जावेद अख्तर के मामले में न्यायालय के आदेश का किया जा रहा गलत प्रस्तुतीकरण
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जावेद अख्तर के मामले में न्यायालय के आदेश का किया जा रहा गलत प्रस्तुतीकरण

जावेद अख्तर ने अपने बयान में संघ को तालिबान के समान बताया था। परंतु सत्य कुछ और है। जावेद की प्रार्थना पर कोर्ट ने एक मध्यस्थ समिति का गठन किया। इस मध्यस्थ समिति के कहने पर संतोष दुबे ने अपना दावा वापस लिया।

by रतन शारदा
Jan 4, 2025, 01:19 pm IST
in विश्लेषण
Javed Akhtar defimetion case
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कुछ दिन पहले ख्याति प्राप्त गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर के विरुद्ध एक मानहानि के एक दावे के बारे में एक खबर पढ़ी। कुछ समाचार पत्रों और इंटरनेट के समाचारों में पढ़ा कि जावेद अख्तर को मानहानि दावे से बरी कर दिया गया है। ऐसा लगा कि तरुण वकील संतोष रामस्वरूप दुबे, जिसने यह मानहानि का दावा किया था, वह यह दावा हार गए हैं। वकील ने स्वयं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बताते हुए मानहानि का दावा किया था। जावेद अख्तर ने अपने बयान में संघ को तालिबान के समान बताया था। परंतु सत्य कुछ और है। जावेद की प्रार्थना पर कोर्ट ने एक मध्यस्थ समिति का गठन किया। इस मध्यस्थ समिति के कहने पर संतोष दुबे ने अपना दावा वापस लिया। तकनीकी पर कोर्ट ने यह कह कर केस बंद कर दिया कि दोनों पक्षों ने ‘आपस में यह मामला समाप्त कर दिया है – “amicably settled”। यह शब्द मध्यस्थ समिति के हैं। इस निर्णय को ‘acquittal’ कैसे प्रस्तुत किया गया।

विषय को संक्षिप्त रखने के लिए मैं न्यायालय के निर्णय को संक्षिप्त में रख रहा हूँ –

5 नवंबर 2024 की मध्यस्थता बैठक में जावेद ने समिति को अपने मानहानि वाले वक्तव्य को समझाते हुए कहा, “वे विश्वास दिलाना चाहते हैं कि उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं थी जो वादी को या उसके संगठन/ RSS की मानहानि करें। (क्रमांक 3)। क्रमांक चार में वे कहते हैं, “उनकी बढ़ती उम्र के कारण वे स्वस्थ नहीं हैं और यह वक्तव्य वादी और उनके संगठन/RSS की नहीं थी, वे तो अफगानिस्तान की परिस्थिति समझने की बात कर रहे थे।

मासूम वकील ने उपरोक्त बातों पर विचार करते हुए और जावेद साहब की वृद्धावस्था और बीमारी देखते हुए, उनके आश्वासन को सत्य मानते हुए अपना दावा वापस ले लिया। इस मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट 8 नवंबर को कोर्ट में पेश हुई और वादी का बड़ा दिल रखते हुए यह वाद वापस लेने के कारण न्यायालय ने जावेद को ‘मुक्त’ कर दिया। वादी स्वयं वकील था, परंतु इतना भोला और कच्छ था कि उसके ध्यान से यह बात निकल गई कि जब जावेद ने जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरुद्ध अपना वक्तव्य दिया था, तब भी वे ‘बूढ़े और बीमार’ थे।

यह स्पष्ट है कि जावेद अख्तर ने अपनी वृद्धावस्था और बीमारी का हवाला देते हुए बड़ी कमजोर दलील दी। इतना ख्याति प्राप्त योद्धा जो बड़े-बड़े मंचों पर अब भी जाता है, जो इतना स्वस्थ था कि एक सामाजिक मंच पर जाकर गैर जिम्मेदाराना बयान दे सकता है, परंतु जैसे ही उन्हें कोई कोर्ट में घसीटता है तो वे ‘कमजोर और बीमार वृद्ध’ हो जाते हैं। हम यह न भूलें कि यह हस्ती अपनी शब्द सज्जा और कवि हृदय शब्दों के कारण लाखों या करोड़ों कमाते रहे हैं। उनके मुंह से कोई भी शब्द यूं ही नहीं निकलते।

मैं आशा करता हूँ कि इस तरुण कच्चे वकील ने केवल सस्ती मशहूरी के लिए ये दावा नहीं किया था, जो कि सेक्युलरिज़्म के ख्यातनाम पुजारी के सामने आते ही पीठ के बाल लेट कर पूंछ हिलाने लग गए हों और उनकी मानहानि पर मरहम लग गया हो। वह भूल गए कि उन्होंने भारत के सबसे बड़े संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी मानहानि की बात की थी। क्या उसने संघ से राय ली थी? क्या उसने सोचा था कि इस प्रकार के समझौते से क्या परिणाम हो सकते हैं? कैसे इसको गलत ढंग से पेश करके इस ‘समझौते’ का दुरुपयोग मीडिया और राजनीतिज्ञ कर सकते हैं?

यह एक पाठ है उन वकीलों के लिए जो ऐसे मानहानि के अन्य दावे न्यायालय में लड़ रहे हैं। वे ऐसे सितारों के समझौतों के चक्कर में तब तक न पड़ें, जब तक वे सार्वजनिक माफी न मांगें, या उन्हें सजा न मिले। जहां तक मुझे जानकारी है, मुंबई के अलग-अलग न्यायालयों में कम से कम पाँच मानहानि के दावे चल रहे हैं – राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह, तस्लीम राहमानी, जॉन दयाल, और केरल के कम्युनिस्ट नेता ए एन जमीर। मैं इन अधिवक्ताओं को मुफ़्त सलाह दे रहा हूँ कि संतोष दुबे नामक वकील की नादानी से कुछ शिक्षा लें और सावधानी रखें।

मैं संघ के प्रति घृणा रखने वाले बड़े प्रतिष्ठित लोगों को भी सलाह दूंगा कि आप न्यायालय में अपने सत्य के लिए लड़ें। कोर्ट के नाम पर अपनी पूंछ अपनी टांगों में दबाकर कभी व्यस्तता और कभी बुढ़ापे का सहारा लेकर भागें नहीं। अगर मानहानि के मुकदमे लड़ने की हिम्मत नहीं, तो सार्वजनिक और पर माफी मांगे इन और तारीख पे तारीख लगवा कर कोर्ट का समय बर्बाद न करें। सबसे बड़े राजनैतिक भगोड़े अरविन्द केजरीवाल में इतनी तो सभ्यता है कि वे माफी मांग लेते हैं। जावेद अख्तर कम से काम अपने सेक्युलर हमराही से कुछ तो सीखें, और बुढ़ापे की बीमारियों का बहाना बनाते हुए अर्धसत्य का सहारा लेते हुए अपने इरादों की सफाई न देते फिरें। अंत में इतनी सलाह और दूँ जावेद साहब को कि “अपनी गलती मान लेने से कोई छोटा नहीं होता।“

Topics: जावेद अख्तरJaved AkhtarRSSवकील संतोष रामस्वरूप दुबेAdvocate Santosh Ramswaroop DubeyRashtriya Swayamsevak SanghजावेदJavedआरएसएसराष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
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