नर जनरल का भाषण पास नहीं हो पाएगा और इस वजह से सरकार गिर जाएगी, जिससे अगले दो महीनों में फिर से चुनाव होंगे।
वहीं, नए प्रधानमंत्री का चयन सिर्फ कुछ दिनों के लिए होगा, क्योंकि अगले चुनावों में फिर से नई सरकार का गठन किया जाएगा। यह नया प्रधानमंत्री इतिहास में नाम दर्ज करवाएगा, क्योंकि उसका कार्यकाल बेहद छोटा रहेगा।
चुनावों से पहले यह अस्थायी सरकार देश के सियासी माहौल को कैसे संभालती है, यह देखना दिलचस्प होगा।
खालिस्तानी एंगल और राजनीतिक संकट का गहराना
खालिस्तानी समर्थन और उनके दबाव की चर्चा ने इस सियासी संकट को और गंभीर बना दिया है। ट्रूडो के इस्तीफे के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या खालिस्तानी एंगल इस पूरे मामले की सबसे बड़ी वजह है?
हाल ही में ट्रूडो द्वारा भारत दौरे के दौरान खालिस्तानी कट्टरपंथी अटवाल का उनके साथ आना, खालिस्तान व खालिस्तानी समर्थक निझ्झर के मुद्दे पर दिए गए बयानों और भारतीय नेताओं से हुई तनातनी ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी प्रभावित किया है।
आने वाले चुनाव और देश का भविष्य
दो महीने के भीतर कनाडा में चुनाव होंगे, जिसमें यह देखा जाएगा कि जनता किसे अगले प्रधानमंत्री के रूप में चुनती है। क्या खालिस्तानी एजेंडा चुनावों में मुद्दा बनेगा या फिर देश की आंतरिक राजनीति और आर्थिक स्थिति केंद्र में रहेगी?
अगले चुनावों से पहले अस्थायी प्रधानमंत्री और उनकी टीम के फैसले देश की दिशा तय करेंगे।
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संसद सत्र और अस्थायी सरकार की चुनौतियाँ
संसद सस्पेंड होने के बाद नए सत्र के दौरान गवर्नर जनरल का भाषण पास होना असंभव माना जा रहा है। यह संसद और सरकार के बीच टकराव को दिखाता है, जिससे आने वाले दिनों में राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ेगी। अस्थायी प्रधानमंत्री की भूमिका केवल दो महीने तक होगी, लेकिन इस दौरान उन्हें कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, खासकर जब देश पहले से ही राजनीतिक और सामाजिक तनाव में है।
गौरतलब है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर उनकी खुद की लिबरल पार्टी के सांसदों द्वारा इस्तीफा देने का दबाव लगातार बढ़ रहा था। पता चला है कि ट्रूडो इस हफ्ते बुधवार तक अपने पद से इस्तीफा ना देते तो उन्हें उनके पद से जलील करके हटाया जाना था और इसी फज़ीहत से बचने के लिए ट्रूडो खुद ही इस्तीफा दे दिया। ट्रूडो ने 2015 में पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी और वह एक उदारवादी नेता के तौर पर प्रसिद्ध हुए थे। हालांकि, हाल के वर्षों में कनाडा में कट्टरपंथी और खालिस्तानी ताकतों का बढ़ना, अप्रवासियों की बढ़ती संख्या और कोविड-19 के बाद की परिस्थितियों के कारण उन्हें कई राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। इसके अलावा कनाडा में आऊट ऑफ कंट्रोल होती इमीग्रेशन के कारण भी ट्रूडो सरकार के कार्यकाल के दौरान कनाडा के हालात बद से बदत्तर हुए माने जा रहे हैं।
उधर, अमरीका के नवनियुक्त राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भी कह दिया है कि वे कनाडा से आने वाले सामान पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की सोच रहे हैं चूंकि कनाडा की ओर से गैर-कानूनी तौर पर लोग अमरीका में दाखिल हो रहे हैं जो कि बर्दाशत नहीं किया जा सकता। बता दें कि कनाडा-अमरीका का बार्डर विश्व का सबसे लंबा बार्डर है जो तकरीब 8 हजार किलोमीटर लंबा है लेकिन यह बार्डर पूरी तरह से अनकंट्रोल्ड है और कनाडाई नागरिक अपने ड्राइविंग लाइसेंस पर ही अमरीका में दाखिल हो सकते हैं। अनकंट्रोल्ड का मतलब है कि जैसे भारत-पाकिस्तान का बार्डर पूरी तरह से सील है, अमरीका-कनाडा के बार्डर पर ऐसा कुछ नहीं है और यह ओपन है। यह भी एक बड़ी वजह थी, जो जस्टिन ट्रडो के लिए सिरदर्द बनी हुई थी।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बुधवार को लिबरल पार्टी के नेशनल कॉकस की महत्वपूर्ण बैठक ऑटवा में सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक होने वाली है, जिसमें ट्रूडो को विद्रोह का सामना करना पड़ सकता था, यही वजह रही कि उन्होंने इस फज़ीहत से पहले ही इस्तीफा दे दिया। पार्टी के 20 से ज्यादा सांसदों ने सार्वजनिक तौर पर उनसे इस्तीफा देने की मांग की थी। इसके अलावा व्यक्तिगत मुलाकातों में भी कई नेताओं ने ट्रूडो से इस्तीफा देने की सलाह दी थी। अब इस मीटिंग में मौजूदा हालातों पर बात हो सकती है।
कनाडा की संसद में लिबरल पार्टी के पास 338 में से 153 सीटें हैं, जबकि बहुमत के लिए 170 सीटें चाहिए। पिछले साल, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) ने अपने 25 सांसदों का समर्थन वापस ले लिया था, जिससे ट्रूडो की सरकार अल्पमत में आ गई थी। हालांकि, एक बहुमत परीक्षण में ट्रूडो की पार्टी को अन्य पार्टियों का समर्थन मिल गया, जिससे वह इस संकट से उबरने में सफल रहे थे।
कनाडा में हुए कुछ सर्वेक्षणों के अनुसार, ट्रूडो की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है। एक इप्सोस सर्वे में केवल 28% कनाडाई लोगों ने ट्रूडो को फिर से चुनाव लड़ने के लिए समर्थन दिया, जबकि एंगस रीड इंस्टीट्यूट के अनुसार उनकी अप्रूवल रेटिंग घटकर 30% पर आ गई है, जबकि नापसंदगी की दर 65% तक पहुंच गई है। बहरहाल, कनाडा की राजनीति इस साल कई अहम बदलावों के दौर से गुजरेगी। जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा, खालिस्तानी मुद्दे का बढ़ता प्रभाव, और आने वाले चुनाव से देश के भविष्य को नई दिशा मिलने की संभावना है।
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