अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध(सन् 1720 से सन् 1740 तक) में विश्व के महानतम सेनापतियों की बात करें तो बाजीराव प्रथम, विश्व में सर्वश्रेष्ठ थे। बाजीराव प्रथम ने छत्रपति शिवाजी महाराज के हिंदू पद पादशाही के सिद्धांत का समूचे भारत में विस्तार किया था। वह मुगलों के लिए काल थे। बाजीराव प्रथम का उद्देश्य पतन्नोमुख मुगल साम्राज्य पर हिन्दू राज्य की स्थापना करना था।इसलिए बाजीराव प्रथम ने कहा था कि “हमें इस जर्जर वृक्ष के तने पर आक्रमण करना चाहिए, शाखाएं तो स्वयं ही गिर जाएंगी।” (Let us strike at the trunk of withering tree, the branches will fall by themselves) गौरतलब है कि 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशक में ही मुगल साम्राज्य का औरंगजेब की मृत्यु के साथ मृत्यु नाद बज गया था और लड़खड़ाते हुए उत्तर मुगल कालीन शासकों ने सत्ता संभाली थी। छत्रपति शाहू की ओर से बाजीराव प्रथम ने संपूर्ण भारत में मुगलों और इस्लामिक शासकों से मुगलिया के नाम से चौथ और सरदेशमुख वसूल की।भारत में इस्लामिक सत्ता की बखिया उधेड़कर उन्हें ध्वस्त कर दिया। इस कड़ी में तत्कालीन भारत में मुगल सेना के सबसे बड़े सेनापति चिनकिलिच खान उर्फ आसफजाह निजामुल्मुल्क (निजाम) जिसे मुस्लिम बड़ा योद्धा समझते जाता थे, उसे हिन्दू महा महारथी बाजीराव प्रथम ने बिना युद्ध के ही दो बार जमकर ठोका था।
उत्तर मुगल कालीन शासक मुहम्मद शाह रंगीला की रंग – रलियों से तंग होकर निजाम दक्षिण भारत भाग आया और उसने सन् 1724 में हैदराबाद की स्थापना की। निजाम चाहता था कि दक्षिण भारत में इस्लामिक साम्राज्य स्थापित हो जाए, परंतु बाजीराव प्रथम के होते हुए यह संभव नहीं था इसलिए बाजीराव प्रथम और निजाम के मध्य निर्णायक युद्ध होना अनिवार्य हो गया था । अचिरात् सन् 1726 में निजाम ने शंभाजी की सहायता से छत्रपति शाहू के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर दिया। उस समय शाहू की स्थिति बहुत खराब हो गई। सन् 1727 में अविलंब बाजीराव कर्नाटक से वापस आया उस अवसर पर बाजीराव ने महान् सेनापति की योग्यता का परिचय दिया। एक वर्ष की छुटपुट युद्धों के पश्चात फरवरी सन् 1728 में बाजीराव ने पालखेड (पालखेड़) नामक स्थान पर निजाम को घेर लिया और निजाम को ऐसी कठिन परिस्थिति में डाल दिया कि उसने बिना युद्ध के संधि कर ली यह बाजीराव की महान विजय थी।
मार्च सन् 1728 में मुंगी शेगांव (Mungishegaon) की संधि के द्वारा परास्त निजाम ने –
संपूर्ण मालवा और नर्मदा तथा चंबल नदी के बीच की समस्त भूमि बाजीराव को देनी पड़ी। 2. 50 लाख रुपया बाजी राव को देना पड़ा।
इस युद्ध के पश्चात निजाम ने बाजीराव से पूर्ण पराजय मान ली। बाजीराव प्रथम भारत में विख्यात हो गये क्योंकि उन्होंने उस समय मुगलों के भारत के सबसे बड़े कूटनीतिज्ञ और प्रसिद्ध सेनापति को बिना युद्ध के बुरी तरह से धूल चटाई थी। बाजीराव का नाम उत्तर भारत के उत्तर मुगलकालीन तथाकथित बादशाह रंगीला और संपूर्ण भारत के मुस्लिम शासकों के लिए दहशत का पर्याय बन गया था।
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