मत अभिमत

रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों के जरिये भारत के खिलाफ गहरी साज़िश

भारत में बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थियों की बसावट के जरिए छोटे सीमावर्ती राज्यों की जनसांख्यिकी बदलने की साजिश। हिमालयी राज्यों और पूर्वोत्तर में वोट बैंक की राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा।

Published by
अभय कुमार

भारत में बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं को एक ख़ास योजना के तहत बसाने की एक सतत और दीर्घकालिक प्रक्रिया चलायी जा रही हैं. इसका दूरगामी उद्देश्य भारत को अस्थिर करने के लिए बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं को हिमालय की तलहटी के राज्यों में बसाया जा रहा है। इस साज़िश की पहली कड़ी में छोटे-छोटे राज्यों में बाहरी लोगों खास तौर पर रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों को बसाकर सरकार का स्वरूप बदलना है।

भारत की चुनावी समीकरण ऐसा हैं की यहाँ बहुत कम मतो के अंतर से भी सरकार बदली जा सकती हैं. भारत के चुनावी इतिहास में सिर्फ एक मत के अंतर से कम से कम तीन बार चुनावों का परिणाम निर्धारित हुआ हैं. ये तीनो चुनाव विधानसभा के थे. लोकसभा चुनाव में भारत में सबसे कम मत से झारखण्ड के संथाल क्षेत्र के राजमहल का फैसला 1998 के लोकसभा चुनाव में महज 9 मतो के अंतर से हुआ था. अगर ऐसे कुछ ख़ास क्षेत्रो की जनसांख्यिकी में परिवर्तन लेकर उस क्षेत्र और फिर सरकार पर कब्ज़ा करने की नियत से ऐसा किया जा रहा हैं.

भारत के 16 प्रदेशों (जम्मू कश्मीर मिलाकर जहाँ 5 सीटें नामांकित की जाती हैं) में 100 से कम विधानसभा की सीटें हैं. इन सभी राज्यों पर विदेशी ताकतों की नज़र में लम्बे समय से हैं. विदेशी ताकते इन राज्यों की सांख्यिकी को बदलकर इन छोटे छोटे राज्यों की सरकारों का स्वरुप बदलना चाहती हैं और उसके बाद सरकारों पर पीछे से कब्ज़ा करना चाहती हैं.

वर्तमान में हिमालय के सीमावर्ती राज्यों में भाजपा का दबदबा है। उत्तराखंड में भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में है। हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव दर चुनाव भाजपा और कांग्रेस पार्टी की सरकारें बनती रही हैं। रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों को बसाने की योजना में दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर के कुछ खास राज्य शामिल हैं। इन सभी राज्यों की विधानसभाएं बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटी हैं। इन छोटे राज्यों की खास बात यह है कि यहां विधानसभा सीटों के नतीजे बहुत कम वोटों के अंतर से होता हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी भाजपा को सत्ता से बेदखल कर सरकार बनाने में सफल रही। लेकिन यह भी ध्यान देने वाली बात है कि कांग्रेस पार्टी भाजपा से 38000 वोटों से आगे थी। हिमाचल प्रदेश में पिछले 2022 के विधानसभा चुनाव में 8 सीटों पर एक हजार से भी कम वोटों के अंतर से फैसला हुआ था। अगर इस राज्य में और कुछ खास सीटों पर बाहरी लोगों को बसाया जाए तो सरकार आसानी से बदली जा सकती है।

बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों में ऐसा करने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। मगर छोटे और सीमावर्ती राज्यों में उस प्रकार की सरकार बनती हैं तो बाहरी लोगों को वहां और भी आसानी से बसाया जा सकता है और फिर उन्हें देश के दूसरे हिस्सों में भेजा जा सकता है। उस स्थिति में बाहरी लोगों को इन राज्यों से जरूरी दस्तावेज और दूसरी पहचान देकर दूसरी जगहों पर भेजना आसान प्रक्रिया होगी. इसी वजह से बाहरी ताकतों की नज़र छोटे राज्यों पर टिकी हुई हैं क्योंकि वहीं से उनकी साजिश की सफलता का सूत्र छिपा हैं । उत्तराखंड 70 विधानसभा सीटों वाला राज्य है। उत्तर प्रदेश से अलग होने पर इस राज्य में सिर्फ 22 सीटें थीं जिन्हें बांटकर 70 सीटों में बदल दिया गया। इस राज्य की विधानसभा सीटें अन्य राज्यों की तुलना में छोटी हैं और यहां की सीटों का चुनावी फैसला भी सैकड़ों वोटों के अंतर से होता है। उत्तराखंड में पिछले 2022 के विधानसभा चुनाव में 9 सीटों का फैसला दो हजार से भी कम वोटों से हुआ था। उत्तराखंड, दिल्ली, सिक्किम, पुडुचेरी समेत पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों की कुछ चिन्हित सीटों पर अगर एक हजार भाजपा विरोधी वोटर भी जोड़ दिए जाएं तो इन राज्यों में भाजपा को आसानी से हराया जा सकता है।

हिमालय की तराई, पश्चिम बंगाल के गोरखालैंड इलाके में बाहरी लोगों को बसाकर कई तरह की चुनौतियां पैदा करने की कोशिश की जा सकती है। इसका अंतिम उद्देश्य यह है कि बाहरी लोगों को इन राज्यों में बसाने के बाद उनको पुरे देश में फैलाया जाये । भारत के सीमावर्ती राज्यों में खासकर ऐसे राज्यों में जहां विधायकों की संख्या कम है और विधानसभा सीटें छोटी हैं। अंतिम रणनीति यह है कि उनके वोट से उनकी मानसिकता की सरकार बनाई जा सके ताकि बाहरी लोगों को भारत का नागरिक बनाया जा सके। ऐसे बाहरी लोगों को सीमावर्ती राज्यों में बसाकर देश के लिए कई तरह की चुनौतियां पैदा की जा सकती हैं।

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अभय कुमार

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